हज़रात आदाब.
अलग अलग जगह ’पर’ लफ़्ज़ के तीन मानी हो जाते हैं.
1- On...2- But....3- Feather
’पर’ रदीफ़ में पेश इस ग़ज़ल में इनको निभाने की कोशिश की गई है.
मुलाहिज़ा फ़रमाएं
मिटेंगे फ़ासले, शिकवे-गिले मिटाने पर.
ये हम तो मान चुके हैं, तुम्हीं न माने पर
हमारे तीर-ओ-कमां और हमीं निशाने पर
हुई ये मात मुहाफ़िज़ तुम्हें बनाने परये आदमी भी नये दौर का, पहेली है
है सर किसी का, लगा है किसी के शाने पर
तसव्वुरात की दुनिया में जो उड़ाते थे
कतर दिये हैं हक़ीक़त ने वो सुहाने ’पर’
ज़मीर बेच के दस्तार ले तो ली लेकिन
मुझे लगा कि मेरा सर नहीं है शाने पर
ज़माना देखेगा, इक दिन ज़माने वाले भी
बदल तो जायेंगे, लग जायेंगे ज़माने... पर
बड़ी कठिन है ये शोहरत की रहगुज़र शाहिद
संभल न पाओगे इक बार लड़खड़ाने पर
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
50 comments:
बहुत खूब शाहिद जी। मजा आ गया पढ़कर।
हम उजाड़े जंगलों को बढ़ रही है गर्मियाँ
सूख न पाता पसीना कई बार नहाने पर
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बेहतरीन ग़ज़ल ... पर के अलग अलग इस्तमाल पे मैं तो कायल हो गया ...
तसव्वुरात की दुनिया में जो उडाते थे
कतर दिये हैं हक़ीक़त ने वो सुहाने ’पर’
ज़मीर बेच के दस्तार ले तो ली लेकिन
मुझे लगा कि मेरा सर नहीं है शाने पर..
वाह क्या बात है! उम्दा पंक्तियाँ! शानदार और बेहतरीन ग़ज़ल! बधाई!
हमेशा की तरह बेहतरीन ग़ज़ल...
उस्तादों वाले हाथ दिखाए इस गजल में. मुकम्मल गजल कसौटी पर जरा भी ठिठकती-झिझकती नहीं. मेहनत भी आपने भरपूर की है जो साफ़ नजर आ रही है. ऐसी गजलें पेश करके किसे शिकस्त देने का इरादा है भाई? मैं तो पहले ही से सरेंडर किए बैठा हूँ.
टाइप की कुछ गलतियों ने थोड़ी किरकिराहट पैदा कर दी, उसे देख लें.
बहुत ख़ूब ! बेहतरीन ग़ज़ल है भाई.
वाह...बहुत खूबसूरत ग़ज़ल....
ये आदमी ही नये दौर की पहेली है,
है सर किसी का लगा है किसी के शाने पर।
बड़ी है तंग ये शोहरत की राहगुजर शाहिद
संभल न पाओगे इक बार लड़खडत्राने पर।
बहुत बढ़िया अशआर है शाहिद भाई।
खूबसूरत ग़ज़ल है शाहिद जी ,
बहुत बहुत शुभकामनाएँ.
बहुत सुंदर ग़ज़ल..हर शे'र ख़ास हैं...शुक्रिया
वाह सारे" पर" एक से बढ़कर एक ..एक "पर "(feather ) आपके नाम भी
शाहिद जी
मज़ा आ गया
रदीफ का ऐसा प्रयोग बिलकुल नयापन पढ़ने को मिला
बेहतरीन प्रस्तुति
इस बार ज्यादा इंतज़ार भी नहीं करना पड़ा :)
शुक्रिया
तसव्वुरात की दुनिया में जो उडाते थे
कतर दिये हैं हक़ीक़त ने वो सुहाने ’पर’
और-
ये आदमी भी नये दौर का पहेली है,
है सर किसी का, लगा है किसी के शाने पर.
शाहिद जी, वैसे तो मैं ये तय ही नहीं कर पा रही थी कि मुझे कौन सा शेर सबसे अच्छा लगा. जिसे पढती, वही पहले वाले से बेहतर लगता. यानि पूरी गज़ल ही बहुत सुन्दर हुई न!
ग़ज़ल बेहद खूबसूरत कही है..
खास कर यह शेर बेहद बेहद पसंद आया...
ये आदमी ही नये दौर की पहेली है,
है सर किसी का लगा है किसी के शाने पर।'
वाह!क्या बात कही है! ..आज के बदले हुए इंसान के व्यक्तित्व की पूरी तस्वीर बना दी हो जैसे!
