साहेबान...आदाब
.’मज़ाक़ में’ रदीफ़ के साथ कही गई ग़ज़ल को आपने जिस तरह अपनी दुआओं से नवाज़ा है, उसके लिये सभी हज़रात का तहे-दिल से शुक्रिया.
लीजिये हाज़िर है........
तुम तो करो ख़ता पे ख़ता, हो ख़ता मुआफ़
मैं क्यों ख़ता करूं कि करूं सो ख़ता मुआफ़
'कर दो ख़ता मुआफ़’ ये कहना ख़ता हुआ
दामन छुडा के कहने लगे 'लो ख़ता मुआफ़’
वो ही ख़ता, उठाती है, किरदार से, उसे
जिस शख्स ने भी की है यहां जो ख़ता मुआफ़
रोशन इसी से होता है, किरदार का चिराग
ख़ुद चाहिये सुकून तो कर दो ख़ता मुआफ़
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़
शाहिद मिर्जा 'शाहिद'
53 comments:
शाहिद साहब ,एक और ख़ूबसूरत ग़ज़ल
वो ही ख़ता, उठाती है, किरदार से, उसे
जिस शख्स ने भी की है यहां जो ख़ता मुआफ़
हासिले ग़ज़ल लगा मुझे ये शेर,
वाक़ई जो सुकून माफ़ कर देने में है ,सज़ा देने में कहां
आदाब मिर्जा साहब।
वो ही ख़ता, उठाती है, किरदार से, उसे
जिस शख्स ने भी की है यहां जो ख़ता मुआफ़.....
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़
बेहतरीन अशआर। आपने तो चन्द लब्जों में जिन्दगी का सार ही निकाल कर रख दिया कि जो मुआफी में है वो सजा में नहीं है, वाह बेहद पसन्द आई आपकी ये खूबसूरत गजल|
पर आपने अबकी बहुत देर से रूबरू करवाया अपनी गजल से...चलो कोई बात नहीं आपकी ये खता मुआफ|
शुक्रिया ।।
खता मुआफ अच्छा लिखा है
शाहिद जी पहले आपने "मजाक" किया अब "खता मुआफ" :):):)
पूरी गजल में उस्तादी झलक रही है,, हर शेर गूढ़ अर्थो से भरी हुई है
और पिछली गजल में जिस कठिन काफिया को आपने खूबसूरती से निभाया था इस बार तो उससे भी बड़ा कमाल किया आपने
काश कि २० साल बाद भी हम इस तरह की गजल कह पायें
बधाई कबूल करें,, पढ़ कर मजा आ गया
nice
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़
क्या कातिलाना शेर है शाहिद भाई। किस हसीं की हंसी का इंतज़ार है।
वो ही ख़ता, उठाती है, किरदार से, उसे
जिस शख्स ने भी की है यहां जो ख़ता मुआफ़
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़
शाहिद भाई...वाह..वा...तालियाँ पीटते हाथ दुःख गए हैं लेकिन मन नहीं भरा...ग़ज़ब के शेर कहें हैं...सुभानालाह...ऐसे ही लिखते रहो भाई....हमारी दुआएं आपके साथ हैं...
नीरज
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़
बहुत खूब....बढ़िया गज़ल..
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़
waah
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़
ओये होए ......!!
ऐसी खताए तो बार बार होती रहे ......सुभानाल्लाह ......!!
हाँ हम करें खता पे कहता हो खता मुआफ
शाहिद करे तो खता होगी कभी न मुआफ
रोशन इसी से होता है, किरदार का चिराग
ख़ुद चाहिये सुकून तो कर दो ख़ता मुआफ़..
बहुत बढ़िया ! उम्दा गज़ल!
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़ ..
बहुत खूब शाहिद साहब ... क्या मासूम अदा है खता करने की और ख़ाता को मुआफ़ करने की ... लाजवाब ग़ज़ल ... हर शेर कमाल का है ...
रोशन इसी से होता है, किरदार का चिराग
ख़ुद चाहिये सुकून तो कर दो ख़ता मुआफ़
जिंदगी की छोटी-छोटी बातों को
सलीक़े से समझाने वाले प्यारे-प्यारे शेर ....
आसान लफ़्ज़ों में कह दी गयी
फलसफाना ग़ज़ल ......
बहुत खूब .
janaab shahid ji,
KHATA MUAAFI...itani shandar gazal par koi tippani du to ye bhi mujh jese naadaan ki khataa hogi.., bahut khoob likhi he ji aapne gazal..abhi aour itminaan se padhhunga..aour agar huaa to tab ek tippani aour...
