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Friday, December 18, 2009

आधी बाजी आधी मां


मां
इस एक लफ्ज़ में जैसे इक दुनिया समा जाती है
जनाब निदा फाज़ली साहब ने कितनी खूबसूरत ग़ज़ल कही है

'बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां'

मोहतरम मुनव्वर राना साहब के
'मां' के मुताल्लिक कहे गये शेर अलग ही जहान में ले जाते हैं

कुछ सादा से अश'आर खाकसार ने भी कहने की कोशिश की है.

पेश-ए-खिदमत हैं-

तोहफा है नायाब खुदा का दुनिया जिसको कहती मां
हर बच्चे की मां है लेकिन अपनी मां है अपनी मां

छांव घनेरे पेड सी देकर धूप दुखों की सहती मां
एक समन्दर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी मां

आमना हो या दाई हलीमा रूप जुदा हो सकते हैं
(ये मिसरा यूं भी कहा गया है)
देवकी हो, या हो वो यशोदा, रूप जुदा हो सकते हैं
मां तो आखिर मां होती है, ये भी मां है वो भी मां

मां की कमी महसूस हो अब छोटे भाई-बहनो को
चंचल लडकी बंटकर रह गई आधी बाजी आधी मां

मां रही तो सब्र करो और ये भी तो सोचो शाहिद
मां से खुद महरूम रही है 'हव्वा' जो है सबकी मां
शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद'

23 comments:

वन्दना अवस्थी दुबे said...

मां की कमी महसूस न हो अब छोटे भाई-बहनो को
चंचल लडकी बंटकर रह गई आधी बाजी आधी मां

आपने तो बहुत भावुक कर दिया शाहिद जी. मुनव्वर राना मेरे भी पसंदीदा शायर हैं.

इस्मत ज़ैदी said...

shahid sahab,jazbat par jazbat ka aisa izhar hamen jazbati kar gaya
sada se alfaz men kahi gayi ye ghazal dil ki gahraiyon men utarti hai .

इस्मत ज़ैदी said...
This comment has been removed by a blog administrator.
हास्यफुहार said...

छांव घनेरे पेड सी देकर धूप दुखों की सहती मां
एक समन्दर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी मां
बहुत अच्छी ग़ज़ल।

Randhir Singh Suman said...

nice

daanish said...

तोहफा है नायाब खुदा का दुनिया जिसको कहती मां
हर बच्चे की मां है लेकिन अपनी मां है अपनी मां

हुज़ूर आदाब !

इस नायाब ग़ज़ल की श़क्ल में बहुत ही
क़ीमती तोहफा अता किया है आपने हम सब को
ग़ज़ल का मतला ही एक सादिक़ तस्वीर
सामने ला पाने में कामयाब हो गया है...
मन के सच्चे खयालात का बड़ी ही ख़ूबसूरती से
इज़हार किया गया है ....
मेरी जानिब से ढेरों मुबारकबाद . . .

Dr.R.Ramkumar said...

देवकी हो, या हो वो यशोदा, रूप जुदा हो सकते हैं
मां तो आखिर मां होती है, ये भी मां है वो भी मां

मां की कमी महसूस न हो अब छोटे भाई-बहनो को
चंचल लडकी बंटकर रह गई आधी बाजी आधी मां

मां न रही तो सब्र करो और ये भी तो सोचो शाहिद
मां से खुद महरूम रही है 'हव्वा' जो है सबकी मां

गौतम राजऋषि said...

देर से आने के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ शाहिद साब।

कमाल की ग़ज़ल बुनी है सरकार। ग़ज़ब का मतला और शेर सारे शेर....अहा!!!!

बड़े दिनों बाद मुनव्वर राना को टक्क्कर देते अशआर नजर आये हैं।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

वंदना जी,
आपका आभार प्रकट करता हूं, आपने हमेशा नये शब्दों में हौसला अफज़ाई की है.
इस्मत साहिबा, आपका और वंदना जी का भावुक या जज्बाती होना, ग़ज़ल की कामयाबी की दलील है.
'हास्य फुहार' और सुमन जी, धन्यवाद
मुफलिस जी,
आपकी सलाहियतों की कद्र करते हैं हम..आपको शुक्रिया के सिवा क्या कहें..
डा. आर. रामकुमार जी, ...इस अंदाज में मिली दाद के लिये शुक्रिया

गौतम राजरिषी जी,
आपने जिन अल्फाज़ में तारीफ की है,
रचनाकार का हौसला बढ़ाने के लिये बहुत बड़ी बात है.
हकीकत ये है कि मनव्वर राना साहब उस मकाम पर हैं,
जहां वो हमारे आदर्श और प्रेरक बन चुके हैं
उनसे तुलना करने का ख्याल तक ज़ेहन में लाना,
हमारे बूते से बाहर है...
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

अनामिका की सदायें ...... said...