बेहद खू़बसूरत ग़ज़ल,’पर’ का इतनी तरह से और सही तरह से इस्तेमाल हुआ कि मज़ा आ गया,
तसव्वुरात की दुनिया...........
ज़मीर बेच के .............
ये दो शेर तो ग़ज़ल की रूह कहे जा सकते हैं ,
मक़ता भी बहुत उम्दा और हक़ीक़त को बयान करता हुआ है ,
इस हसीन ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद क़ुबूल करें
ये आदमी ही नए दौर की पहेली है
है सर किसी का लगा है किसी के शाने पर
शाहिद भाई क्या खूब कहा है ...वाह..इस ग़ज़ल के अंदाज़ ने दिल लूट लिया है...पर रदीफ़ पर क्या खूब कमाल दिखाया है...आँखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा...अच्छे अच्छों के पर क़तर डालें हैं आपने...निशाना किस पर साधा है ये आप जाने लेकिन ग़ज़ल के शेरों से बिंध हम गए हैं...दिली मुबारकबाद कबूल करें भाई..
नीरज
Hi..
Ek koshish..
Wakt ke daur 'PAR' chalta, nahi hai bas kisi ka bhi..
Aaj chalte jami 'PAR' jo, kabhi udte the faila 'PAR'..
Khoobsurat gazal..
DEEPAK..
www.deepakjyoti.blogspot.com
kya bat he shandar gazal bahut khub
shandar
"पर".......क्या खूबसूरती से इस लफ्ज़ को तीन तरह से इस्तेमाल किये हैं हुज़ूर.....! उस्तादी शायद इसी को कहते हैं ......! इस ग़ज़ल के हर एक शेर पर दिलो-जान से कुर्बान......!
बहुत ख़ूब ! बेहतरीन ग़ज़ल है भाई.
ये आदमी ही नये दौर की पहेली है,
है सर किसी का लगा है किसी के शाने पर।'
aadab bhai jaan , naye roop ko liye hai PAR GAZAL ka har sher achcha hai magar meri pasand ko sher aap ki nazar kiya hai ,
shukariya
Yah rachna ek saheli ke saath padhee..ham donohi kayal ho gaye!Aise rachna karon se rashk hota hai!
वाह। वाह ।। मिर्जा साहब । बहुत खूब बेहतरीन रदीफ़ और अश'आर ।।
खास कर इन दो शे'र का मौजू तो इतना पसन्द आया जैसे हकीकत निकाल कर सामने रख दी हो ..
हमारे तीर-ओ-कमां और हमीं निशाने पर
हुई ये मात मुहाफ़िज़ तुम्हें बनाने पर
ज़मीर बेच के दस्तार ले तो ली लेकिन
मुझे लगा कि मेरा सर नहीं है शाने पर
शुक्रिया इतनी उम्दा ग़ज़ल के लिये।
Bahut hi sunder !!
iraade jameen par rakhe the hamne
magar par koi chura kar le gaya ....
पर...
पर...
पर............
जाने कब से इस पर के बारे में ऐसा ही कुछ सोच रहे थे..
हम सोचते ही रह गए..
पर..
आपने लिख डाला.....
कितना लुत्फ़..उठाया...ये बयान करना मुश्किल है...
इतना ही कहेंगे..अपनी सुबह सुहानी हो गयी बस..
ज़माना देखेगा, इक दिन ज़माने वाले भी
बदल तो जायेंगे, लग जायेंगे ज़माने... पर
अरे साहिब..कमाल कह गए आप...
शाहिद साहब ... बहुत ही कमाल किया है अपने इस "पर" के साथ ... ग़ज़ब के शेर निकाले हैं ...
तसव्वुरात की दुनिया में जो उडाते थे
कतर दिये हैं हक़ीक़त ने वो सुहाने ’पर’
यहाँ पर इस "पर" के इस्तेमाल ने शेर को यादगार बना दिया है ...
बड़ी कठिन है ये शोहरत ....
और ये शेर तो इस ज़माने की हक़ीकत बयान कर रहा है ... दुनिया संभालने का मौका नही देती ...
तसव्वुरात की दुनिया में जो उड़ाते थे
कतर दिये हैं हक़ीक़त ने वो सुहाने ’पर’
फिलहाल इसी शेर से शुरू किया जाए ....
हकीक़त के बारे में जो kuchh भी सोच-सोच कर कभी लिखा गया hogaa,
उस सब का
बहुत ही अछा निचोड़ है इस शेर में ...वाह
ज़मीर बेच के दस्तार ले तो ली लेकिन
मुझे लगा कि मेरा सर नहीं है शाने पर
आज के ज़माने और आज के मुश्किल दौर में
जी रहेमजबूर लोगों की खामोशी
जैसे बोल उठी हो ....
