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Monday, January 18, 2010

यादों की किरन













साहेबान,
गणतंत्र दिवस करीब है
श्रद्देय महावीर जी के मंथन ब्लाग पर
खाकसार की इसी जज्बे की एक ग़ज़ल पोस्ट होगी
जज्बात पर भी गणतंत्र दिवस पर कुछ नया पढ़ने को मिलेगा
आईये इसी माहौल की शुरूआत करते हैं
क़तआत की शक्ल में पेश हैं वो रचनाएं,
जो हमारे गौरव, अमर शहीदों और वीर जवानों के  
जज्बात को समर्पित हैं-

प्रेरणा का वो ज़माने में चलन छोड़ गये
जो महकते हुए गुल आज चमन छोड़ गये
लौटकर फिर नहीं आयेंगे वो सूरज लेकिन
उम्र भर के लिये यादों की किरन छोड़ गये

****************************
यूं तो हर रोज़ ही मरते हैं हज़ारों लेकिन
मौत वो जिसका ज़माने पे असर होता है
कभी 'विधवा' नहीं होती है 'सुहागन' उसकी
देश पर जान जो देता है अमर होता है

**************************
देश भक्तों के लिये नूर हुआ करता है
वीर भी दिल से कभी दूर हुआ करता है
मांग लेती है ज़मीं 'मांग' सजाने के लिये
खूं जवानों का तो सिंदूर हुआ करता है

*****************************
आग को हाथ लगाओगे तो जल जाओगे
अम्न का दीप बुझाओगे तो जल जाओगे
बर्फ की वादी है कशमीर ये माना लेकिन
इसको छूने कभी आओगे तो जल जाओगे

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

43 comments:

हास्यफुहार said...

बर्फ की वादी है कशमीर ये माना लेकिन
इसको छूने कभी आओगे तो जल जाओगे
बहुत ख़ूब।

इस्मत ज़ैदी said...

shahid sahab,hubbulwatani ke ye jazbaat jo apne blog par bikhere hain
pathak ka antarman tak ko bhigo dete hain ,soch rahi hoon shabd kahan se laoon?
****************************
यूं तो हर रोज़ ही मरते हैं हज़ारों लेकिन
मौत वो जिसका ज़माने पे असर होता है
कभी 'विधवा' नहीं होती है 'सुहागन' उसकी
देश पर जान जो देता है अमर होता है
**************************
salaam hai un veeron ko ,shaheedon ko jo aj hamen khuli hawa men sans lene ki azadi de gaye
salam hai veerangna maanon ko ,patniyon ko jinhon ne sab kuchh desh par qurban kar diya

aur salam hai apke is pakeeza jazbe ko

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

शाहिद साहब,
बहुत सच्चे और उम्दा प्रस्तुति है ये... बहुत सुन्दर जज़्बात हैं...सुकून मिला... वीरों को नमन है... बधाई आपको..

यूं तो हर रोज़ ही मरते हैं हज़ारों लेकिन
मौत वो जिसका ज़माने पे असर होता है
कभी 'विधवा' नहीं होती है 'सुहागन' उसकी
देश पर जान जो देता है अमर होता है

...क्या कहने

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

मुझे कुछ शे'र याद आ गए... वीर जवानो के खिदमत में..
लहरों के ऊपर लड़ते कश्ती देखो तो ज़रा
जिंदगी-मौत के बीच मस्ती देखो तो ज़रा
दौड़ते हैं कदम बर्फ पर हाथों में बारूद लिये
दूर सरहद जज्बा-ए-वतनपरस्ती देखो तो ज़रा[...]


अच्छी प्रस्तुति है आपके इस ब्लॉग पर.

नीरज गोस्वामी said...

लौटकर फिर नहीं आयेंगे वो सूरज लेकिन
उम्र भर के लिये यादों की किरन छोड़ गये

वाह शाहिद साहब वाह...आपके जज्बे और कलम को सलाम...बेहतरीन कतआत कहें हैं आपने...देश प्रेम में डूबे इन अशारों को पढ़ कर आँखें गीली भी होती हैं और सर फक्र से ऊपर भी उठता है...वाह...
नीरज

गौतम राजऋषि said...

दिल के करीब दिल को छूती पंक्तियां सब की सब शाहिद....

कई बार लगता है अब ये ज़ज्बे, ये भावनायें बस शायरों और कवियों तक ही सीमित होकर रह गये हैं। मुल्क तो निर्विकार ही रहता है....

रचना दीक्षित said...

कभी 'विधवा' नहीं होती है 'सुहागन' उसकी
देश पर जान जो देता है अमर होता है

ओह!!


मांग लेती है ज़मीं 'मांग' सजाने के लिये
खूं जवानों का तो सिंदूर हुआ करता है

ओह !!

