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Friday, December 11, 2009

जाडे की रात है


साहेबान,
आपने इस ब्लाग पर 'अपने बारे में' ज़रूर पढा होगा.
''दिल मसाइल में उलझता है, ये ज़ुल्फों में नहीं..''
लेकिन...
यार लोग फिर भी कैसी कैसी फरमाइश कर बैठते हैं
मेरे एक दोस्त ने मश्वरा दिया,
कभी कुछ ऐसा भी कहो-
'जाडे की रात है'
हज़रात, सोचा कोशिश करके देख ली जाये
कोशिश की,
लेकिन...
''दिल मसाइल में उलझता है, ये ज़ुल्फों में नहीं..''
बात चाहे 'जाडे की रात' की ही क्यों न हो..
मैं कितना सही हूं, ये फैसला आप पर छोडता हूं
कताअ हाज़िर है-
कुछ सुनिये, कुछ सुनाईये 'जाडे की रात है'
खुद को न आज़माईये 'जाडे की रात है'

इन्सान घर में कैद, दरिन्दे गली-गली

लिल्लाह, ठहर जाईये 'जाडे की रात है'
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

28 comments:

इस्मत ज़ैदी said...

shahid sahab ,ismen bhi aap ka andaz jhalak raha hai .

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

इस्मत साहिबा,
बेहद शुक्रगुज़ार हूं आपका.
शायद
मैं अपने मकसद में कामयाब रहा हूं!
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

हास्यफुहार said...

रचना अच्छी लगी।

alka mishra said...

aapke mijaaj ki taarif hi hi jani chahiye
ek blog ka url likh rahi huun ,mujhe wishwaas hai ki ise padhne ke baad msaailon men uljha dil mujhe shukriya jaruur kahega zubaan bhale n kahe

http://sarwatindia.blogspot.com

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

शुक्रिया अलका जी,
वाकई मेरे मिज़ाज के मुताबिक बहुत कुछ है वहां
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

फ़िरदौस ख़ान said...

कुछ सुनिये, कुछ सुनाईये 'जाडे की रात है'
खुद को न आज़माईये 'जाडे की रात है'
इन्सान घर में कैद, दरिन्दे गली-गली
लिल्लाह ठहर जाईये 'जाडे की रात है'

Bahut Shandar...

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
Email- sanjay.kumar940@gmail.com

शबनम खान said...

ठंड लगने लगी पढ़कर........

Unknown said...

bohot hi umdah shahid sahab waqayii thand mahsoos hone lagi hai achcha kalaam hai aap isko aur thora lamba karte to aur maza aajata phir bhi ur at ur best

सर्वत एम० said...

मिज़ाज और लहजा, यही दो चीजें हैं जो किसी शायर को मुश्किल से नसीब होती हैं. आपको मिज़ाज और लहजा इसी उम्र में हासिल हो गये, आप खुशनसीब हैं. ज़ुल्फ़, रुखसार, रोमांस- इन से अब तक तन्हा मैं ही दूर था, खुशी है इस ब्लॉग की दुनिया में मैं तन्हा नहीं रहा.
आप ब्लॉग तक आये, कमेन्ट दिया, तारीफ की- शुक्रगुज़ार हूँ. सिलसिला बनाये रखियेगा.

दिगम्बर नासवा said...

शाहिद साहब ........ कमाल का, क्या खूबसूरत अंदाज़ है आपका .......... सुभान अल्ला ......."लिल्लाह ठहर जाईये 'जाडे की रात है'"..

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

सर्वत साहब, बेहद शुक्रिया,
आपके ब्लाग तक पहुंच कर मुझे कितनी खुशी हुई, बयान नहीं कर सकता.
हां, इसके लिये मैं आपसे पहले अलका जी का शुक्रिया ज़रूर करूंगा.
जिन्होंने आपके ब्लाग का लिन्क दिया है.

दिगंबर नासवा जी,
आपके अल्फाज़ मेरे लिये बेशकीमती हैं.

वंदना जी,
ऐसे खूबसूरत अंदाज़ में दाद दी है आपने,
कि शुक्रिया तक कहने को अल्फाज़ नहीं मिल रहे.

नासिर साहब, आपने बजा फरमाया, कि इसमें शेर भी कहे जा सकते हैं, लेकिन कताअ में चार मिसरे 'काफी' रहते हैं. वैसे भी जो पैगाम है, वो बाद के दो मिसरे में है-
इन्सान घर में कैद, दरिन्दे गली-गली
लिल्लाह ठहर जाईये 'जाडे की रात है'

शबनम साहिबा, ठंड से घबराने की ज़रूरत नहीं,
बस अपना ख्याल रखियेगा.
संजय जी, सुमन जी, फिरदौस साहिबा, आपकी आमद ने हौसला बढ़ा दिया है..
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

shama said...