और
अलग-अलग जगह पर "पर" का
अछा इस्तेमाल किया है
क़ाबिल-ए-गौर है
ज़मीर बेच के दस्तार ले तो ली लेकिन
मुझे लगा कि मेरा सर नहीं है शाने पर
बहुत लाज़वाब. बेहतरीन ग़ज़ल यहाँ तो सर पर बेहतरीन पर लगा दिए हैं
poori ki poori gazel bahut khoobsurat hai.
ग़ज़ल ने आपकी जादू ये कर दिया कैसा
मुजस्सिमे भी थिरकने लगे सुनाने पर।
वाह भाई, बहुत खूब।
bahut sundar gajal
हमेशा आपकी गज़लें पढता हूं, पर टिप्पणी आज पहली बार कर रहा हूं. सचमुच बहुत अच्छा लिखते हैं आप.
ज़माना देखेगा, इक दिन ज़माने वाले भी
बदल तो जायेंगे, लग जायेंगे ज़माने... पर
waah kya sher kahe hai is gazal mein
bahut achchi gazal
shaam sunder ho gayi
मिटेंगे फ़ासले, शिकवे-गिले मिटाने पर.
ये हम तो मान चुके हैं, तुम्हीं न माने पर
हमारे तीर-ओ-कमां और हमीं निशाने पर
हुई ये मात मुहाफ़िज़ तुम्हें बनाने पर
वाह ....!
बहुत खूब .....!!
'पर' का बेहद खूबसूरती से इस्तेमाल ...
और हर शे'र शाहीद पर शहीद होता सा ....बेहतरीन ......!!
ये आदमी ही नए दौर की पहेली है
है सर किसी का लगा है किसी के शाने पर
Bahut khoob shahid sahab, kamal kee gazal.
बड़ी कठिन है ये शोहरत की रहगुज़र शाहिद
संभल न पाओगे इक बार लड़खड़ाने पर
bahut hi khoobsurat har baar ki tarah .
वाह शाहिद साहेब ' पर ' रदीफ़ का ख़ूब इस्तेमाल किया है .लोग एक तीर से दो शिकार करते हैं आपने तो तीन कर डाले .
देर से आई आपके ब्लॉग 'पर' ; 'पर' 'ख़ता मुआफ़' .ऐसा नहीं है कि मैं चाहती नहीं ग़ज़लों के ख़ूबसूरत' मंज़र देखना' लेकिन अशआर मैं पढ़ती नहीं 'मज़ाक़ में' ,जब वक़्त हो इत्मिनान से पढ़ना चाहिए और देखिये जब आई तो एक बार फिर आपकी पुरानी गज़लें भी पढ़ डालीं जो पहिले भी पढ़ चुकी थी . वाह .
और आपने मेरी ग़ज़ल के मुताल्लिक़ जो इजहारे -ख़यालात किये हैं उसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया ..
हमेशा की तरह बेहतरीन गज़ल ...
Waah! bahut hi khubsurat gazal hai ...zindgi ke alag alag mod par "par" ke maayne kis tarah badjaate hai bahut khubsurati se is gazal me dikhaya aapane
Ik aur dafa muaaf kijiye sahab der se aane par
Phir chahe jidiye saza hi hame is bahane par :)
बहुत बढ़िया उठाया, और निभाया भी ख़ूब!
सुब्हान-अल्लाह!
दोबारा पढ़ने जा रहा हूँ।
bht khoob kya likha hain..
मै तो बस क्र्सी से खडी हो कर तालियाँ ही बजा सकती हूँ आपकी गज़ल पर कुछ कहने को मेरे पास न शब्द हैं न गज़ल की अच्छी समझ्। बधाई और शुभकामनायें
वाह वाह वाह !!!
गज़ब लिखते हैं आप..
हैरान हूँ ..कुछ कह नहीं पाऊँगी...
बस इतना कि मैं निशब्द हूँ...
आदाब ,
आप की नई ग़ज़ल कब आ रही है मंज़रे आम पर ,लोग मुंतज़िर हैं
Mai kay kahoo...bas jaisa Gunge ka Gud hota hai vaisa hi haal kuchh mera hai..Nisabd..Regareds
Lines Tell the Story of Life "Love Marriage Line in Palm"
लाजवाब मक्ता ...
बड़ी कठिन है ये शोहरत की रहगुज़र शाहिद
संभल न पाओगे इक बार लड़खड़ाने पर
..वाह! क्या शेर कहा है आपने..!
atyadhik sunder,wah.
ये आदमी भी नये दौर का, पहेली है
है सर किसी का, लगा है किसी के शाने पर.......kya baat hai!!!
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