साथी शायरों के कलाम के लिए एक ब्लॉग
शुरू किया गया है, जिसे आप सभी ने सराहा है, इनायत
सुबीर संवाद सेवा
पर चल रहे तरही मुशायरे
फ़लक पे झूम रही सांवली घटाएं हैं
के सिलसिले में आदरणीय पंकज सुबीर जी का आदेश मिला कि आप 15 अगस्त के सिलसिले में कुछ लिखिए...
वो देशभक्ति की ग़ज़ल आप हज़रात
सुबीर संवाद सेवा और जज़्बात पर पढ़ चुके हैं...
इसी तरही मिसरे पर हुई एक ग़ज़ल को
आखर कलश
ब्लॉग पर प्रकाशित किया गया है..
यहां हाज़िर है एक ताज़ा ग़ज़ल...
पर्दा भी होना चाहिए
मुलाहिज़ा फ़रमाएं...
बेग़रज़ बेलौस इक रिश्ता भी होना चाहिए
ज़िन्दगी में कुछ न कुछ अच्छा भी होना चाहिए
बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए
ये हक़ीक़त के गुलों पर ख्वाब की कुछ तितलियां
’ऐसा होना चाहिए. वैसा भी होना चाहिए’
हो तो जाती हैं ये आंखें नम किसी भी बात पर
हां मगर पलकों पे इक सपना भी होना चाहिए
दोस्ती के आईने में देख सब शाहिद मगर
मां के आंचल सा कोई पर्दा भी होना चाहिए
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
40 comments:
एकदम तयशुदा तारीख पर गज़ल आती है आपकी, कितने पाबंद हैं आप, वाह.
"बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए"
कितनी सटीक और जायज़ बात है ये. बोलने की आज़ादी इसलिये नहीं मिली है, कि हम बेअदब,
बेशर्म हो जायें. बहुत सुन्दर.
और-
दोस्ती के आईने में देख सब शाहिद मगर
मां के आंचल सा कोई पर्दा भी होना चाहिए
बहुत सुन्दर. बधाई. आभार भी.
बेग़रज़ बेलौस इक रिश्ता भी होना चाहिए
ज़िन्दगी में कुछ न कुछ अच्छा भी होना चाहिए
ख़ूबसूरत मतले से शुरूआत
बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए
बेहतरीन शेर जहां सीख भी है संस्कार भी और गुफ़्तगू की तहज़ीब भी
बहुत ख़ूब!
एक अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल कीजिये
हो तो जाती हैं ये आंखें नम किसी भी बात पर
हां मगर पलकों पे इक सपना भी होना चाहिए
दोस्ती के आईने में देख सब शाहिद मगर
मां के आंचल सा कोई पर्दा भी होना चाहिए
oh! Wah! Bas itnaahee kah paa rahee hun!
आदाब हुज़ूर...
बेग़रज़ बेलौस इक रिश्ता भी होना चाहिए
ज़िन्दगी में कुछ न कुछ अच्छा भी होना चाहिए
प्यारा मतला...
बोलिए कुछ भी मगर .....
दूसरा शे'र एक बहुत जरूरी हिदायत देता हुआ ....
इसी तरह मक्ता ...आज के वक़्त में कई जरूरी परदे डालने की हिदायत दे रहा है...खासकर नयी पीढ़ी के लिए...
माँ के आँचल सा कोई पर्दा भी होना चाहिए...
और इस शे'र के लिए अलग से कमेन्ट देना जरूरी है...
क्यूंकि...
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए
ये जालिम शे'र कहीं.....जान ना लेले...
ये हक़ीक़त के गुलों पर ख्वाब की कुछ तितलियां
’ऐसा होना चाहिए. वैसा भी होना चाहिए’...
मजा आ गया जानी....!!
ऐसा होना चाहिए. वैसा भी होना चाहिए
ऐसा होना चाहिए. वैसा भी होना चाहिए
ऐसा होना चाहिए. वैसा भी होना चाहिए
दिल में उतर गया सीधा...
माँ के आंचल.... बंदिश की तारीफ़ आप जबरदस्ती करवा ही लेते हैं.
