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Monday, October 19, 2009

बराबर वज़न में एक ग़ज़ल

दोस्तो, 
ग़ज़ल की कई बहर ऐसी भी हैं, जिनके दोनों टुकडे बराबर 
वज़न के होते हैं

अब इसी गीत के मुखडे को देखिये-------


सुहानी चांदनी रातें, हमे सोने नहीं देती

या-
हमे सोने नहीं देती, सुहानी चांदनी रातें

यानि दोनों टुकडे बिल्कुल बराबर हैं.


इसी को जेहन में रखते हुए चार टुकडों से एक 'मतला' बना, और इन्हीं चार टुकडों का इस्तेमाल

ग़ज़ल के चार शेर में किया गया. उम्मीद है आप इसे पसंद करेंगे-
समाअत फरमायें-

तेरा हंसकर निकल जाना,
......................मेरी किस्मत बदल जाना

तडप जाना, मचल जाना,
......................मेरे अपनों का जल जाना


बडी हैरत का मुद्दा है,
..........................बडी तकलीफ देता है,
मेरे अपने तबस्सुम से,
..................मेरे अपनों का जल जाना


यकीनन देख ही
लेगा,
.....................मसीहा
तेरी जानिब भी
बस ऐ दिल इतना कर लेना,
...................तडप जाना मचल जाना


कभी ये
प्यार की बाज़ी,
......................जो
उनको हारते देखो
लकीरों उनकी हो जाना,
................मेरी किस्मत बदल जाना


कसक इक मेरे माजी की,
................बहुत अनमोल है 'शाहिद'
वो मिलकर भी नहीं मिलना,
...............तेरा हंसकर निकल जाना

शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद'

6 comments:

डॉ. राधेश्याम शुक्ल said...

umda gazal ke liye badhayee.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

आपका हार्दिक स्वागत है.
मेरी शुभकामनाएं.

इस्मत ज़ैदी said...

ghazal ka ye andaz wah! maza aa gaya.bahut bahut mubarak ho.

इस्मत ज़ैदी said...

ghazal ka ye naya andaz wah! maza aa gaya, bahut bahut mubarak ho.

Urmi said...

बहुत ही बढ़िया, शानदार और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने! इस बेहतरीन और लाजवाब पोस्ट के लिए बधाइयाँ !

Randhir Singh Suman said...

nice