"Lillah thahar jayiye jaade kee raat hai"...kya baat hai..Sarwat jee kaa comment bahut khoob hai!

हरकीरत ' हीर' said...

कुछ उसने यूँ कहा लिल्लाह ठहर जाईये 'जाडे की रात है
वो शर्मा कर सिमट गए ख्यालों से, बड़ी जाड़े की रात है

अनामिका की सदायें ...... said...

खुद को न आज़माईये 'जाडे की रात है'
इन्सान घर में कैद, दरिन्दे गली-गली
लिल्लाह ठहर जाईये 'जाडे की रात है'

khoobsurat abhivyakti

देवेन्द्र पाण्डेय said...

मैं तो बस इसी में ठहर सा गया---
इन्सान घर में कैद, दरिन्दे गली-गली
लिल्लाह ठहर जाईये 'जाडे की रात है'

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

शमा साहिबा, बेहद शुक्रिया
सर्वत साहब की टिप्पणी आपको अच्छी लगी,
उनकी दुआएं इन लफ्ज़ों में मिली, मेरी खुशनसीबी है,

हरकीरत जी,
आपने तो कताअ का रंग ही बदल डाला, 'संशोधन' के लिये धन्यवाद.

अनामिका जी इनायत है आपकी, मैं आपका शुक्रगुज़ार हूं.

देवेन्द्र जी,
आपके दाद का अन्दाज यादगार है.
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

नीरज गोस्वामी said...

इन्सान घर में कैद, दरिन्दे गली-गली
लिल्लाह ठहर जाईये 'जाडे की रात है
सुभान अल्लाह....वाह...लाजवाब जनाब...वाह...
नीरज

daanish said...

हुज़ूर....!
ऐसा आलम और ये हुनरमंदी ...
सुब्हान अल्लाह !!
दिल ने दिमाग़ पर क़ब्ज़ा जमा लिया है

कुछ और भी सुनाईये, जाड़े की रात है
हमको न यूं सताईये, जाड़े की रात है
लहजा भी कामयाब है, अलफ़ाज़ पुर-असर
अब यूं न छोड़ जाईये, जाड़े की रात है

Asha Joglekar said...

बहुत खूब ।
कुछ दौर चले चाय का कुछ कचोरी गरम
हुजूर न शरमाइये जाडे की रात है ।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

नीरज जी, आपके शब्द हमारी प्रेरणा बन गये हैं..

शुक्रिया मुफलिस साहब,
आपके इसी अंदाज के तो कायल हैं हम.
आपका ई-मेल दरकार है, मिलेगा?

आशा जी, ठंड के मौसम में गरम कचोरी की खूब याद दिलाई आपने

आप सभी ने हौसला बढ़ाया, शुक्रगुज़ार हूं आपका.
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

chandrabhan bhardwaj said...

Bhai Shahid ji, namaskar,
Karanaa na karavaton men hi barbaad ise tum,
yaadon se dil bahalaiye jade ki rat hai.
Bahut sunder.
Chandrabhan Bhardwaj

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

'जाडे की रात है' ने खिंच लाया आप तक.

जज़्बात का तूफान उठे जब कभी 'शाहिद'.. नग़मात. कोई गीत. कोई शेर बने हैं. खूब फरमाते हैं आप.

सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी (अभी हाल में ही कुछ ऐसा पोस्ट किया था. Link: http://sulabhpatra.blogspot.com/2009/12/blog-post.html )

- सुलभ

योगेन्द्र मौदगिल said...

wahwa....

फ़िरदौस ख़ान said...

तोहफा है नायाब खुदा का दुनिया जिसको कहती मां
हर बच्चे की मां है लेकिन अपनी मां है अपनी मां

छांव घनेरे पेड सी देकर धूप दुखों की सहती मां
एक समन्दर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी मां

दिल को छू लेने वाली ग़ज़ल है...

वन्दना अवस्थी दुबे said...

कमाल है.सोचा ही नहीं था कि आगे इतना नाज़ुक सा कुछ लिख देंगें.
"लिल्लाह ठहर जाईये 'जाडे की रात है'".

Alpana Verma said...

लिल्लाह ठहर जाईये 'जाडे की रात है'
waah! waah!! waah!!!

Unknown said...

तोहफा है नायाब खुदा का दुनिया जिसको कहती माँ
हर बच्चे की माँ है लेकिन, अपनी माँ है अपनी माँ
छाँव घनेरे पेड़ सी देकर धुप दुखों की सहती माँ
एक समंदर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी माँ

Nice

bhai mere maa do baar roti hai
ek baar jab uska beta roti nahi khata hai tab.....!
dusri baar jab uska beta usse roti nahi deta hai