हर शब्द हमेशा की तरह बोलता हुआ और दिल को गहराई तक छूता हुआ. कोशिश मेरी भी होगी कोई देशभक्ति पूर्ण पोस्ट की .देखें समाया क्या और कितनी इजाज़त देता है .

Pushpendra Singh "Pushp" said...

shaid sahab
behtarin panktiyaan
यूं तो हर रोज़ ही मरते हैं हज़ारों लेकिन
मौत वो जिसका ज़माने पे असर होता है
bahut bahut abhar

दिगम्बर नासवा said...

बर्फ की वादी है कशमीर ये माना लेकिन
इसको छूने कभी आओगे तो जल जाओगे ..

उम्दा ........ शहीदों के नाम दिल सी निकली सच्ची श्रधांजलि है की अपने वतन को, अपनी सांस्कृति को, गांग ओ ज़्मन की पुनीत धारा को बचा कर रखना ......... लता जी का गाया गीत बरबस आपकी रचनाएँ पढ़ कर याद आ गया ..... ए मेरे वतन के लोगों ... ज़रा आँख में भर लो पानी ....... बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर ...... सलाम कबूल करें शाहिद जी ........

Alpana Verma said...

दिल को छू गयी यह उम्दा प्रस्तुति!

shama said...

लौटकर फिर नहीं आयेंगे वो सूरज लेकिन
उम्र भर के लिये यादों की किरन छोड़ गये

Kya khoob!

shama said...

मांग लेती है ज़मीं 'मांग' सजाने के लिये
खूं जवानों का तो सिंदूर हुआ करता है
Waah!

shama said...

आग को हाथ लगाओगे तो जल जाओगे
अम्न का दीप बुझाओगे तो जल जाओगे
बर्फ की वादी है कशमीर ये माना लेकिन
इसको छूने कभी आओगे तो जल जाओगे
Ekse badhke ek!
Gan tantr diwas kee aaj hee mubarak baad detee hun!

kshama said...

प्रेरणा का वो ज़माने में चलन छोड़ गये
जो महकते हुए गुल आज चमन छोड़ गये
लौटकर फिर नहीं आयेंगे वो सूरज लेकिन
उम्र भर के लिये यादों की किरन छोड़ गये

Har pathak ke liye ye panktiyan prerna strot hain !

kshama said...

देश भक्तों के लिये नूर हुआ करता है
वीर भी दिल से कभी दूर हुआ करता है
मांग लेती है ज़मीं 'मांग' सजाने के लिये
खूं जवानों का तो सिंदूर हुआ करता है
Alfaazon kee mohtaji hai..kya kahun?

kshama said...

आग को हाथ लगाओगे तो जल जाओगे
अम्न का दीप बुझाओगे तो जल जाओगे
बर्फ की वादी है कशमीर ये माना लेकिन
इसको छूने कभी आओगे तो जल जाओगे

Aapne stabdh kar diya!

हरकीरत ' हीर' said...

यूं तो हर रोज़ ही मरते हैं हज़ारों लेकिन
मौत वो जिसका ज़माने पे असर होता है
कभी 'विधवा' नहीं होती है 'सुहागन' उसकी
देश पर जान जो देता है अमर होता है

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं ......!!

जय हिंद .....!!!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

यूं तो हर रोज़ ही मरते हैं हज़ारों लेकिन
मौत वो जिसका ज़माने पे असर होता है
कभी 'विधवा' नहीं होती है 'सुहागन' उसकी
देश पर जान जो देता है अमर होता है
सलाम.

श्रद्धा जैन said...

यूं तो हर रोज़ ही मरते हैं हज़ारों लेकिन
मौत वो जिसका ज़माने पे असर होता है
कभी 'विधवा' नहीं होती है 'सुहागन' उसकी
देश पर जान जो देता है अमर होता है

बर्फ की वादी है कशमीर ये माना लेकिन
इसको छूने कभी आओगे तो जल जाओगे


शाहिद जी
गणतंत्र दिवस पर आपके ये कत आत सही श्रद्धांजलि है इस देश के सुरक्षा प्रहरी को जो अपने सुख को छोड़ हमारे सुख के लिए जीते हैं

निर्मला कपिला said...

प्रेरणा का वो ज़माने में चलन छोड़ गये
जो महकते हुए गुल आज चमन छोड़ गये
और
यूं तो हर रोज़ ही मरते हैं हज़ारों लेकिन
मौत वो जिसका ज़माने पे असर होता है
कभी 'विधवा' नहीं होती है 'सुहागन' उसकी
देश पर जान जो देता है अमर होता है
सभी शहीदों को ये श्रद्धांम्जली दिल को छू गयी । वो मरे ताकि हम जीयें। गण्तंत्र दिवस पर उनकी याद मे बहुत अच्छे कतअत लिखे धन्यवाद जै हिन्द

निर्मला कपिला said...
This comment has been removed by a blog administrator.
daanish said...

