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Saturday, December 26, 2009

पल दो पल














लीजिये, ये साल भी खट्टी-मीठी यादें छोड़कर विदा हो रहा है
'नये साल की मुबारकबाद' का सिलसिला चल रहा है
इस साल के जाते जाते अपनी बात लेकर एक बार फिर हाज़िर हुआ हूं
इस उम्मीद के साथ कि आप इनसे  इत्तेफाक करेंगे-
पेश-ए-खिदमत है-

जुल्म की ज़माने में ज़िन्दगी है पल दो पल
ये है नाव कागज़ की, तैरती है पल दो पल
 

ये भी हादसा आख़िर, लोग भूल जायेंगें
कंकरी से पानी में, खलबली है पल दो पल
 

मैं भी जाने वाले का, ऐतबार कर बैठा
कह रहा था तन्हाई काटती है पल दो पल
 

दिल करार पाता है, आखरत संवरती है
रहमतें मुसलसल हैं, बंदगी है पल दो पल
 

वक्त का तकाज़ा है अहतियात लाजिम है
खुदगरज़ ज़माना है दोस्ती है पल दो पल
 

शाहिद मिर्जा शाहिद

17 comments:

हास्यफुहार said...

ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।

शबनम खान said...

शाहिद जी बहुत खूबसूरत अल्फाज़ लिखे है...

गौतम राजऋषि said...

बेमिसाल ग़ज़ल, शाहिद साब!

खासकर इस शेर पर तो करोड़ों दाद कबूल फरमाइये:-
"मैं भी जाने वाले का, ऐतबार कर बैठा
कह रहा था तन्हाई काटती है पल दो पल"

बहुत खूब!

अनामिका की सदायें ...... said...

hadse jo aate to hai pal do pal k liye
zindgi ko khurch jate hai tamam umr k liye..

ye jane wala saal bhi kuchh to itihaas likh gaya..

har ek shakhs is mulk ka zindgi ki nayi kitaab padh gaya.

shahid ji bahut khoobsurat gazel likhi aapne jisne mujhe bhi 2 lines likhne ko uksa diya..

badhayi.

निर्मला कपिला said...

ये भी हादसा आख़िर, लोग भूल जायेंगें
कंकरी से पानी में, खलबली है पल दो प

वक्त का तकाज़ा है अहतियात लाजिम है
खुदगरज़ ज़माना है दोस्ती है पल दो पल
लाजवाब गज़ल ।शाहिद जी शाय्द पहली बार आपका ब्लाग देखा है वन्दना जी के ब्लाग से लिन्क मिला। आज आपकी कुछ पिछली पोस्टें भी पढी बस ब्लाग पर ही ठहर गयी हूँ पता नहीं आज तक कैसे ये ब्लाग मेरी नज़र से अछूता रह गया खैर देर आये दुरुस्त आये। धीरे धीरे सभी पढ लूँगी। आपकी कलम को सलाम है नये साल की मुबारकवाद ।

दिगम्बर नासवा said...

ये भी हादसा आख़िर, लोग भूल जायेंगें
कंकरी से पानी में, खलबली है पल दो पल..

हक़ीकत से जुड़े शेर .......... मुकम्मल, सुभान अल्ला ......... मज़ा ले रशा हूँ शाहिद जी .........

daanish said...

हुज़ूर....
ऐसी नायाब ग़ज़ल...
जाने क्यूं नज़रों से ओझल रह गयी.....
एक-एक शेर बार-बार पढने को दिल करता है . मतले में तो आपकी दुआ का साथ भी झलकता है ज़ुल्म की ज़िंदगी
पल-दो-पल से भी कम हो,,खुदा करे .
और ये शेर.....
"ये भी हादसा आख़िर, लोग भूल जायेंगें
कंकरी से पानी में, खलबली है पल दो पल"
aaj के इंसान की फ़ित्री हालत को
बयान करता हुआ लाजवाब शेर है ये......
ग़ज़ल का लहजा पुख्ता है...
बात पहुँच रही है
आप की सोच की सच्चाई अश`आर में नुमायाँ है
और यही खूबियाँ
एक बहुत अच्छी ग़ज़ल की ज़ामिन होती हैं .
मुबारकबाद .

