हज़रात आदाब,
एक ग़ज़ल हाज़िर है...
मुलाहिज़ा फ़रमाएं
छू सका न फितरत का फन ये आज भी मुझको
आईने में तकती है मेरी सादगी मुझको
मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
ख़ुद पे रख नहीं पाता मैं कभी कभी काबू
याद आ ही जाता है वो कभी कभी मुझको
मुद्दतों के बाद आख़िर अब सुकून पाया है
याद क्यों दिलाते हो गुजरी ज़िन्दगी मुझको
वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको
ज़िन्दगी का हर लम्हा दर्स है नया ''शाहिद''
हर क़दम पे मिलती है सीख इक नई मुझको
शाहिद मिर्जा शाहिदहर क़दम पे मिलती है सीख इक नई मुझको
46 comments:
छू सका न फितरत का फन ये आज भी मुझको
आईने में तकती है मेरी सादगी मुझको
मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको
shuruaat karte hi baat chhoo gayi man ko .waah waah waah bahut khoob
मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको
-क्या बात है शाहिद भाई..बहुत खूब!!
वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको
इरसाद शाहिद जी
कमाल के शेर
सुभालअल्लाह।
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
वाह! क्या बात है....
---देवेंद्र गौतम
वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको
... bahut hi badhiyaa
bahut khoobsoorat.
जीवन का सम्पूर्ण फ़लसफ़ा आपके शेरो अदब में उतर आया है. ग़ज़ल का हर शेर लाज़वाब. वाह ! यक़ीनन ये मुक़म्मल ग़ज़ल दिलोज़हन में दस्तक दे रही है..शुक्रिया मिर्ज़ा साहब, आभार !!
क्या बात है.
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
Gazab kee panktiyan hain! Waise pooree gazal behad achhee hai!
वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको(
वाह ..बहुत खूब ।
मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको.
क्या बात कही है शाहिद साहब ! बहुत खूब.
मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको
बहुत खूब....शानदार ग़ज़ल..
वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको ...
आदाब शाहिद भाई ... बहुत ही कमाल की ग़ज़ल एक मुद्दत के बाद दुबारा आपकी ब्लॉग पर पढ़ने को मिली है ... इंसानी जज़्बातों को बखूबी उठाया है आपने इस ग़ज़ल में ... और ये शेर तो लाजवाब है .... जिंदाबाद ....
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको vaah a gr8 sher.bahut umda ghazal hai.kya baat hai.shahid ji ghazal mujhe bahut pasand aati hain.aap jaisi to nahi par kabhi kabhi likhti hoon.aapse prerit hokar agli post ghazal likh rahi hoon honsla afjaai ke liye jaroor aaiyega.
मुद्दतों के बाद आख़िर अब सुकून पाया है
याद क्यों दिलाते हो गुजरी ज़िन्दगी मुझको
bahut khoob ,shahid bhai.
beautiful lines !!!
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
कभी कभी जरा सी भूल जीवन भर रुलाती है ...शुभकामनायें शाहिद भाई !
हर क़दम पे मिलती है सीख इक नई मुझको
इस खूबसूरत मिसरे के लिए
ढेरों बधाई के बाद
कुछ दीगर अश`आर की बात भी हो जाए
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
बहुत खूब कहा जनाब
और
इस शेर की तो बात ही ख़ास है ...
वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको
वाह - वा !!
खूबसूरत ग़ज़ल ,,, खूबसूरत अंदाज़ .
बहुत उम्दा ग़ज़ल!
sabse pahle tippani karne ka saubhagya mil hi gaya ,kai baar sochi magar mauka chhutta raha ,aaj safalta hasil ho gayi ,aai hoon to ek sher aur pasand ke...
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
मुद्दतों के बाद आख़िर अब सुकून पाया है
याद क्यों दिलाते हो गुजरी ज़िन्दगी मुझको
apne fateh par gumaan hai mujhko
मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
बहुत ख़ूब ! ये अकेला मिसरा ज़िंदगी के उस पहलू की तरफ़ इशारा करता है जिस का पूरा होना बेहद मुश्किल है
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुज़दिली मुझको
वाह !क्या बात है !ये हौसला कर पाना भी आसान नहीं ,इस कशमकश को ख़ूबसूरती से क़लमबन्द किया है
वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको
यूं तो हर शेर ही ख़ूबसूरत है लेकिन
इस शेर में अपनी ही ख़ुशी को महसूस न कर पाने क्की बेचारगी का जवाब नहीं
"छू सका न फितरत का फन ये आज भी मुझको
आईने में तकती है मेरी सादगी मुझको
मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको
मुद्दतों के बाद आख़िर अब सुकून पाया है
याद क्यों दिलाते हो गुजरी ज़िन्दगी मुझको!"