"यूं तो हर रोज़ ही मरते हैं हज़ारों लेकिन
मौत वो जिसका ज़माने पे असर होता है
कभी 'विधवा' नहीं होती है 'सुहागन' उसकी
देश पर जान जो देता है अमर होता है"

आप की संवेदनाओं
और भावनाओं की पावनता से ओतप्रोत
ये पंकितियाँ...
किसी भी भारतीय के लिए
गर्व का प्रतीक ही प्रतीत हो रही हैं
शहीदों के बलिदान का ऐसा व्याख्यान
भाव-विभोर कर गया ......
इस अनुपम रचनावली के माध्यम से
हम सब
उन अमर शहीदों को श्रद्धांजली प्रस्तुत करते हैं

अभिवादन स्वीकारें

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

देश भक्तों के लिये नूर हुआ करता है
वीर भी दिल से कभी दूर हुआ करता है
मांग लेती है ज़मीं 'मांग' सजाने के लिये
खूं जवानों का तो सिंदूर हुआ करता है

बहुत सुंदर पंक्तियाँ....

तिलक राज कपूर said...

वाह शाहिद भाई वाह। एक से बढ़कर एक कत्‍आत की परेड करादी आपने तो। भाई नौजवॉं से नौजवॉं का अन्‍तर का एक अन्‍दाज आपके इन्‍हीं कत्‍आत को नज़र करता हूँ कि:
रग-रग में अंगार जो चमड़ी से ढका है
छेड़ो न इसे दोस्‍त ये शोलों से बना है।

और

बुझी-बुझी सी राख है सोये मसान सी
इस नौजवॉं की आत्‍मा टूटी कमान सी।

अब ये तो हमारे नौजवानों को तय करना है कि वो कौनसी किस्‍म के हैं।
आपने नौजवानों का जो जज्‍़बा पेश किया है उसे तह-ए-दिल से सलाम।

Urmi said...

बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी ! इस लाजवाब और बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

अनामिका की सदायें ...... said...

यूं तो हर रोज़ ही मरते हैं हज़ारों लेकिन
मौत वो जिसका ज़माने पे असर होता है
कभी 'विधवा' नहीं होती है 'सुहागन' उसकी
देश पर जान जो देता है अमर होता है
**************************
mere paas shabd nahi hai bolne ke liye sirf salute karti hu tahe dil se.

देश भक्तों के लिये नूर हुआ करता है
वीर भी दिल से कभी दूर हुआ करता है
मांग लेती है ज़मीं 'मांग' सजाने के लिये
खूं जवानों का तो सिंदूर हुआ करता है
*****************************
tum jaise sapoot honge jis jami.n ke uske noor me kya koi kami ho sakti hai.

bahut bahut bahut acchhi nazm. hatts off.

संजीव गौतम said...

shahid bhaee achchhaa likhate ho.
kataat dil ko chhoone wale hain

PRAN SHARMA said...

Sundar aur sahaj bhavabhivyakti ke
liye aapko badhaaee aur shubh kamna

mukti said...

बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति. जब मन की सच्ची भावनाएँ कविता में उतरती हैं तो ऐसी ही सुन्दर रचना बनती है.

महावीर said...

गीत, ग़ज़ल और कवितायेँ तो कितने ही ब्लोगों में पढ़ते ही रहते हैं, लेकिन क़ताअत के लिए तो हिन्दी ब्लॉग शून्य बराबर ही कहना चाहिए. सिर्फ़ कुछ उर्दू के ब्लोग्स में थोड़े बहुत क़ताअत मिल पाते हैं.
यह देख कर बड़ी खुशी होती है कि आप अपने हिन्दी ब्लॉग पर समय समय पर पाठकों को इस विधा से अवगत कराते रहते हैं. आपकी रचनाएं हमेशा आपके ब्लॉग 'जज़्बात' नाम के अनुरूप हैं.

लौटकर फिर नहीं आयेंगे वो सूरज लेकिन
उम्र भर के लिये यादों की किरन छोड़ गये

कभी 'विधवा' नहीं होती है 'सुहागन' उसकी
देश पर जान जो देता है अमर होता है

आग को हाथ लगाओगे तो जल जाओगे
अम्न का दीप बुझाओगे तो जल जाओगे
बहुत सुन्दर! बधाई.
('मंथन' के लिंक के लिए धन्यवाद.)

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा ...सोचा कि कुछ नया लिखा होगा आपने.... पर इंतज़ार है आपके लेखनी का.....

कडुवासच said...