अभी टूर के लिए निकल रहा हूँ, वापसी ५-६ रोज़ बाद, फिर इत्मीनान से.
"दोस्ती के आईने में देख सब शाहिद मगर
मां के आंचल सा कोई पर्दा भी होना चाहिए"
बढ़िया !
बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए
इस एक शेर के हवाले से आपने
पूरे समाज के लिए
एक सन्देश रख छोड़ा है ....
बात-चीत की आज़ादी का ये मतलब हरगिज़ नहीं
कि कहीं भी, कुछ भी कह दिया जाए .. वाह !
हो तो जाती हैं ये आंखें नम किसी भी बात पर...
ये अकेला मिसरा ही
अपनी बात खुद कह गया है
और ...
शेर होते-होते आम इंसान के जज़्बात भी
मुखर हो उठे हैं
एक कामयाब ग़ज़ल पर ढेरों बधाई
bahut hi khoob.....
likhte rahiye.....
A Silent Silence : फूलों से खुशबू चुराने लगी हूँ मै
Banned Area News : Sahitya Akademi declares 'Bal Sahitya Puraskar 2010'
हो तो जाती हैं ये आंखें नम किसी भी बात पर
हां मगर पलकों पे इक सपना भी होना चाहिए
kya baat hai
बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए
वाह ..बहुत खूबसूरत गज़ल ....हर शेर उम्दा ..
आपके मेल का इंतज़ार था...
आज की प्रस्तुति भी लाजवाब है.
बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए
सुन्दर!
ख़ूबसूरत ग़ज़ल , ये दोनों शेर बहुत भाये ।
बेग़रज़ बेलौस इक रिश्ता भी होना चाहिए
ज़िन्दगी में कुछ न कुछ अच्छा भी होना चाहिए
हो तो जाती हैं ये आंखें नम किसी भी बात पर
हां मगर पलकों पे इक सपना भी होना चाहिए
और सपने के बिना जैसे इंसान पंगु ।
shahid ji namaskaar
aapki kalam abhi bhi jawan hai aur hamesha rahegi... aisa hum jante hain magar aaj ish parde ki antim line ne dil ko choo liya hai....
shahid ji namaskaar
aapki kalam abhi bhi jawan hai aur hamesha rahegi... aisa hum jante hain magar aaj ish parde ki antim line ne dil ko choo liya hai....
मतले से मकते तक के निहायत खूबसूरत सफ़र का दूसरा नाम है जनाब शाहिद साहब की ग़ज़ल...अब किस शेर की बात करूँ किसे छोडूं? माँ के आँचल वाले मिसरे ने तो कलेजा निकल लिया...वल्लाह ...क्या कहें..???
नीरज
हो तो जाती हैं ये आंखें नम किसी भी बात पर
हां मगर पलकों पे इक सपना भी होना चाहिए
दोस्ती के आईने में देख सब शाहिद मगर
मां के आंचल सा कोई पर्दा भी होना चाहिए
jawab nahi ,behad khoobsurat ,har sher laazwaab hai ,kya kahoon samjh nahi paa rahi ,padhkar sukhad anubhuti hui .
बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए ..
बहुत ही बेहतरीन गज़ाल .... सुभान अल्ला ... ज़माने को आईना दिखाता शेर है ..... ग़ज़ब की अदायिगि है आपकी .....
ऐसा संभव नहीं हो पा रहा की किसी एक शेर को चुन कर सराहूं. मुझे तो पूरी की पूरी गज़ल और वो भी परदे में बहुत खूबसूरत लग रही है. वैसे भी परदे में जिसमे थोड़ी झलक भी दिखे तो खूबसूरत लगती ही है. वैसे भी हम आपकी गज़लों के मुरीद हैं.
बहुत खूब.
वाह शाहिद साहब आपके ब्लॉग पर आना हमेशा ही एक सुंदर अनुभव होता है । इस बार की गज़ल भी बहुत ही बढिया ।
"बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए"
ये तो बहुत ही सामयिक और सटीक ।
Kya khub likha hai-- Maa ke aanchal sa koi parda bhi hona chaiyai. Meri taraf sai dher sari badhai
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल..... बहुत खूब!