Shahid janaab bahut acchhi gazel likhi hai...is topic par to jitna likha jaye kam hai...maa to ek tareh se khuda se bhi badh kar hai kyuki jo khuda hame is dharti par rooh ko shareer dekar chhod deta hai uske baad to maa ki ungli,uska aanchal aur uske sanskaar hi hote hai jo tamaam umr sath chalte hai.
hatts off to u for this post.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

छांव घनेरे पेड सी देकर धूप दुखों की सहती मां
एक समन्दर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी मां
---यह शेर बेहद खूबसूरत है। बधाई स्वीकार करें।

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

maan ko bahut sunder paribhashit kiya hai aapne.mere blog per aane ka shukriya shahid sahab!

ज्योति सिंह said...

छांव घनेरे पेड सी देकर धूप दुखों की सहती मां
एक समन्दर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी मां.
maa shabd ki khoobsurati ko to poori taur par byaan nahi kar sakte ,phir uske vishya me kahne ke kuchh kabil kahan ,maa ke samne to khuda bhi sar aadar se jhukaate hai ,phir bhi uski kurbaani hum nahi samjh paate ,jiske saath mamta ki chhav nahi ,use jindagi kadi dhoop si najar aati hai .

आनन्द वर्धन ओझा said...

मुआफी चाहता हूँ हुजूर, ज़रा देर से आया ! मासूम अल्फाजों में बेहतरीन अशार कहे अपने ! सारा कहर तो दिल पर ही हुआ न ! अंतिम दोनों अशारो में से पहले ने पुराने ज़ख्मों को खुरच डाला और दूसरे ने मरहम-सा काम किया है !
मेरा सलाम क़ुबूल करें !!
--आनंद.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

अनामिका जी, ज्योति सिंह जी, डा. कविता 'किरन' जी
सच कहा आपने,
मां के लिये जितना भी कहा जाये, मां की महिमा के लिये कम ही है..

आनंद वर्धन जी, आपने सही फरमाया है,
छोटे भाई-बहनों के लिये इसी तरह बंट जाती है चंचल लड़की
और मां न हो, तो सब्र के लिये इसके अलावा क्या सोचें..

कोशिश पसंद करने के लिये आप सभी का दिल से शुक्रिया
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

दिगम्बर नासवा said...

तोहफा है नायाब खुदा का दुनिया जिसको कहती मां
हर बच्चे की मां है लेकिन अपनी मां है अपनी मां ..

शाहिद साहब ...... बहुत ही दिल से लिखा और सीधे दिल में उतरे आपका शेर ......... माँ जैसी नायाब दौलत और कोई नही ... इक ऐसा नाम जो जो बस देता है ...... देते ही रहता है ...... बदले में कुछ आशा नही रखता ......

बेमिसाल शेर है ..... सॅंजो कर रखने वाले ...........

नीरज गोस्वामी said...

शाहिद भाई आपके इन अशआरों की जितनी तारीफ़ करूँ कम है...बेहतरीन...
छांव घनेरे पेड सी देकर धूप दुखों की सहती मां
एक समन्दर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी मां

ये ही नहीं बाकी के सारे भी बेहतरीन हैं...बहुत अच्छा लगा पढ़ कर...लिखते रहें...
नीरज

kshama said...

Aapne aankhen nam kar dee...sach hai...mamta ka pyasa samandar hai maa..

Unknown said...

subhan Allah.........ek baar aur apne apne kalam ka jadu dikhaya hai shahid sahab....dil ko chugaye apke alfaaz waqayyii haqeeqat bayan ki apne apne andaaz me.....aur apse ham mazirath bhi chahte hain ki ham yahan thore din se aanahi sake masrufiyat ki wajhe se insha Allah abhi aaya karenge aap likhte rahiye

Anonymous said...

bahut khoob

Alpana Verma said...

बहुत अच्छे शाहिद साहब!
आप तो एक बेहतरीन शायर हैं.
हर एक शेर पर वाह! वाह! कह रही हूँ!
[यह तो तय है की आप को मंच से जाने नहीं देते होंगे सुनने वाले!]

Udan Tashtari said...

मां न रही तो सब्र करो और ये भी तो सोचो शाहिद
मां से खुद महरूम रही है 'हव्वा' जो है सबकी मां

क्या कहें..आज ही तो...!!

अच्छा महसूस किया कुछ इस उदास दिन पर!! बहुत आभार आपका!!

KESHVENDRA IAS said...

"मां की कमी महसूस न हो अब छोटे भाई-बहनो को
चंचल लडकी बंटकर रह गई आधी बाजी आधी मां"

Shahid saheb, kamal ka likha hai...bahut hi pyari or man ko chhoo jane wali hai ye Gazal.