कभी 'विधवा' नहीं होती है 'सुहागन' उसकी
देश पर जान जो देता है अमर होता है
.... क्या बात है !!!!
मांग लेती है ज़मीं 'मांग' सजाने के लिये
खूं जवानों का तो सिंदूर हुआ करता है
.....बहुत खूब !!!!
..... बेहद प्रसंशनीय व प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

देश भक्तों के लिये नूर हुआ करता है
वीर भी दिल से कभी दूर हुआ करता है
मांग लेती है ज़मीं 'मांग' सजाने के लिये
खूं जवानों का तो सिंदूर हुआ करता है
*****************************
आग को हाथ लगाओगे तो जल जाओगे
अम्न का दीप बुझाओगे तो जल जाओगे
बर्फ की वादी है कशमीर ये माना लेकिन
इसको छूने कभी आओगे तो जल जाओगे
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ऐसा जज्बा और ऐसी लेखनी ही सच्ची श्रध्धांजलि है देश के वीर सपूतों के लिए
आप इसी तरह पुर असर अंदाज में लिखते रहीये शाहिद साहब ...
हमारी दुआएं भी आपके संग शामिल कर लीजिये
आमीन
- लावण्या

सर्वत एम० said...

सभी कुछ तो सभी लोग बयान कर गए, मैं इस फ़िक्र में नहीं हूँ कि मैं क्या कहूं. सिर्फ यह सोच रहा हूँ कि क्या इन जज्बात की सही तारीफ हम कर सकेंगे.
क़तआत, शायरी का वो बेमिसाल नमूना हैं जो हर किसी से नहीं रचते. गजल के दो मिसरों में बात कहना बेहद आसान है लेकिन चार मिसरों में बात रखना, वो भी उनका आपस में रब्त रखते हुए, बहुत कठिन है.
आप तो माहिर हैं इस फन के भी. मुबारकबाद.

ज्योति सिंह said...

मांग लेती है ज़मीं 'मांग' सजाने के लिये
खूं जवानों का तो सिंदूर हुआ करता है ,
aapki lekhni ka jawab nahi ,bahut khoob nazar aaye harek shabd aapke ,aur haq jatna bhi aakar magar vyastta me thodi deri ho gayi aane me ,shukriyaa itni khoobsurat tippani ke liye ,aap jaise logo ki tippani se bhi hame bahut kuchh sikhne ko milta hai .do kadam chalne ki jaroort hai ,varna manjil ye door kahan .har koi khyaal aese paal le ,to mushkile aap hi ho jaaye aasaan yahan .bas yahi ek kami hai,nahi to saari zameen apni hai .ek zara si baat pe kitne afsos .

Udan Tashtari said...

कतआत पढ़ मन प्रसन्न हो गया. जरा देर से आया किन्तु बहुत हर्ष हुआ...

बहुत सुन्दर हर पंक्तियाँ, वाह!!

shikha varshney said...

देश भक्तों के लिये नूर हुआ करता है
वीर भी दिल से कभी दूर हुआ करता है
मांग लेती है ज़मीं 'मांग' सजाने के लिये
खूं जवानों का तो सिंदूर हुआ करता है

मन को छू गई ये पंक्तियाँ बहुत सुंदर ..शहीदों को शत शत नमन

Smart Indian said...

बहुत सुन्दर रचना. खासकर निम्न भाव बहुत पसंद आया:
"यूं तो हर रोज़ ही मरते हैं हज़ारों लेकिन
मौत वो जिसका ज़माने पे असर होता है
कभी 'विधवा' नहीं होती है 'सुहागन' उसकी
देश पर जान जो देता है अमर होता है
"

देवेन्द्र पाण्डेय said...

आग को हाथ लगाओगे तो जल जाओगे
अम्न का दीप बुझाओगे तो जल जाओगे
बर्फ की वादी है कशमीर ये माना लेकिन
इसको छूने कभी आओगे तो जल जाओगे
..वाह जोश आ गया पढकर.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

लाजवाब... बहुत ही अच्छी रचना.....

shama said...

Gan tantr diwas kee dheron shubhkamnayen!

दिगम्बर नासवा said...

अभी अभी आपकी ग़ज़ल महावीर जी के ब्लॉग पर पढ़ कर आ रहा हूँ ...... बहुत ही कमाल की ग़ज़ल है शाहिद जी .. सलाम है आपकी लेखनी और आपके जज़्बे को ........... आपको गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई ......

Renu goel said...

शाहिद जी.... किन किन पंक्तियों की प्रशंशा करूँ ..सभी इतनी खूबसूरत लगी और दिल को छू गयीं ....बस ज़रुरत है इन भावनायों को सब दिलो में जगह दिलाने की ... श्रध्दा , समर्पण , देशप्रेम और स्वाभिमान .... ये वो भावनाएं हैं जिन्हें हर दिल को जगाना है ....अभी ये मरी नहीं हैं बस कुछ समय से आँखें मूंदे हुए बैठी हैं ....