साहेबान,
पेश है एक ग़ज़ल. उम्मीद है पसंद करेंगे, और अपनी दुआओं से नवाज़ेंगे
ग़ज़ल.
शामिल हैं कितने तंज़ के पत्थर मज़ाक़ में
करने लगा सितम भी, सितमगर मज़ाक़ में
मिलता रहा है दर्द जो अकसर मज़ाक़ में
उसको उड़ाता रहता हूं हंसकर मज़ाक़ में
”हमने भुला दिया तुम्हें, तुम भी भुला ही दो’
रोया बहुत ये बात वो कहकर मज़ाक़ में
मुझको मना रहा था, मगर खुद ही रूठकर
करने लगा ’हिसाब बराबर’ मज़ाक़ में
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
62 comments:
शाहिद साहब ,आदाब अर्ज़ है ,
एक बार फिर एक बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल
जज़्बात ओ एह्सासात को इस ख़ूबसूरती से अश’आर में ढाल देना आप का ही फ़न है ,मुबारक हो
शाहिद जी इस बेहतरीन गजल पर अभी तक कोई कमेन्ट नहीं ?
आश्चर्य है
कहीं माडरेशन का चक्कर ना हो
वैसे गजल बहुत पसंद आयी
रदीफ काफिया का मेल तो बहुत ही कठिन चुना आपने मगर इतनी सादा पन से बात कही, कि पढ़ कर दिल खुश हो गया
are aapne to kamaal kar dala mazak mazaak main..
behad khubsurat ehsaas or kamaal ki gazal ..
nice
”हमने भुला दिया तुम्हें, तुम भी भुला ही दो’
रोया बहुत ये बात वो कहकर मज़ाक़ में
मुझको मना रहा था, मगर खुद ही रूठकर
करने लगा ’हिसाब बराबर’ मज़ाक़ में
bahut khoob. Bertareen sher hain.
वाह साहब!! बहुत खूब!
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
nice
HALMAZAK-MAZAK MAI AAPNE BAHUT KAH DALA ..BEHAD KHOOBSURAT GAZAL..
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में
Kya baat hai...mere paas alfaaz nahi...kya kahun?
मिलता रहा है दर्द जो अकसर मज़ाक़ में
उसको उड़ाता रहता हूं हंसकर मज़ाक़ में
”हमने भुला दिया तुम्हें, तुम भी भुला ही दो’
रोया बहुत ये बात वो कहकर मज़ाक़ में
मुझको मना रहा था, मगर खुद ही रूठकर
करने लगा ’हिसाब बराबर’ मज़ाक़ में
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गय
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में
rishton ki baarikiyo ko jo samjhte hai ,wo isi saralata ke saath use sambhal lete hai ,ise khoobi kahiye ya hunar magar isse rishton ke neev nahi hilte ,aapke gazal ki gahrai mere man ko bheega gayi ,kash yahi samjhdari sabme ho ,mukaddar yoon hi savaranta rahe .bahut hi khoobsurat har baar ki tarah ,laazwaab .ek mirza galib rahe aur ek aap dono laazwaab ,galib ko jab tak main ek baar sunati nahi sone se pahle to sukoon bhara din nahi hota wo mera ,mujhe itne pasand hai ki har safar me rachna aur gazal saath hoti hai unki .aap me bhi kuchh waisa hi andaaj hai .ye nahi mazak hai .badhiya .
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में
ये मजाक तो पसंद आ गया. बहुत खूब पर, इसे मजाक में न लें
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल....
दर्दे गम सुना दिया वो भी मजाक में
बैठे हैं सोचते हुए हम भी मजाक में ...
मिलता रहा है दर्द जो अकसर मज़ाक़ में
उसको उड़ाता रहता हूं हंसकर मज़ाक़ में..
बेहद ख़ूबसूरत और शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बहुत खूब! बधाई!
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में
maan gaye
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में.......
खूबसूरत ग़ज़ल.... सुंदर अभिव्यक्ति।
bahut badhiya
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में
sir mazak kai baar bade jakhm de jaati hai
aise hi kisi mazaak ka anjaam ap yaha dekh sakte hain..."www.csdevendrapagal.blogspot.com"
"हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में"
क्या बात है शाहिद भाई ! ...समां बाँध दिया आपने !