देवेन्द्र पाण्डेय said...

ये भी हादसा आख़िर, लोग भूल जायेंगें
कंकरी से पानी में, खलबली है पल दो पल
---बेहतरीन गज़ल में नाजुक सा यह शेर, धमाल करता है.

विनोद कुमार पांडेय said...

पल दो पल की जिंदगी है अगर इसमें हम अपने कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियाओं का निर्वाह करते रहे तो यह जिंदगी कभी उदासीन नही लगेगी और हँसते-गाते पल दो पल में बीत जाएगी...

बहुत बढ़िया ग़ज़ल..बधाई ....नववर्ष की भी बधाई एडवांस में...

विनोद कुमार पांडेय said...
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Pushpendra Singh "Pushp" said...

बहुत ही सुन्दर रचना का खुबसुरत शेर
वक्त का तकाज़ा है अहतियात लाजिम है
खुदगरज़ ज़माना है दोस्ती है पल दो पल
बहुत -२ बधाई

Alpana Verma said...

ये भी हादसा आख़िर, लोग भूल जायेंगें
कंकरी से पानी में, खलबली है पल दो पल

-उम्दा ख्याल हैं!
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल है.
-अच्छा ब्लॉग है आप का..आज पहली बार आना हुआ.
नये साल की मुबारकबाद के सिलसिले शुरू हो गये हैं ... मेरी भी शुभकामनाएँ हैं.

सर्वत एम० said...

मैं भी जाने वाले का, ऐतबार कर बैठा
कह रहा था तन्हाई काटती है पल दो पल
भाई शाहिद, दिल से बेसाख्ता एक ही लफ्ज़ निकला-- सुब्हान अल्लाह. खुदा करे, इसी तरह कामयाबी और कामरानी तुम्हारे कदम चूमती रहे. मैं एक गुस्ताखी कर रहा हूँ, लगातार 'तुम' का इस्तेमाल कर रहा हूँ, उम्मीद है बुरा नहीं मानोगे.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

धन्यवाद 'हास्य फुहार' जी,
शबनम साहिबा, शायद आप खूबसूरत अशआर कहना चाहती थीं
गौतम जी, आपके दाद के अन्दाज़ की हम भी दाद देते हैं.
अनामिका जी, सुबहान अल्लाह, क्या खूब कहा है आपने.
निर्मला जी, आपके आशीर्वाद से नई उर्जा मिली है.
दिगम्बर नासवा जी, शुक्रिया, चलिये आप शेरों का मज़ा लीजिये.
वैसे हम भी आप जैसे अच्छा कहने वालों के ब्लाग पर जाकर 'हिसाब बराबर' करते रहते हैं.
डीके मुफलिस जी, आप वो हैं, जिनसे हम पहले ही हार मान चुके हैं. (बातों में भी, हुस्ने-अख्लाक में भी)
देवेन्द्र जी, विनोद जी, पीसिंह जी, आपका दिल से शुक्रिया.
अल्पना जी, हौसला अफज़ाई के लिये शुक्रिया, सिलसिला जारी रखने का वादा भी कीजिये.
हरकीरत जी, आपके शब्द यहां भी भाव विभोर कर गये

मोहतरम 'सर्वत' साहब, आपकी दुआएं मिलीं, जैसे सब कुछ मिल गया. छोटों के लिये जो अपनापन 'तुम' में आपने दिया है, यकीन मानिये, दिल भर आया. आपकी दुआएं मिलती रहेंगी ना !!!

chandrabhan bhardwaj said...

waqt ka takaza hai aehtiyat lazim hai khud garaz zamana hai dosti hai pal do pal. Bahut sunder sher hai Shahid bhai. Badhai. Naye saal ke liye bhi hardik shubh kamanaayen.

इस्मत ज़ैदी said...

shahid sahab ,samajh nahin pa rahi hoon kis sher ko zyada achchha kahoon
*zulm ki zamane............
*main bhi..................
*ye bhi hadsa.............
bahut khoob kya kuchh kah diya apne in ashar men
mubarakbad ke mustahaq hain ap

Razi Shahab said...

बहुत खूब!