आदाब...
सुहाने परटाइटिल से पेश की गई ग़ज़ल में ’पर’ लफ़्ज़ के तीनों मानी अलग अलग अश’आर में रहे. जिन्हें आप हज़रात ने पसंद फ़रमाया.....इनायत
हाज़िर है एक और ग़ज़ल....जिसके एक ही मिसरे में ’पर’ के तीनों मानी रखे गए हैं
उम्मीद है ये कोशिश भी आपको मायूस नहीं करेगी.
मुलाहिज़ा फ़रमाएं
बिखर जाने के बाद
बज़्मे-जानां, बेइरादा, बेसबब जाने के बाद
हादसा हो ही गया, दिल-दिल से टकराने के बाद
’लीजिए आंसू मेरे और आग ठंडी कीजिए’
अब्र रोकर कह रहा है, शोले बरसाने के बाद
हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिए
कैसे पहुंचे पर फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद
ख़ौफ़ से मंज़िल की हसरत थरथराकर रह गई
रहबरों के भेस में रहज़न नज़र आने के बाद
मय भी है साक़ी भी है, और तश्नगी भी है मगर
जाम ख़ुद किस मुंह से मांगूं मैं क़सम खाने के बाद
थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
49 comments:
शाहिद जी आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हो जाता है इतनी खूबसूरत गजलें आप पेश करते हैं । एक ेक शेर कमाल का है ।
थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद ।
वाह ।
हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिए
कैसे पर जाए फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद
और-
हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिए
कैसे पर जाए फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद
और जो शेर मुझे सबसे अच्छा लगा, जिसमें गज़ब की ईमानदारी है-
मय भी है साक़ी भी है, और तश्नगी भी है मगर
जाम ख़ुद किस मुंह से मांगूं मैं क़सम खाने के बाद
शाहिद साहब वैसे शेर तो ये अन्तिम यानि मकता पूरी गज़ल की शान है-
थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद
यहां तूफ़ान और तिनके के ज़रिये क्या-क्या और किस-किस को बयां कर दिया.... कमाल की गज़ल. महीने भर ताना-बाना बुनते रहते हैं क्या गज़ल का?
बहुत शानदार गज़ल.
बहुत ख़ूब
थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद
थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद
बहुत ख़ूब
लम्बी प्रतीक्षा के बाद होने वाली बारिश से जो आनंद मिलता है,वही मज़ा आपको ग़ज़ल को पढ़कर आया।
'हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिए
कैसे पर जाए फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद'
शब्दों का कितना सुंदर प्रयोग किया आपने ।
बधाई।
मुस्कुराना आपका कातिल अदा से कम नहीं
आप जानेंगे मगर ये, मेरे मर जाने के बाद।
ग़ज़ल का हर शेर उम्दा है मगर इसमें कोई शक नहीं कि मक्ते के शेर ने इस ग़ज़ल को बड़ी खूबसूरत बुलंदी दी है।
एक एक शेर मन को छूता हुआ....बहुत सुन्दर ...
हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिए
कैसे पर जाए फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद
थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद
शाहिद भाई यकीन मानिए आपकी इस ग़ज़ल और आपके फ़न पर मैं अपनी जगह पे खड़ा हो कर
तालीयां बजा रहा हूँ...वाह...सुभान अल्लाह क्या ग़ज़ल कही है आपने...बेहतरीन...लाजवाब...तारीफ़ के लफ्ज़ ही नहीं मिल रहे मियां...दिल खुश हो गया...लिखते रहो..ऐसे ही...
नीरज
आदाब मिर्ज़ा साहब! बड़ी बेसब्री से इंतज़ार था आपकी गजलों से रूबरू होने का..आज मौका दिया...शुक्रिया ! एक-एक शेर सवा शेर. गज़ब के अश'आर. इतनी ख़ूबसूरत गज्लाल से रूबरू करवाकर आज का दिन ख़ूबसूरत बनाने के लिए आपका शुक्रिया जनाब ! एक-एक शेर, सवाशेर.
हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिए
कैसे पर जाए फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद
कमाल की अश'आर..
थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद
गज़ब की अभिव्यक्ति...
बस इतना ही कह पाऊंगा... शुभान अल्लाह...माशा अल्लाह !
बाहर खूबसूरत गज़ल...
Sab ashar ekse badhke ek hain...kuchh alfaaz milen to taareef karun!