शुभकामनायें !
वाह !!! हमेशा की तरह बहुत ही खूबसूरत. हर शेर अपने में मुकम्मल ...सही कहा न. मेरी उर्दू अच्छी नहीं है. पर मुझे ग़ज़लें बहुत पसन्द हैं. उर्दू भी बहुत अच्छी लगती है. बहुत मीठी-मीठी सी, अपनी-अपनी सी.
मिलता रहा है दर्द जो अकसर मज़ाक़ में
उसको उड़ाता रहता हूं हंसकर मज़ाक़ में
सिर्फ,,,और सिर्फ लफ़्ज़ों पे ना जाएं तो पता चले
कि ऐसी सादगी से कितनी गहरी बात कह दी गयी है
इन दो मिसरों में .... वाह
और ...ग़ज़ल में जो आपने रदीफ़ लिया है
उसे निभाना बहुत ही मुश्किल काम है
जिसे आपने बखूबी निभाया है
"रोया बहुत, ये बात वो कह कर मज़ाक़ में ..."
जवाब नहीं इस अकेले मिसरे का ...
बहुत खूब
Harek pankti lajawab hai!Kya gazab ka fan hasil hai aapko!
सुबह भी आँखे फाड़ फाड़ के ग़ज़ल पढ़ी थी...
और कुछ कहा नहीं गया था..
बस फोर्मलिटी पूरी कर के चले आये थे..
अब रात के वक़्त भी उसी तरह से पढ़ रहे हैं...
और कुछ कहते नहीं बन रहा....
हर इक शे'र दिल को परेशान करने पर तुला है....
यहाँ तक कि मुफलिस जी भी उतनी तारीफ़ नहीं कर सके...
जितनी अपने दिल में मचल रही है..
"हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में"
सच है शाहिद जी. कुछ रिश्ते ऐसे ही अनजाने में बन जाते हैं जो बहुत खूबसूरत भी होते हैं. बहुत सुन्दर गज़ल.
एक एक शब्द बेशकीमती नगीने की तरह है..
शामिल हैं कितने तंज़ के पत्थर मज़ाक़ में
करने लगा सितम भी, सितमगर मज़ाक़ में
मिलता रहा है दर्द जो अकसर मज़ाक़ में
उसको उड़ाता रहता हूं हंसकर मज़ाक़ में
”हमने भुला दिया तुम्हें, तुम भी भुला ही दो’
रोया बहुत ये बात वो कहकर मज़ाक़ में
मुझको मना रहा था, मगर खुद ही रूठकर
करने लगा ’हिसाब बराबर’ मज़ाक़ में
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में
और
पढ़ी ग़ज़ल जो आपकी न कुछ मैं कह सका
मुह सिल दिया है आपने मेरा मजाक में...
बेहद उम्दा ग़ज़ल..वाकई मैं निःशब्द हूँ...बहुत बहुत शुक्रिया !!
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में
वाह! क्या बात कह दी आप ने भी यूँ ही मज़ाक में!
ऐसा मज़ाक जो जीवन संवर दे बड़ा हसीन होता है.
****बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल कही है.वाह!वाह!!****
आदाब जनाब .
इतनी अच्छी ग़ज़ल वो भी मज़ाक़ में ? दिल कहाँ रह पायेगा बिना दाद दिए ! वाह.
क्षमा चाहूँगी ....व्यस्त थी, देर से हाज़िर हुई लेकिन आपको बहुत बहुत धन्यवाद इस ग़ज़ल के लिए बहुत उम्दा ग़ज़ल है ! आपका मज़ाक करने का अंदाज़ भी इतना जबरजस्त है आज पता चल गया मज़ाक़ में :)
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में
वैसे तो दिल किया पूरी ग़ज़ल ही कोट कर के बताए की कितनी पसंद आई है ....लेकिन इस शेर में वो बात है, जो इस मज़ाक को बहुमूल्य बना रही है .....बहुत सुन्दर !!
