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Wednesday, May 12, 2010

बदलेगा मंज़र देखना













हज़रात...आदाब
ख़ता मुआफ़  
के बाद नई ग़ज़ल पेश करने में हुई ताख़ीर के लिए
ख़ता मुआफ़
हाज़िरे-खिदमत है एक और ग़ज़ल

देखते ही देखते बदलेगा मंज़र देखना
दर्द सहते सहते बन जाऊंगा पत्थर देखना

मुश्किलों में कोशिशें मत छोड़िये कुछ कीजिये
इन ही तदबीरों से बदलेगा मुकद्दर देखना

सिर्फ़ चेहरे की कशिश को इश्क़ का मत नाम दे
प्यार क्या शै है कभी दिल में उतरकर देखना

है अजब अंदाज़ उनके देखने का देखिये
देखकर आगे निकलना, फिर पलटकर देखना

देखने में हर्ज तो कुछ भी नहीं ’शाहिद’ मगर
देखते देखे न कोई बस संभल कर देखना

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

41 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सिर्फ चेहरे की कशिश को इश्क का मत नाम दे...

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...

वीनस केसरी said...

देर कर दी मेहरबां आते आते

मगर जब आये तो दिल लूट लिया :)

हमें पता था कुछ धमाका होने वाला है

मत्ला ही इतना धमाकेदार है कि क्या कहें

इक खूबसूरत गजल के लिए हार्दिक बधाई कबूल करें

महफ़िल को लूट ले जाने वाली गजल कही है आपने

दर्द सहते सहते बन जाउंगा पत्थर देखना

वाह क्या बात है

हर शेर बेहतरीन
मक्ता में तो क्या मजेदार सलाह दी है आपने कि मज़ा ही आ गया :)

shikha varshney said...

सुवाहंअल्लाह ......कितने दिनों बाद कुछ इतना सुन्दर पढ़ा है...पहली २ पंक्तियाँ तो दिल छू गईं.

इस्मत ज़ैदी said...

एक और ख़ूबसूरत ग़ज़ल!
देखते ही देखते..............
मा’नी का समंदर समाए हुए बहुत उम्दा शेर

सिर्फ़ चेहरे की कशिश ..............
जज़्बात की बेहद ख़ूबसूरत अक्कासी की गई है इस शेर में,
और हक़ीक़त बयानी भी है.

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बदलाव ही जीवन है।
बहुत सुन्दर

kshama said...

देखने में हर्ज़ तो कुछ भी नहीं ’शाहिद’ मगर
देखते न देख ले कोई, संभलकर देखना..
Harek sher mukammal..ekse badhke ek...lekin aakharee panktiyan mano shikhar pe chadhke ek ailaan kar rahi hain...magar khamoshi ki panah me..

आदेश कुमार पंकज said...

बहुत प्रभावशाली
http:// adeshpankaj.blogspot.com/
http:// nanhendeep.blogspot.com/

kumar zahid said...

जनाब मिर्ज़ा साहब!
देर की शिकायत सभी को है, मुझे भी।

ग़ज़ल का हर शेर उम्दा है लेकिन जो खास तौर पर पसंद आए उनकी कापी न हाने से उन्हें टिप्पणी के साथ नहीं डाल पा रहा हूं

तदबीर से तकदीर का बदलना ..दिल की कशिश से ज्यादा दिल में उतरना....उनका पलटकर देखने का अंदाज़....कोई देख न ले इस तरह का संभलना...

दिल ही तो है कोई ...गालिब साहब का वह शेर ऐसे समय काम आता है....गम से भर आए तो क्या..
बधाई

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बेहतरीन ग़ज़ल है ! हरेक शेर उम्दा है, खास कर मकता और उससे पहले का शेर को गजब है !

Asha Joglekar said...

बडे दिनों बाद आई आपके ब्लॉग पर पर ाना वसूल हुआ क्या खूबसूरत गज़ल पेश की है । आभार ।
मुश्किलों में कोशिशें मत छोड़िये कुछ कीजिये
इन्हीं तदबीरों से बदलेगा मुकद्दर देखना
बहुत ही आशा से भरा शेर ।

हरकीरत ' हीर' said...