वाह ! अच्छी लगी ग़ज़ल. आखिरी शेर मुझे सबसे अच्छा लगा--
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़ ..
वो ही ख़ता, उठाती है, किरदार से, उसे
जिस शख्स ने भी की है यहां जो ख़ता मुआफ़
'कर दो ख़ता मुआफ़’ ये कहना ख़ता हुआ
दामन छुडा के कहने लगे 'लो ख़ता मुआफ़’
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़
होती कहां ख़ता है जहां आता है दिल साफ़
करिये ख़ता, ख़ता पै ख़ता ,सब ख़ता मुआफ़
रोशन इसी से होता है, किरदार का चिराग
ख़ुद चाहिये सुकून तो कर दो ख़ता मुआफ़
waah kya kamaal ka radeef chuna hai aur kitna achchi gazal
maza aa gaya ........
ye sher bahut pur asar raha ......
आपने बिलकुल सही फ़रमाया .. खुद को चाहिए सुकून तो कर दो खता मुआफ ...
पा मूवी में एक डायलोग था .. गलती करने वाला गलती सहने वाले से ज्यादा परेशान होता है ,, और एक जगह पढ़ा भी था यदि हम अपने कुसूरवार को माफ़ कर देते हैं तो हम सारी चिंताओं से मुक्ति पा जाते हैं .... तो है न बात शत प्रतिशत सही
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़
वाह जी वाह क्या हसीं ख़ता की है मज़ा आ गया !!!!!!!!!!!!!
शाहिद जी, लगभग सभी शेर दाद पा चुके हैं. कुछ पाठकों ने तो बहुत अच्छी व्याख्या भी की है. तो क्यों न मैं केवल गज़ल पढूं, और आनन्दित होऊं?
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़
Aaah!
सुन्दर !!!
रोशन इसी से होता है, किरदार का चिराग
ख़ुद चाहिये सुकून तो कर दो ख़ता मुआफ़
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़
waah kya baat ,isliye to kahte hai badappan isi me hai ,baat ko bigane se pahle khatm kar diya jaye ,rishto ko kuchh is ada se sambhala jaaye . bahut khoob hamesha ki tarah
उस्तादों के सुखन पर नाचीज़ मुब्तदी की क्या हैसियत कि कमेन्ट पेश करे. हर शेर पर सुब्हानअल्लाह - माशाअल्लाह कहना ही पड़ा. गिने-चुने कुछ नाम, जिनमें आप भी हैं, उन्हें पढने के बाद यही उलझन होती है कि क्या कहा जाए. अच्छा कहने वालों के साथ एक ही जुमला बार-बार दुहराना भी बुरा लगता है.
मैं संजीदगी से एतराफ करता हूँ कि मुझे अपने लिए खतरा महसूस होता है.
Phir ekbaar aapki chand rachnayen padhane chali aayi hun..sach to yah hai,ki, aapki rachnaon pe comment karun,yah qabiliyat nahi hai! Jo fan aapko hasil hai,wo hame hasil nahi hai..
अदब के मामले में उर्दू भाषा का जवाब नहीं ....बस वही अदब और लफ्जों की फनकारी झलक रही है इस ग़ज़ल से ...खता मुआफ |
रोशन इसी से होता है, किरदार का चिराग
ख़ुद चाहिये सुकून तो कर दो ख़ता मुआफ़
---इस शेर में गज़ब का जीवन दर्शन छुपा है।
कोसते रहने और इंतकाम की आग में जलने से बेहतर है कि दिल से माफ कर देना चाहिए।
इस सिद्धांत को अपना सकें तो ज़िंदगी में सकून आ जाय।
--वाह!
वाह! ग़ज़ल बहुत उम्दा ..और ये शेर बहुत ख़ास लगा..
रोशन इसी से होता है, किरदार का चिराग
ख़ुद चाहिये सुकून तो कर दो ख़ता मुआफ़
-जीवन का फलसफा जैसे बता रहा हो..वाह! बहुत खूब!
मुझको यह रचना रुची.
नयी रचनाओं हेतु divyanarmada.blogspot.com देखिये. अनुसरण करें, टिप्पणी दें, रचना दें. संपर्क: salil.sanjiv@gmail.com
shahid saab , aadab , ek antral ke baad aap ki sukoon pahuchani wali gazal ke liye aap ka shukariya,
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़ ।
वाह, शाहिद साहब, आपकी खता भी खूबसूरत और माफी भी ।
रोशन इसी से होता है, किरदार का चिराग
ख़ुद चाहिये सुकून तो कर दो ख़ता मुआफ़
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़
वाह वाह ।
Bahut hi khub janab......