शामिल हैं कितने तंज़ के पत्थर मज़ाक़ में
करने लगा सितम भी, सितमगर मज़ाक़ में
”हमने भुला दिया तुम्हें, तुम भी भुला ही दो’
रोया बहुत ये बात वो कहकर मज़ाक़ में
शाहिद भाई मतले से मकते तक का सफ़र मजाक मजाक में कट गया और पता भी नहीं चला...इस रदीफ़ के साथ आपने बेहतरीन शेर कहे हैं...सुभान अल्लाह....एक एक शेर काबिले दाद है...वाह...कमाल किया है आपने...कमाल...खुदा कसम आपकी कलम चूमने का जी कर रहा है...
नीरज
शाहिद जी ... आदाब ...
इतनी खूबसूरत ग़ज़ल की निःशब्द हूँ .... काफिया और रदीफ़ का मेल सच मच बहुत कठिन तट पर आपने उसमे बहुत खूबसूरती पैदा कर दी है ....
ये शेर तो ख़ास कर बहुत ही कमाल का लगा ......
मुझको मना रहा था, मगर खुद ही रूठकर
करने लगा ’हिसाब बराबर’ मज़ाक़ में
हमने भुला दिया तुम्हें, तुम भी भुला ही दो’
रोया बहुत ये बात वो कहकर मज़ाक़ में
Bahut Khoob...
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में
भाई हजारों दाद .............कुर्बान होना चाहते हैं इस शेर पर हम...! ये दो मिसरे...........बस मुकम्मल हैं अपने आप में...!
padkar jise aaye hamaari aankh men aansoo
Shahid gaya aisi ghazal likh kar mazak men
Aachchhi ghazal hai badhai, par ismen kuchh aur sher jod dete to aur bhi achchha hota.
Chandrabhan Bhardwaj
शामिल हैं कितने तंज़ के पत्थर मज़ाक़ में
करने लगा सितम भी, सितमगर मज़ाक़ में
वल्लाह.....!!
हमें तो अब तंज़ के पत्थरों का भी असर नहीं होता ......
मिलता रहा है दर्द जो अकसर मज़ाक़ में
उसको उड़ाता रहता हूं हंसकर मज़ाक़ में
बहुत खूब ......
”हमने भुला दिया तुम्हें, तुम भी भुला ही दो’
रोया बहुत ये बात वो कहकर मज़ाक़ में
लाजवाब.....सबसे पसंदीदा ......!!
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ में
बस आप यूँ ही संवरते रहे .....दुआ है ......!!
मुझको मना रहा था, मगर खुद ही रूठकर
करने लगा ’हिसाब बराबर’ मज़ाक़ में
यूँ तो ग़ज़ल ही खूब तर है लेकिन इस शेर ने मुझे ज्यादा लुभाया. विलम्ब के लिए मुआफी.
शामिल हैं कितने तंज़ के पत्थर मज़ाक़ में
करने लगा सितम भी, सितमगर मज़ाक़ में।
क्या कह दिया, शाहिद भाई, ये तो इन्तेहा हो गई सितम की। पहली बार में ये शेर बड़ा अजीब सा लगा कि भाई सितमगर तो सितम करेगा ही, इसमें नया क्या हो गया, बस इसी से ठिठक गया इस शेर पर और आपने कहा इसलिये समझ कर ही आगे बढ़ा वरना खारिज कर आगे बढ़ जाता। मुझे लगता है कि अशआर को लेकर एक ग़लत धारणा है कि शेर को स्पष्ट करने की या भूमिका की ज़रूरत नहीं होती। शेर भी काव्य है और काव्य में जब भाव होता है तो कभी-कभी कुछ गहरे उतरने की ज़रूरत होती है जिससे भाव तक पहुँचा जा सके। कई पाठक/श्रोता सतह से ही शेर को खारिज कर लौट जाते हैं और कमज़ोर सिद्ध होता है शायर।
बाकी शेर भी उतने ही दमदार हैं लेकिन वो सीधे-सीधे समझ आ रहे हैं।
भाई ये रदीफ़ काफि़या मैं रख रहा हूँ, वरना बहुत बेचैनी रहेगी।
पहला ही शेर कमाल का लगा | मैं जानती हूँ कि आप उस दौर से गुजर रहे हैं , जब हर छोटी से छोटी बात में भी शायराना अन्दाज़ नजर आता है और बस वो शेरों में तब्दील हो जाता है |
हमने भुला दिया तुम्हें, तुम भी भुला ही दो’
रोया बहुत ये बात वो कहकर मज़ाक़ में
बहुत खुब शाहिद भाई बहुत उम्दा ग़ज़ल है।
बहुत ही उम्दा गज़ल । लाज़वाब । शुक्रिया ।
भाई ,गजल की शास्त्रीयता तो मुझे पता नहीं ,पर भाव तो लग रहा है कि सच्ची घटना
सच बताएं ,कौन बिछड़ गया !!!!