ख़ौफ़ से मंज़िल की हसरत थरथराकर रह गई
रहबरों के भेस में रहज़न नज़र आने के बाद
मय भी है साक़ी भी है, और तश्नगी भी है मगर
जाम ख़ुद किस मुंह से मांगूं मैं क़सम खाने के बाद
थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद
हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिए
कैसे पर जाए फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद
bahut hi laajwaab .man me rach gayi bas gayi ,khoobsurat ,antraal ke kokh se anmol moti nikal aaya hai ,jiski khoobsurati hame naseeb ho rahi hai .
सबसे बढ़िया ये शेर लगा
हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिए
कैसे पर जाए फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद
दाद देते हैं ...
वाह!
एक एक शेर मन को छूता है..पर सबसे सुन्दर है .
हौसला तो है परिंदे में बहुत सच मानिये...........
पूरी की पूरी ग़ज़ल लाजवाब है हर शेर दाद के काबिल है पर मेरे मन में जो घर कर गया वो
"मय भी है साक़ी भी है, और तश्नगी भी है मगर
जाम ख़ुद किस मुंह से मांगूं मैं क़सम खाने के बाद"
आपने तूफ़ान क्या थामा है शाहिद साहब, कमाल है। हर शे'र लाजवाब कर देने वाला और पूरी की पूरी ग़ज़ल कमाल की फ़नकारी से सराबोर।
अभी तो इसी का मज़ा ले रहा हूँ - चर्चा तो फिर अभी भी होती रहेगी…
shahid ji aaj to kisi bhi sher ki tareef karna aisa lag raha hai mano uski umdaygi ko kam karna hoga. lafz nahi hai aaj aapki tareef me.
aur PAR ka to bahut bahut acchha istemaal he sher me.
aage bhi intzar rahega.
shukriya.
हौसला तो है परिन्दे मै..........पर बिखर जाने के बाद ..बहुत खूब लिख है आपने..यही समय की मांग है.
श्री अमिताभ श्रीवास्तव जी ने ये टिप्पणी मेल से प्रेषित की है-
थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद
जनाब शाहिद जी,
बहुत खूबसूरती है गज़ल में, माशाअल्लाह आपकी कलम में जबरदस्त उस्तादी है। आशियाने का हर तिनका बिखर जाने के बाद कोई खबर किसी काम की नहीं होती, बस फिर से तिनका-तिनका जोडने और आशियाना खडा करने की मशक्कत होती है। फिलहाल हम भी इसी मशक्कत में है और यही वज़ह है कि आजकल ब्लॉग पर ज्यादा लिख नहीं पाते, सफर कर नहीं पाते। शुक्र है कि आपका मेल आ जाता है और हम आपके बेहतरीन शे'रों को पढ लेते हैं..
आपका
अमिताभ
हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिए
कैसे पर जाए फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद
kya baat kahi hai shahid saab ,
bahut khoob aadab,
बज़्मे-जानां, बेइरादा, बेसबब जाने के बाद
हादसा हो ही गया, दिल-दिल से टकराने के बाद
मुबारक ...इस हादसे के लिए ...!!
’लीजिए आंसू मेरे और आग ठंडी कीजिए’
अब्र रोकर कह रहा है, शोले बरसाने के बाद
ये कैसा अब्र फट पड़ा आसमां में
ये कैसी बारिश आई है
बह गया जीवन का रंग
ये कैसी आंधी आई है .....
हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिए
कैसे पर जाए फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद
बहुत खूब .....अद्भुत .....!!
मय भी है साक़ी भी है, और तश्नगी भी है मगर
जाम ख़ुद किस मुंह से मांगूं मैं क़सम खाने के बाद
सुभानाल्लाह .....!!
( किसके लिए खानी पड़ी थी ऐसी कसम ...)
थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद
कोई शे'र ऐसा नहीं जो दिल के करीब से न गया हो ......लाजवाब .....!!
आदाब ,... शाहिद साहब ... अरसे बाद आपकी जबरदस्त शायरी पढ़ने को मिली ... उस्तादों वाली बात तो शुरू से है आपके अंदर ... जमाने को परखने की बाखूबी समझ भी रखते हैं आप ... परिंदों वाले शेर में आपकी दोनो क़ाबलियत बाखूबी उभर कर आ रही हैं .... परिपक्व शायर हैं आप ...
हज़रात.....