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़
बहुत खूब ....
अहा! क्या ग़ज़ल कही है शाहीद साब...अरे वाह-वाह। "खता" लफ़्ज़ के इतने रंग-रूप....मजा आ गया। ग़ज़ल का वो गुजरा हुआ क्लासिकल दौर लौटते दिख रहा है...
कर दो खता मुआफ, ये कहना खता हुआ...
दामन छुडा के कहने लगा, लो खता मुआफ...
ग़ज़ल पढ़ते पढ़ते यहाँ आकर अटक गए....सोच रहे हैं..क्या आप भी एकदम हम जैसे हालात से रूबरू हो चुके हैं...
और मकते पर खुद ब खुद होंठों पर मुस्कान आ गयी है..
Gazal me sama kar khata bhi itani khubsurat ho jaaegi ...pada to jana!!
Bahut hi bhadiya gazal...Dhanywaad!!
मिर्ज़ा साहब , आज पहली बार आपका ब्लॉग देखा और ये पहली ग़ज़ल पढी. मेरे पास अलफ़ाज़ नहीं है मैं किस तरह से इसकी तारीफ करूँ. मुझे आपसे बहुत प्रेरणा मिलेगी और आपकी गज़लें पढ़ पढ़कर शायद मेरी शायरी में थोडा बहुत निखार आ जाए.
खुदा आपको ऐसी ही गज़लें लिखने को मजबूर करता रहे. सुभान अल्लाह
ये शेर तो अब हर वक्त याद रहेगा.
करके ख़ता, लबों पे, तबस्सुम सजाइए
शाहिद वो हंस के गुजरें तो समझो ख़ता मुआफ़
Phir ekbaar kaafee saaree rachnayen padh lee...aisi mohlat baar baar nahi milti!
/WAH ustad wah
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है ... हरेक शेर बेहतरीन है ...
'कर दो ख़ता मुआफ़’ ये कहना ख़ता हुआ
दामन छुडा के कहने लगे 'लो ख़ता मुआफ़’
क्या बात है ... क्या अंदाज़े बयां है ... !
ग़ज़ल का हर शेर भारी और बहावदार भई क्या बात है।
मुझे हैरानी है कि कि मैं आपके अशआर कापी पेस्ट नहीं कर पा रहा हूं
शाहिद जी आपकी शायरी में भावनाओं और शब्दों की जो पकड़ है ...साथ ही तुकबंदी की सरलता वो शेर की सरलता को ठीक से उभारती है ..गजल मुझे अच्छी लगी खासतौर पर आखरी मिसरा ....रोशन इसी से होता है किरदार का चिराग ....बधाई
आज पहली बार आया, अच्छा लगा, बेहतरीन ग़ज़लें मिलीं, फ़ॉलो किया, फिर आऊँगा।
ख़ुदा हाफ़िज़, जारी रहिए…
हमने तो फकत आनन्द लिया ..ख़ता मुआफ ?
शाहिद साहेब ! हैं आये एक अरसे बाद आपकी महफ़िल में ..ख़ता माफ़ :)
बेहतरीन ग़ज़ल है ..और आखिरी २ पंक्तियाँ तो बस कमाल.
hamare blog par aana kam hua
kaise khata muaaf.... ????
hui koi khata jo hamse...
karo khata muaaf....!!
acchhi gazel ke liye dhero badhayia.
शाहिद भाई
खता मुआफ........वाह क्या रदीफ़ है......?
समूची ग़ज़ल जोरदार है..........हर शेर वाह वाह करने को मजबूर कर रहा है........
वाह वाह...!
ये ख़ामोशी सी क्यूँ लगी है
कुछ तो बोलिए ......?????
खूबसूरत ग़ज़ल
बहुत ही बेहतरीन रदीफ़... संभालना में मुश्किल सा लगता है, पर आपकी ये ग़ज़ल, लाजवाब...
अगर हमार ख़ता मुआफ़ हो, तो कहना चाहूंगा कि आपने बहुत खूब कही है ग़ज़ल।
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रोशन इसी से होता है, किरदार का चिराग
ख़ुद चाहिये सुकून तो कर दो ख़ता मुआफ़
माशाल्लाह
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