शाहिद भाई, आपके खूबसूरत ग़ज़ल की शान में पेश है एक शेर मेरी तरफ से-
उनके जलवों के मारे नाक में अब आ चूका है दम
इजहार-ऐ-मोहब्बत करते हैं, पर मजाक़ में.
ढेर सारी शुभकामनाएँ आपके लेखन के लिए.
yaar kabhi gambheer hokar kuchh likha karo naa
acchhi gazal likh jate ho tum aksar mazaak men..!!
आपकी ग़ज़ल पर तनकीदी नज़रिये से गौर फरमा रहा हूं। मुझे उम्मीद है कि आप मेरी कमियों को नजरअंदाज कर देंगे। आपकी ग़ज़ल के मतला में मज़ाक में मिलने वाले दर्द को को मज़ाक में उड़ा देना वास्तव में काबिले तारीफ है। आपके अरूज़ से यह तो जाहिर होता ही है कि आपको इसकी बहर्, वज़्न और तमाम बारीकियों की अच्छी जानकारी है। शेर -
हमने भुला दिया तुम्हें, तुम भी भुला ही दो
रोया बहुत ये बात वो कहकर मज़ाक़ में
के ‘मिसरा एक ऊला’ में जिंदगी के कुछ उसूलो की बात की गई है जिसपर तरक्की का सारा दारोमदार है।
अगर बुरा न माने तो एक बात जरूर कहना चाहूंगा। आजकल की तरक्की पसंद शाईरी के मक़्ता में तकल्लुफ़ की अब जरूरत नहीं रह गई है। पुराने समय में ग़ज़ल एक दूसरे को सुनाई जाती थीं व अपना वजू़द रखती थी। इसलिए शायद तकल्लुफ जरूरी था। लेकिन आजकल प्रिंट मीडिया व अन्य माध्यम की वजह से इस अदब को कोई नुक्सान नहीं है। अतः इसका प्रयोग न भी किया जाए तो हर्ज़ नहीं है।
एक पुराना शे'र याद हो आया...
'बे-तकल्लुफ' इसलिए बेमक्ता कहता है ग़ज़ल..
कुछ कसक बाकी रहे हर बात कह लेने के बाद...
सॉरी......
'बे-तखल्लुस' ....
:)
kyaa kahein...?
miltaa rahaa hai dard jo aksar majaak mein...?
आप बेहतर लिख रहे/रहीं हैं .आपकी हर पोस्ट यह निशानदेही करती है कि आप एक जागरूक और प्रतिबद्ध रचनाकार हैं जिसे रोज़ रोज़ क्षरित होती इंसानियत उद्वेलित कर देती है.वरना ब्लॉग-जगत में आज हर कहीं फ़ासीवाद परवरिश पाता दिखाई देता है.
हम साथी दिनों से ऐसे अग्रीग्रटर की तलाश में थे.जहां सिर्फ हमख्याल और हमज़बाँ लोग शामिल हों.तो आज यह मंच बन गया.इसका पता है http://hamzabaan.feedcluster.com/
अरे वाह-वाह शाहीद साब....वाह-वाह। एकदम अलग-सी ग़ज़ल...हटकर के चुनी गयी रदीफ़ और उसका उतनी ही सहजता से निर्वहन...।
"”हमने भुला दिया तुम्हें, तुम भी भुला ही दो’
रोया बहुत ये बात वो कहकर मज़ाक़ में"
इस शेर पे, इसके अंदाज़ पे बिछ गये हैं हुजूर!
Kamaal ka mazaak kiya hai, Shahid Miyan!
Mazaak hi mazaak mein sanjeeda baatein keh di!
Mubarak!