देखते ही देखते बदलेगा मंज़र देखना
दर्द सहते सहते बन जाऊंगा पत्थर देखना

अरे आप पत्थर हो जायेंगे तो हम ग़ज़ल किससे सीखेंगे .....?

मुश्किलों में कोशिशें मत छोड़िये कुछ कीजिये
इन्हीं तदबीरों से बदलेगा मुकद्दर देखना

लो जी ...फिर ऊपर पत्थर होने की बात क्यों की थी .....

सिर्फ़ चेहरे की कशिश को इश्क़ का मत नाम दे
प्यार क्या शै है कभी दिल में उतरकर देखना

वाह...वाह .....!!

है अजब अंदाज़ उनके देखने का देखिये
देखकर आगे निकलना, फिर पलटकर देखना

वाह...वाह .....ये गज़ब का है .....!!

देखने में हर्ज़ तो कुछ भी नहीं ’शाहिद’ मगर
देखते न देख ले कोई, संभलकर देखना

ओये होए ....बड़े छुपे सुस्तम हैं .....!!

लाजवाब .....बहुत खूब .....!!
(तैरना नहीं आता इसलिए कोशिश नहीं करेंगे )

इतने दिन थे कहाँ .....????

Shikha Deepak said...

सिर्फ़ चेहरे की कशिश को इश्क़ का मत नाम दे
प्यार क्या शै है कभी दिल में उतरकर देखना........

.........बहुत सुंदर।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

देखते ही देखते बदलेगा मंज़र देखना
दर्द सहते सहते बन जाऊंगा पत्थर देखना

मुश्किलों में कोशिशें मत छोड़िये कुछ कीजिये
इन्हीं तदबीरों से बदलेगा मुकद्दर देखना
.....बहुत सुन्दर!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

है अजब अंदाज़ उनके देखने का देखिये
देखकर आगे निकलना, फिर पलटकर देखना

देखने में हर्ज़ तो कुछ भी नहीं ’शाहिद’ मगर
देखते न देख ले कोई, संभलकर देखना

...क्या बात है.

शारदा अरोरा said...

बहुत लोग हैं महफ़िल में दाद देने वाले , मैं कहूँ भी तो क्या कहूँ ..सबने पहले ही कह दिया है ।

Razi Shahab said...

behtareen

Himanshu Mohan said...

इसीलिए तो आप शाहिद हैं। मेरी गुस्ताख़ी माफ़ कीजिएगा, मगर आप की ग़ज़ल दिल तक पहुँची और लौटते वक़्त इन्हें भी साथ लेती आई, सो यहीं छोड़े जाता हूँ। ज़रा पल-पुस के बड़े हो जाएँ तो लेने आ जाऊँगा।

है नज़ाकत या अदा - उनका शमा-अंदाज़ ये
अब ठिठक कर, अब मचलकर और जलकर देखना

क्या करे मजबूर ग़ुस्सा बेहिसी कब तक सहे
अब अवामी लहू भी चाहे उबलकर देखना

तितलियों-झरनों-हवाओं में ख़ुदा मिल जायगा
बन्द कमरों से ज़रा बाहर निकल कर देखना

शे'र हैं शाहिद के या मेरी है ये रूदादे दिल
सोच कर हर शख़्स फिर लौटा ग़ज़ल पर देखना

जाँ-ब-लब, बेख़ुद तबीयत, अपने पे क़ाबू नहीं
क्या-क्या दिखलाएगा उनका बन-सँवरकर देखना

सुनील गज्जाणी said...

देखने में हर्ज़ तो कुछ भी नहीं ’शाहिद’ मगर
देखते न देख ले कोई, संभलकर देखना

आँखे पथरा गयी आप की राह तकते तकते
मुद्दते हो गयी मुस्कुराए ! शाहिद साब आप की नज़र है आप का लिखा आप ही का शेर आप की ताज़ा ग़ज़ल का.,
हर शेरअच्छे है .
शुक्रिया

Alpana Verma said...

