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Saturday, October 3, 2009

दुश्मन-ऐ-जां

एक ग़ज़ल
दुश्मन--जां है परेशान बना रखा है
दिल ने जिस शख्स को मेहमान बना रखा है


मांगता
रहता हू इक बुत को खुदा से अक्सर
इश्क ने कैसा ''मुसलमान'' बना रखा है

जिस की फुरकत ने बढाया है मेरी मुश्किल को
उसकी यादों ने ही आसान बना रखा है

उसके किस्सों मे मेरा नाम नहीं है शाहिद
जिंदगी ने जिसे उन्वान बना रखा है


शाहिद मिर्जा शाहिद

1 comment:

इस्मत ज़ैदी said...

uske qisson men ..........bahut khoob
jis ki furqat..........jazbat ki bahut umda akkasi