कैसे पर जाए फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद
इस मिसरे को...
’पर’ लफ़्ज़ नज़दीक लाने के लिए....
कैसे पहुंचे पर फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद
कर दिया गया है....शायद आपको पसंद आएगा.
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
ऐसी गजल जिस पर किसी उस्ताद को भी रश्क आए. मेरे सामने मुश्किल यह खड़ी हो गयी है कि तारीफों का सिलसिला कहां से शुरू करूं और अगर खत्म करूं तो क्यों! मेरी खुद की हालत यह हो गयी है कि हसद की आग में भुना जा रहा हूँ. मुझे लगता है आपने मुझे उखाड़ फेंकने का तहैया कर लिया है. रहम करें भाई, कभी कुछ हल्की-फुल्की चीजें भी पोस्ट किया करें ताकि हम जैसे सुकून का एहसास करें.
तीन बार पढने के बाद कमेन्ट देने का हौसला जुटा सका हूँ. आपके उस्ताद होने में कोई शक नहीं. हर शख्स आपके फन का लोहा मान चुका है और नाचीज़ तो पहले से ही 'सरे तस्लीम खम....' वाली कैफियत में है.
नेट पर लम्बे अरसे बाद आ सका हूँ. काम की ज़ियादती और भाग-दौड़ ने मौक़ा नहीं दिया. देर से आने के लिए माज़रत.
बहुत दिनों के बाद आपकी नज़्म पढ़ी बहुत अच्छी लगी .............
Shahid Bhai'
Kafi dinon ke baad aaj apke blog par aane ka samay mila hai. Apki nai ghazal ne fir se dil ko chhua hai. Aap behad sunder ghazal kah rahe hain eeshwar aapki kalam men isi tarah tazgi bharata rahe.Yon to poori ghazal apne aap men behad khubsurati se kahi gai hai lekin makte ka to jabaab nahin.
tham gaya toofan shahid ye khabar kis kaam ki
aashiyaane ka harik tinkaa bikhar jaane ke baad.
Wan Wah bahut bahut badhai.
:)
तारीफों से बहुत ऊंचाई पर है ग़ज़ल...
पहले पर..और फिर अब दोबारा से पर....
आप भी क्या नए नए एक्सपेरिमेंट्स करते हैं...
कमाल की बात ये के वो बेहद दिलचस्प और कामयाब होते हैं...
बहुत ही अच्छी गज़ल कही है आप ने.
'ख़ौफ़ से मंज़िल की हसरत थरथराकर रह गई
रहबरों के भेस में रहज़न नज़र आने के बाद'
यह शेर खास पसंद आया.
बहुत उम्दा.
खूबसूरत ग़ज़ल के लिये शायद इतना इंतेज़ार ज़रूरी है
ख़ौफ़ से मंज़िल की हसरत थरथरा कर रह गई
रहबरों के भेस में रहज़न नज़र आने के बाद
मंज़िल की हसरत का ख़ौफ़ से थरथराना ..नयापन लिए हुए ये शेर क़ारईन की तवज्जो खींचने में कामयाब है,
थम गया तूफ़ान ’शाहिद’ ये ख़बर किस काम्म की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद
बहुत ख़ूब!मेरे ख़याल से मक़ता पूरी ग़ज़ल पर भारी है
मुबारक बाद क़ुबूल करें
"हौसला तो है परिन्दे में बहुत, सच मानिए
कैसे पहुंचे, पर, फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद"
अपने आप में निराला-सा शेर निकला है जनाब
दिलो-दिमाग के तालमेल का अच्छा नतीजा इसी को कहते हैं
और ... इक अनजाने खौफ से
मंजिल की हसरत भी थरथरा कर रह गयी ....
इस को भी बखूबी बयान किया गया है ...वाह !
एक दिलचस्प ग़ज़ल कहने पर बधाई
बज़्मे-जानां, बेइरादा, बेसबब जाने के बाद
हादसा हो ही गया, दिल-दिल से टकराने के बाद
.... वाह !!