शायद जिन्दगी मजाक के सिवा कुछ भी नही 1 बहुत कुछ कह गए आप मजाक मजाक में........
हमने भुला दिया तुम्हें, तुम भी भुला ही दो
रोया बहुत ये बात वो कहकर मज़ाक़ में
परेशान करने वाला शे'र है..
कुछ नया पोस्ट कीजिये साहिब...
जो हमारी पसंद का ना हो..
अच्छा, बहुत अच्छा लिखने वालों का कलाम पढने के बाद अक्सर यह सवाल जहन में घूमने लगता है कि 'क्या कहा जाए'.
आज बहुत दिनों के बाद आया हूँ और चकरा गया हूँ कि कमेन्ट के नाम पर क्या लिख दूं. कुछ रचनाएँ मुंह से वाह निकाल देती हैं. कुछ खामोश कर देती हैं. बहुत कम रचनाएँ ऐसी होती हैं जो पढने वाले को उसकी औकात बताएं. मैं पूरी गजल की बात करूं या एक-एक शेर पर तहसीन पेश करूं, समझ नहीं पा रहा हूँ. एक मसअला और भी है, जब ५० कमेंट्स आ चुके हों फिर बाकी क्या बचता है. फिर भी, मुझे खुशी है कि इतने दिनों के बाद भी मुझे स्टैंडर्ड पहले से जियादा ऊंचा मिला. मुबारक.
मैं भी बहुत जल्द फ्री हो कर आ रहा हूँ, अब शायद सिलसिला टूटेगा नहीं, दुआ करें मेरे हक में.
Shukriya kahne aayi ki, 'kavita' blogpe aapne behad mauzoom tippanee dee...tahe dilse shukrya!
Bahut Khoob ! Lajawab ghazal hai...
khas kar ye sher pasand aya...
मुझको मना रहा था, मगर खुद ही रूठकर
करने लगा ’हिसाब बराबर’ मज़ाक़ में
Insani fitrat par sateek kathan.
janab shahid sahb aadab bikaner se mohd' 'irshad' arj kar rhaun 'mzaaq' radif ko nibhte hue kya khub gazal kahi h is ke liye mubarqbad ummid
kartahu aap ise mayar ki gazalain kahate rhne
janab shahid sahab bazariye aakharkalas aapki gazal pdhne ko mile radif 'mazaaq me'ko aapne khub nibhaya h range tgazzullie bhatrin gazal ke lie mubarqbaad'irshad'
मजा़क मजा़क में कमाल की गज़ल कह डाली ।
shahid sahab,
mere blog par aa kar aapne mera maan aur hausla badhaya man se shukriya aapka.
itni khoobsurat ghazal kah gaya mazaak mazaak mein ,
gahre jazbaat bayaan kar gaya mazaak mazaak mein...
har sher behad umda, bahut khoob, waah waah...
”हमने भुला दिया तुम्हें, तुम भी भुला ही दो’
रोया बहुत ये बात वो कहकर मज़ाक़ में
मुझको मना रहा था, मगर खुद ही रूठकर
करने लगा ’हिसाब बराबर’ मज़ाक़ में
daad kubool farmaayen.
Phir ekbaar is gazal ko padhneka man kiya...chali aayi!
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ मे
Bahut Khub !!
मुझको मना रहा था, मगर खुद ही रूठकर
करने लगा ’हिसाब बराबर’ मज़ाक़ में
waah kya khoob kaha hai .........
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ मे
ye sher behad pasand aaya
majak majak mein aapne kya kah khoob kaha hai
हंसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुक़द्दर मज़ाक़ मे
वाह !! वाह !! ....बहुत खूब ||
बेहद खुबसूरत ग़ज़ल. एक एक शेर दमदार है.
”हमने भुला दिया तुम्हें, तुम भी भुला ही दो’
रोया बहुत ये बात वो कहकर मज़ाक़ में
इस शेर ने मेरे कॉलेज के दिनों की एक घटना याद दिला दी. लगभग इसी तरह का वाकया मेरे सामने हुआ था. शहीद साहब बहुत खूब लिखा है आपने. उस वाकये को याद कर मेरी आँखें कब भर आई मुझे पता ही नहीं चला. .
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