'सिर्फ़ चेहरे की कशिश को इश्क़ का मत नाम दे
प्यार क्या शै है कभी दिल में उतरकर देखना'
-------वाह! वाह! वाह!
ये तो बहुत ही उम्दा शेर लगा ...इस बात को समझ लें तो सच्चे प्यार का अर्थ समझ जाएँ लोग.
------------
आँखे पथरा गयी आप की राह तकते तकते
---[आप का ही]ये शेर मेरी तरफ से आप की देर से आई पोस्ट के लिए--:)
--------------------
मुश्किलों में कोशिशें मत छोड़िये कुछ कीजिये
इन्हीं तदबीरों से बदलेगा मुकद्दर देखना
वाह!बहुत बहुत खूब!यही तो जीवन में आगे बढ़ने का मूल मंत्र है !
---------
बहुत उम्दा प्रस्तुति!

Pawan Kumar said...

शाहिद भाई
इस नयी ग़ज़ल ने मन तृप्त कर दिया......."पलट कर देखने का अंदाज़" उफ़ कमाल का लगा......इसके अलावा "इन्ही तदबीरों से मुकद्दर बदलने" का हाल लिखने का शुक्रिया....!

नीरज गोस्वामी said...

शाहिद भाई देर आये दुरुस्त आये...बहुत कमाल की ग़ज़ल कही है ज़नाब..वाह...मुश्किलों में कोशिशें मत छोडिये...वाला शेर अपने साथ लिए जा रहा हूँ...लिखते रहिये...यूँ ही...
नीरज

दिगम्बर नासवा said...

मुश्किलों में कोशिशें ...

गज़सब का शेर है शाहिद जी ... सच कहा है ... कोशिश करना इंसान का फ़र्ज़ है ... करते रहना चाहिए ... किस्मत ज़रूर बदलेगी ...

है अजब अंदाज़ ....
अब इन हसिनाओं के अंदाज़ ऐसा भी न होगा तो कयामत कैसे आएगी ... लाजवाब ...
सब शेर क्‍माल के हैं ...

daanish said...

है अजब अंदाज़ उनके देखने का देखिये
देखकर आगे निकलना, फिर पलटकर देखना

तो.... ये तेवर हैं जनाब के
बहुत ही खूबसूरत , शोख और मदमाता शेर निकाला है
जिद्दत की भीड़ में जो गुम होता दीख रहा है
उसी को बड़े सलीक़े से पेश किया गया है
और
"मुश्किलों में कोशिशें मत छोड़िये कुछ कीजिये"
इस मिसरे को तो बड़ी खूबी से
सभी के दिलों तक पहुंचाया है आपने...
बुनावट भी....
खुद बोल रही है ...वाह

"दर्द सहते-सहते बन जाऊँगा पत्थर, देखना "
लाजवाब !!

आपका अख्तर खान अकेला said...

jnaab shaahid bhaai adaab aapkaaa drd sehte sehte ptthr ho jaanaa hmen thik nhin lgegaa lekin in laainon men jo drd jo flsfaa he qaabile taarif he bdaai ho. akhtar khan akela kota rajathan

Unknown said...

Bahut hi sunder !!

चैन सिंह शेखावत said...

behad khoobsoorat ghazal h. ek ek sher umda h . bade dino se aapki post ka intezaar tha.is ghazal ne bharpaai kar di. AABHAR.

Anonymous said...

पत्थर बनकर तुमको क्या मिलेगा
पत्थर के हाथों में लकीर नहीं होती ,
कोशिश करना मत छोड़ना
कोशिशें मुकद्दर बदल जाया करती हैं .....
शाहिद जी , यूँ तो पहले भी आपकी ग़ज़लें पसंद आती रही हैं पर आज तो महफ़िल लूट ली है आपने ....

Pushpendra Singh "Pushp" said...

wah.....
behad umda gagal .....badhai

Urmi said...

बहुत ही ख़ूबसूरत और प्रभावशाली ग़ज़ल पेश किया है आपने! लाजवाब!

रश्मि प्रभा... said...

sabne sabkuch kah hi diya hai
mujhe sukun se gazal ko gungunane do

सर्वत एम० said...

देखकर आगे निकलना, फिर पलटकर देखना ........
कमाल का नफसियाती शेर.
मुकम्मल गजल ही शानदार है.
कोई नाराजगी है क्या, पहली बार आपकी तरफ से गजल पोस्ट होने की इत्तिला नहीं मिली.