’लीजिए आंसू मेरे और आग ठंडी कीजिए’
अब्र रोकर कह रहा है, शोले बरसाने के बाद
.... क्या तेवर हैं
हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिए
कैसे पहुंचे पर फ़लक पर, पर बिखर जाने केबाद
... बेशकीमती अश'आर पर इंतजाम भी गजब
ख़ौफ़ से मंज़िल की हसरत थरथराकर रह गई
रहबरों के भेस में रहज़न नज़र आने के बाद
... सटीक
मय भी है साक़ी भी है, और तश्नगी भी है मगर
जाम ख़ुद किस मुंह से मांगूं मैं क़सम खाने के बाद
... उफ़ क्या बात कह दी
थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद
हासिल-ए-गज़ल ... एकदम संजीदा शे'र
ऐसी खूबसूरत गज़ल के लिए कुछ कहना भी हिम्मत का काम है ... सिवाय इसकी गहराई मे डूब जाने के और कोई चारा नज़र नहीं आता ...
AAPKEE GAZAL KE HAR SHER NE DIL
LOOT LIYAA HAI." RANG LAATEE HAI
HINAA PATTHAR PE GHIS JAANE KE
BAAD" ZAMEEN PAR MAINE BHEE KABHEE
GAZAL KAHEE THEE.DO MAHEENEE PAHLE
SHRI MAHAVIR SHARMA KO SUNAAYEE THEE.UNKE BLOG PAR LAGEGEE TO
PADHIYEGA.
’लीजिए आंसू मेरे और आग ठंडी कीजिए’
अब्र रोकर कह रहा है, शोले बरसाने के बाद
हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिए
कैसे पहुंचे पर फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद
थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद
मिर्जा साहब! ग़ज़ल बढ़िया बन पड़ी है। पर ये तीन शेर जहन पर अपनी परवाज का जल्वा दिखा रहे हैं..
एक खुशखबरी ! आपका जादू इस कदर काम कर रहा है कि ग़ज़लदां ग़ज़ल तो मेरी दाद के लिए चुनते हैं मगर चाहत में बेइरादा नाम शाहिद लिख देते हैं। ...ज़ाहिद बनाम शाहिद...
इस बात की मुबराकबाद कुबूल फरमाएं और इसी तरह छाते चले जाएं
हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिए
कैसे पर जाए फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद
जितने मन से ये शेर कहा गया है शाहिद भाइ उतने ही मन से ये दाद खुद मांग रहा है. पूरी ग़ज़ल अच्छी हुई है. अपने रंग की.
मय भी है साक़ी भी है, और तश्नगी भी है मगर
जाम ख़ुद किस मुंह से मांगूं मैं क़सम खाने के बाद
...वाह!
हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिए
कैसे पहुंचे पर फ़लक पर, पर बिखर जाने के बाद ।
शाहिद साहब तारीफ कर सकूं इसके लिये अल्फाज़ नही हैं । बस वाह ! वाह ! वाह!
बहुत
जबरदस्त ग़ज़ल है भाई ....हर एक शेर ( बल्कि सवा शेर ) पर सैकड़ों दाद क़ुबूल करें
Aapke blog par pahli baar aaye hoon par aana sach moch sarthak hua..!!!
मय भी है साक़ी भी है, और तश्नगी भी है मगर
जाम ख़ुद किस मुंह से मांगूं मैं क़सम खाने के बाद
behadd umda shayri hai..!!!
Badhai..!!!
ख़ौफ़ से मंज़िल की हसरत थरथराकर रह गई
रहबरों के भेस में रहज़न नज़र आने के बाद
waah, bahut hi badhiyaa
एक से बढ़कर एक नज्में पेश किया है आपने जो काबिले तारीफ़ है! उम्दा पोस्ट! बधाई!
’लीजिए आंसू मेरे और आग ठंडी कीजिए’
अब्र रोकर कह रहा है, शोले बरसाने के बाद
ख़ौफ़ से मंज़िल की हसरत थरथराकर रह गई
रहबरों के भेस में रहज़न नज़र आने के बाद
थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद
musalsal umda ashaaron ki adaygi...
bahut khoob..har sher jabardast
थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम की
आशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बाद
Wow ..!
मय भी है साक़ी भी है, और तश्नगी भी है मगर
जाम ख़ुद किस मुंह से मांगूं मैं क़सम खाने के बाद
waaaaaaah!!
मय भी है साक़ी भी है, और तश्नगी भी है मगर
जाम ख़ुद किस मुंह से मांगूं मैं क़सम खाने के बाद
waaaaaaah!!
bahut sundar kala ke sath sundar kavita...
Meri Nai Kavita padne ke liye jaroor aaye..
aapke comments ke intzaar mein...
A Silent Silence : Khaamosh si ik Pyaas
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