हर शेर काबिल-ए-तारीफ है..
'कहते है के शाहिद का है अंदाज़-ए-बयां और..'.
शाहिद भाई मतले से मकते तक मुसलसल दिल को छूते शेरों से सजी इस ग़ज़ल के लिए जितनी दाद दूं कम ही पड़ेगी...क्या लिखते हैं आप भाई जान...वाह...जिंदाबाद शाहिद भाई जिंदाबाद.
नीरज
टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
ख़ुद पे रख नहीं पता मैं कभी कभी काबू
याद आ ही जाता है वो कभी कभी मुझको..
वाह! क्या बात है! दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ! सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
जबर्दस्त शेर मुबारक हो ....
bahut badhiya gazal ..
बहुत सुंदर गज़ल,बधाई
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
शाहिद जी, ग़ज़ल बहुत ही खूबसूरत है..
वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको
.....बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...हरेक शेर लाज़वाब..
'अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको "
......................बेहतरीन शेर
...................उम्दा ग़ज़ल , हर शेर बेहतरीन
लाजवाब ग़ज़ल...
मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको
- काश ऐसा सभी के साथ हो |
बहुत प्यारी गजल कही है।
---------
मौलवी और पंडित घुमाते रहे...
सीधे सच्चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।
छू सका न फितरत का फन ये आज भी मुझको
आईने में तकती है मेरी सादगी मुझको
मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको
बहुत खूब कहा है आपने ।
शाहिद भी... आदाब
एक बार फिर वही आपके तेवर... माशा अल्लाह!!!!!
छू सका न फितरत का फन ये आज भी मुझको
आईने में तकती है मेरी सादगी मुझको
मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको
जिंदाबाद...... !!!
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
ये बुजदिली भी बहुत तीस देती है कभी कभी....!!
ज़िन्दगी का हर लम्हा दर्स है नया ''शाहिद''
हर क़दम पे मिलती है सीख इक नई मुझको
मतला ता मक्ता ग़ज़ल शानदार है...... हर एक शेर बेहतरीन है. कथ्य के हिसाब से एकदम दुरुस्त...!!
ख़ुद पे रख नहीं पाता मैं कभी कभी काबू
याद आ ही जाता है वो कभी कभी मुझको
उनकी याद आने पर खुद पर काबू रख पाना संभव नहीं ....मन के भाव बहुत सुन्दरता से पेश किये हैं आपने ...आपका आभार
वक्त ने मिज़ाज अपना इस कदर बदल डाला
अब खुशी नहीं लगती अपनी हर खुशी मुझको
bahut khoob...damdar ghazal..
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
बहुत खूब
मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको
बस यही तो खुदा ने अपने हाथ मे रखा है
खूबसूरत गज़ल के लिये बधाई।
ज़िन्दगी का हर लम्हा दर्स है नया ''शाहिद''
हर क़दम पे मिलती है सीख इक नई मुझको
शानदार ग़ज़ल का सुन्दर मक़्ता. बधाई.
Shahid jee, bahut hee khoobsurat gajal. Har sher bahut sunder par ismen jaise maine apne aap ko dekh liya.
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
Shahid bhaee behad khoobsurar gajal jiska har sher nayab hai par is sher men muze apana aks najar aaya.
अपनी बात कहने का हौसला न कर पाया
उम्र भर रुलाएगी मेरी बुजदिली मुझको
बहुत खूब , शहीद साहेब ... गज़ल कि क्या तारीफ करूँ.. एक एक शेर दिल में धड़क रहा है....
बधाई
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
मुद्दतों के बाद आख़िर अब सुकून पाया है
याद क्यों दिलाते हो गुजरी ज़िन्दगी मुझको
आदाब आप को इस खू सूरत शेर के साथ . ग़ज़ल का शेर उम्दा है . दिल को छूने वाला है . शुक्रिया
आदाब
मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको
बहुत खूब,ह्रदय स्पर्शी रचना...
मैं उसे समझ पाऊं वो मुझे समझ पाए
ऐ खुदा अता कर दे एक आदमी मुझको
वाह! वाह! सर... हर शेर बेशकीमती है...
शानदार ग़ज़ल...
सादर.
बहुत खूब....शानदार ग़ज़ल..
Post a Comment