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Wednesday, May 25, 2011

कभी कभी मुझको





हज़रात आदाब,
एक ग़ज़ल हाज़िर है...
मुलाहिज़ा फ़रमाएं

छू सका न फितरत का फन ये आज भी मुझको
आईने में तकती है मेरी सादगी मुझको

मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको

अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको

ख़ुद पे रख नहीं पाता मैं कभी कभी काबू
याद आ ही जाता है वो कभी कभी मुझको

मुद्दतों के बाद आख़िर अब सुकून पाया है
याद क्यों दिलाते हो गुजरी ज़िन्दगी मुझको

वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको

ज़िन्दगी का हर लम्हा दर्स है नया ''शाहिद''
हर क़दम पे मिलती है सीख इक नई मुझको
शाहिद मिर्जा शाहिद

46 comments:

ज्योति सिंह said...

छू सका न फितरत का फन ये आज भी मुझको
आईने में तकती है मेरी सादगी मुझको

मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको
shuruaat karte hi baat chhoo gayi man ko .waah waah waah bahut khoob

Udan Tashtari said...

मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको


-क्या बात है शाहिद भाई..बहुत खूब!!

Arun sathi said...

वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको



इरसाद शाहिद जी

कमाल के शेर

सुभालअल्लाह।

devendra gautam said...

अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको

वाह! क्या बात है....

---देवेंद्र गौतम

रश्मि प्रभा... said...

वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको
... bahut hi badhiyaa

Unknown said...

bahut khoobsoorat.

Narendra Vyas said...

जीवन का सम्पूर्ण फ़लसफ़ा आपके शेरो अदब में उतर आया है. ग़ज़ल का हर शेर लाज़वाब. वाह ! यक़ीनन ये मुक़म्मल ग़ज़ल दिलोज़हन में दस्तक दे रही है..शुक्रिया मिर्ज़ा साहब, आभार !!

संजय भास्‍कर said...

क्या बात है.
हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

kshama said...

अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
Gazab kee panktiyan hain! Waise pooree gazal behad achhee hai!

Anonymous said...

वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको(

वाह ..बहुत खूब ।

shikha varshney said...

मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको.
क्या बात कही है शाहिद साहब ! बहुत खूब.

rashmi ravija said...

मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको

बहुत खूब....शानदार ग़ज़ल..

दिगम्बर नासवा said...

वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको ...
आदाब शाहिद भाई ... बहुत ही कमाल की ग़ज़ल एक मुद्दत के बाद दुबारा आपकी ब्लॉग पर पढ़ने को मिली है ... इंसानी जज़्बातों को बखूबी उठाया है आपने इस ग़ज़ल में ... और ये शेर तो लाजवाब है .... जिंदाबाद ....

Rajesh Kumari said...

अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको vaah a gr8 sher.bahut umda ghazal hai.kya baat hai.shahid ji ghazal mujhe bahut pasand aati hain.aap jaisi to nahi par kabhi kabhi likhti hoon.aapse prerit hokar agli post ghazal likh rahi hoon honsla afjaai ke liye jaroor aaiyega.

विशाल said...

मुद्दतों के बाद आख़िर अब सुकून पाया है
याद क्यों दिलाते हो गुजरी ज़िन्दगी मुझको

bahut khoob ,shahid bhai.

Jyoti Mishra said...

beautiful lines !!!

Satish Saxena said...

अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको

कभी कभी जरा सी भूल जीवन भर रुलाती है ...शुभकामनायें शाहिद भाई !

daanish said...

हर क़दम पे मिलती है सीख इक नई मुझको

इस खूबसूरत मिसरे के लिए
ढेरों बधाई के बाद
कुछ दीगर अश`आर की बात भी हो जाए
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
बहुत खूब कहा जनाब
और
इस शेर की तो बात ही ख़ास है ...
वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको
वाह - वा !!
खूबसूरत ग़ज़ल ,,, खूबसूरत अंदाज़ .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत उम्दा ग़ज़ल!

ज्योति सिंह said...

sabse pahle tippani karne ka saubhagya mil hi gaya ,kai baar sochi magar mauka chhutta raha ,aaj safalta hasil ho gayi ,aai hoon to ek sher aur pasand ke...

अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको

मुद्दतों के बाद आख़िर अब सुकून पाया है
याद क्यों दिलाते हो गुजरी ज़िन्दगी मुझको
apne fateh par gumaan hai mujhko

इस्मत ज़ैदी said...

मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए

बहुत ख़ूब ! ये अकेला मिसरा ज़िंदगी के उस पहलू की तरफ़ इशारा करता है जिस का पूरा होना बेहद मुश्किल है

अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुज़दिली मुझको
वाह !क्या बात है !ये हौसला कर पाना भी आसान नहीं ,इस कशमकश को ख़ूबसूरती से क़लमबन्द किया है


वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको
यूं तो हर शेर ही ख़ूबसूरत है लेकिन
इस शेर में अपनी ही ख़ुशी को महसूस न कर पाने क्की बेचारगी का जवाब नहीं

***Punam*** said...

"छू सका न फितरत का फन ये आज भी मुझको
आईने में तकती है मेरी सादगी मुझको

मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको

मुद्दतों के बाद आख़िर अब सुकून पाया है
याद क्यों दिलाते हो गुजरी ज़िन्दगी मुझको!"
हर शेर काबिल-ए-तारीफ है..

'कहते है के शाहिद का है अंदाज़-ए-बयां और..'.

नीरज गोस्वामी said...

शाहिद भाई मतले से मकते तक मुसलसल दिल को छूते शेरों से सजी इस ग़ज़ल के लिए जितनी दाद दूं कम ही पड़ेगी...क्या लिखते हैं आप भाई जान...वाह...जिंदाबाद शाहिद भाई जिंदाबाद.

नीरज

Urmi said...

टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
ख़ुद पे रख नहीं पता मैं कभी कभी काबू
याद आ ही जाता है वो कभी कभी मुझको..
वाह! क्या बात है! दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ! सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!

Sunil Kumar said...

अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
जबर्दस्त शेर मुबारक हो ....

शारदा अरोरा said...

bahut badhiya gazal ..

Vivek Jain said...

बहुत सुंदर गज़ल,बधाई
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Rajeev Bharol said...

शाहिद जी, ग़ज़ल बहुत ही खूबसूरत है..

Kailash Sharma said...

वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको

.....बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...हरेक शेर लाज़वाब..

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

'अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया

उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको "

......................बेहतरीन शेर

...................उम्दा ग़ज़ल , हर शेर बेहतरीन

Dr (Miss) Sharad Singh said...

लाजवाब ग़ज़ल...

hem pandey said...

मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको

- काश ऐसा सभी के साथ हो |

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत प्‍यारी गजल कही है।

---------
मौलवी और पंडित घुमाते रहे...
सीधे सच्‍चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।

सदा said...

छू सका न फितरत का फन ये आज भी मुझको
आईने में तकती है मेरी सादगी मुझको

मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको

बहुत खूब कहा है आपने ।

Pawan Kumar said...

शाहिद भी... आदाब
एक बार फिर वही आपके तेवर... माशा अल्लाह!!!!!
छू सका न फितरत का फन ये आज भी मुझको
आईने में तकती है मेरी सादगी मुझको

मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको
जिंदाबाद...... !!!

अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको

ये बुजदिली भी बहुत तीस देती है कभी कभी....!!

ज़िन्दगी का हर लम्हा दर्स है नया ''शाहिद''
हर क़दम पे मिलती है सीख इक नई मुझको

मतला ता मक्ता ग़ज़ल शानदार है...... हर एक शेर बेहतरीन है. कथ्य के हिसाब से एकदम दुरुस्त...!!

केवल राम said...

ख़ुद पे रख नहीं पाता मैं कभी कभी काबू
याद आ ही जाता है वो कभी कभी मुझको

उनकी याद आने पर खुद पर काबू रख पाना संभव नहीं ....मन के भाव बहुत सुन्दरता से पेश किये हैं आपने ...आपका आभार

चैन सिंह शेखावत said...

वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको

bahut khoob...damdar ghazal..

निर्मला कपिला said...

अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
बहुत खूब

मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको
बस यही तो खुदा ने अपने हाथ मे रखा है
खूबसूरत गज़ल के लिये बधाई।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

ज़िन्दगी का हर लम्हा दर्स है नया ''शाहिद''
हर क़दम पे मिलती है सीख इक नई मुझको
शानदार ग़ज़ल का सुन्दर मक़्ता. बधाई.

Asha Joglekar said...

Shahid jee, bahut hee khoobsurat gajal. Har sher bahut sunder par ismen jaise maine apne aap ko dekh liya.
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको

Asha Joglekar said...

Shahid bhaee behad khoobsurar gajal jiska har sher nayab hai par is sher men muze apana aks najar aaya.
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको

vijay kumar sappatti said...

बहुत खूब , शहीद साहेब ... गज़ल कि क्या तारीफ करूँ.. एक एक शेर दिल में धड़क रहा है....

बधाई

आभार
विजय

कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

सुनील गज्जाणी said...

मुद्दतों के बाद आख़िर अब सुकून पाया है
याद क्यों दिलाते हो गुजरी ज़िन्दगी मुझको
आदाब आप को इस खू सूरत शेर के साथ . ग़ज़ल का शेर उम्दा है . दिल को छूने वाला है . शुक्रिया
आदाब

Anonymous said...

मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको

बहुत खूब,ह्रदय स्पर्शी रचना...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको

वाह! वाह! सर... हर शेर बेशकीमती है...
शानदार ग़ज़ल...
सादर.

Maheshwari kaneri said...

बहुत खूब....शानदार ग़ज़ल..