फ़िरदौस ख़ान said...

हमेशा की तरह लाजवाब...

तिलक राज कपूर said...

सही कहूँ तो इस ग़ज़ल ने मुझे मेरा एक मुक्‍तक याद दिला दिया। इसका क्‍या मतलब लिया जाये, ये आप जानें। मुक्‍त‍क था:
मुस्‍कुराकर आपने देखा इधर मैं देखता हूँ
आपके दिल में जो उपजा वो शजर मैं देखता हूँ।
भाव उपजा, उठ गयी पर लाज से फिर झुक गयी,
गिर के उठती, उठ के गिरती, हर नज़र मैं देखता हूँ।
उम्‍दा अशआर के लिये बधाई।

chandrabhan bhardwaj said...

शाहिद भाई
इस बेहद खूबसूरत गज़ल के लिये बधाई स्वीकारें ।
मुश्किलों में कोशिशें मत छोड़िये कुछ कीजिये
इन ही तदवीरों में बदलेगा मुक़द्दर देखना
बहुत ही सुंदर शेर।
मतले के दूसरे मिसरे में एक मात्रा कम पड़ रही है
या तो 'न' की जगह 'ना' होना चाहिये
'देखते ना देख ले कोई संभल कर देखना'
हो सकता है 'ना' की जगह 'न' टाइपिंग की गलती रह गई हो
यदि ऐसा हो तो मिसरे को संपादित करके सही कर दें। बधाई।
चंद्रभान भारद्वाज

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

@ आदरणीय भारद्वाज जी, हैरानी है कि मक़ते में ये चूक कैसे हो गई?
इसे ठीक कर दिया गया है...
इस ओर ध्यान दिलाने के लिये बहुत बहुत आभार.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

मुश्किलों में कोशिशें मत छोड़िये कुछ कीजिये..... कितना सुन्दर शेर!!! बस इसी जज़्बे की तो ज़रूरत है. मुश्किलें हमारा इम्तेहान लेने ही आतीं हैं.
और-
सिर्फ़ चेहरे की कशिश को.... बहुत बड़ा सच कितनी खूबसूरती से पेश किया है आपने.
अब सब की तरह मुझे भी शिकायत है, इतना वक्त लगाने पर.. :)

अमिताभ श्रीवास्तव said...

janaab shahid ji,
aapki gazalo me ravangi he, kashish he aour jo dil ke kareeb mahsoos hoti he..,
सिर्फ़ चेहरे की कशिश को इश्क़ का मत नाम दे
प्यार क्या शै है कभी दिल में उतरकर देखना..
paak ishq ki misaal pesh karta she;r, pasand aayaa.

Deepak Shukla said...

Shahid Bhai...

Adaab..

Aaj pahli baar daali , humne jo hai ek nazar..
Tere ashron main hue gum, dil pe aisa hai asar..

Khoobsurat har gazal teri..jo tumne hai kahi..
'SHAHID-E-ZAZBAAT' ka, main bhi hun ab se humsafar..

Wah.. Kya gazal hai..

DEEPAK..

www.deepakjyoti.blogspot.com

ज्योति सिंह said...

देखते ही देखते बदलेगा मंज़र देखना
दर्द सहते सहते बन जाऊंगा पत्थर देखना
bahut khoobsurat hamesha ki tarah ,main raipur me hoon abhi apne bhai ke yahan is karan aane me waqt laga .

rashmi ravija said...

मुश्किलों में कोशिशें मत छोड़िये कुछ कीजिये
इन ही तदबीरों से बदलेगा मुकद्दर देखना
बेहद ख़ूबसूरत पंक्तियाँ...पूरी ग़ज़ल ही नायाब मोतियों जैसे भाव से सजी है...एक उम्मीद जगाती हुई...
आप मेरे ब्लॉग पर आए...हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया..

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

सिर्फ़ चेहरे की कशिश को इश्क़ का मत नाम दे
प्यार क्या शै है कभी दिल में उतरकर देखना

waah!zarur dekhenge sir...!!!