आज एक क़ता हाज़िर है
बिना किसी तमहीद के, मुलाहिज़ा फरमायें--
एक हथेली रेखाओं में कितनी उलझन रखती है.
और नजूमी ये कहता है ''जीवन दर्शन रखती है.
किस्मत ने रखा है सजाकर ताक़ पे ऐसे खुशियों को
जैसे मां बच्चों से बचाकर कांच के बरतन रखती है
शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद'
4 comments:
काँच के बर्तन संभाल के रखने पड़ते हैं .वक्त कितना लगता है , टूटने में ? खुशियाँ भी इतनी ही नाज़ुक होती हैं .
सही कह रहे हैं खुशियों का जीवन कांच के बरतनों जितना ही होता है ।
किस्मत ने रखा है सजाकर ताक पे ऐसे खुशियों को
जैसे मां बच्चों से बचाकर कांच के बरतन रखती है
एक दम नया तरीक़ा
वाह-वाह
बधाई
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