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Sunday, October 4, 2009

... गिरेबां मेरा

जिसकी चाबी लिए बैठा है निगहबां मेरा
कितना अनमोल खजाना है ये इमां मेरा

अपने किरदार के दामन की जिसे फिक्र नहीं
झांकता रहता है वो शख्स गिरेबां मेरा

तेरे जज़्बात, मेरा दर्द, कोई क्या जाने
तज़करा
करता है क्यों गैर से नादां मेरा

जिसके सर रखा है इल्जाम ज़माने वालो
उसके हाथों नहीं उजड़ा ये गुलिस्तां मेरा

आज कीमत का ही अंदाजा मै कर लूँ शाहिद
क्या लगाता है, बता, मोल तू नादां मेरा

शाहिद मिर्जा शाहिद

1 comment:

इस्मत ज़ैदी said...

bahut khoobsoorat matla
jiske sar.............aik dard ko alfaz bakhsh diye shahid sahab apne