हो तो जाती हैं ये आंखें नम किसी भी बात पर
हां मगर पलकों पे इक सपना भी होना चाहिए
aadab !
shahid bhai saab !
meri pasand ka sher aap ki nazar hai ,
saadar !
शाहिद साहब इस भावपूर्ण नाजुक-सी रचना के लिये बहुत बधाई
हो तो जाती हैं ये आंखें नम किसी भी बात पर
हां मगर पलकों पे इक सपना भी होना चाहिए
सच..सपने के बिना भी क्या ज़िन्दगी...सारे शेर बहुत ख़ूबसूरत हैं...सुन्दर ग़ज़ल
हो तो जाती हैं ये आंखें नम किसी भी बात पर
हां मगर पलकों पे इक सपना भी होना चाहिए
सच..सपने के बिना भी क्या ज़िन्दगी...सारे शेर बहुत ख़ूबसूरत हैं...सुन्दर ग़ज़ल
बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए...
सुन्दर ग़ज़ल
हो तो जाती हैं ये आंखें नम किसी भी बात पर
हां मगर पलकों पे इक सपना भी होना चाहिए॥
बिल्कुल सही कहा है आपने! बहुत ही शानदार और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने और आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! हर एक शेर बहुत ही ख़ूबसूरत, भावपूर्ण और एक से बढ़कर एक हैं! बेहतरीन प्रस्तुती !
बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए
वाह ...क्या बात है शाहिद साहेब ! जबरदस्त्त बात कही है.
एक एक शेर उम्दा है.
ये हक़ीक़त के गुलों पर ख्वाब की कुछ तितलियां
’ऐसा होना चाहिए. वैसा भी होना चाहिए’
waah waah .......... zahan mein gunjta rahega ......
बढ़िया ग़ज़ल...
खूबसूरत ग़ज़ल...
behad achchi lagi.
शाहिद जी
स्वतंत्रता दिवस पर बेहतरीन ग़ज़ल लिख डाली है दोस्त....मतला ता मक्ता हर शेर क्या खूब बन पड़ा है
और इस शेर के तो क्या कहने....वाह वाह
बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए
आज़ादी के मायने सचमुच सीखने की जरूरत है हमें अभी.....
और यह शेर तो दिल चुरा ले गया....!
दोस्ती के आईने में देख सब शाहिद मगर
मां के आंचल सा कोई पर्दा भी होना चाहिए
शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
ma ke aanchal sa koi prda hona chahiye
sch ma ke aanchal me jo bat hai vo duniya me khi bhi nhi . vo isme sari kaynat smetne ka madda rkhti hai .
aapki bhavnaye bhut sundar hai.
शाहिद सर को सलाम। आपके इस शेर "बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में/लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए" के दोनों बेमिसाल मिस्रों ने वो बात कह् दी कि आपको सैल्युट करने को दिल किया।
लाजवाब ग़ज़ल- हमेशा की तरह।
बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए
क्या बात है !
आपकी हर ग़ज़ल की तरह ही यह ग़ज़ल भी बहुत ही ज़बरजस्त रही .....बहुत उम्दा
सादर
बीते लम्हों में नहीं. कल की उम्मीदों में नहीं... मैं हक़ीक़त में जिया करता हूं, ख्वाबों में नहीं... मेरी फितरत, मेरे अफकार अलग हैं 'शाहिद'... दिल मसाइल में उलझता है, ये ज़ुल्फों में नहीं!!!
वह........क्या बात है जनाब
"बोलिए कुछ भी मगर आज़ादी-ए-गुफ़्तार में
लफ़्ज़ पर तहज़ीब का पहरा भी होना चाहिए"
दुरुस्त फ़रमाया आपने
यही बात अगर सब लोगों के जेहन में उतार जाय तो फिर क्या बात हो........
शुभकामनाये कि आपकी ये बात दूर तलक जाये
शाहिद साहब !!! स्नेह एवं जज्बातों का लहलहाता समंदर भिगो गया अंतर तक ...आपको कोटि कोटि नमन....स्नेह सादर अभिन्दन !!
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