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Sunday, April 17, 2011

कुछ कुछ बिखर गया होगा


हज़रात, आदाब

14 फ़रवरी 2011 को लांच हुआ दैनिक जनवाणी, मेरठ का अब तक एक लाख से अधिक सर्कुलेशन हो चुका है. इसी की कतरन बतौर तम्हीद हाज़िर है.
मुलाहिज़ा फ़रमाएं, एक ताज़ा ग़ज़ल

खुशी का कोई बहाना वो ढूंढता होगा
गमों से मुझको भी खुद को उबारना होगा

नमी से आंखों की वो रोज़ भीगता होगा
मुझे यक़ीन है पत्थर नहीं हुआ होगा


सिमट के रहने का फ़न सीखने से पहले तक
मेरी तरह कोई कुछ कुछ बिखर गया होगा

ऐ वक़्त, माज़ी के कुछ तो निशान रहने दे
कि खुद में मुझको अभी तक वो देखता होगा

ये किरचें रोज़ यही इक सवाल करती हैं
कि मेरे दिल को अभी कितना टूटना होगा

फ़रेब ही सही फिर भी सुकून देता है
कि दूर जाके मुझे वो पुकारता होगा
यूं बेसबब कोई कब रास्ता बदलता है
यूंही तो तर्के-तआल्लुक नहीं किया होगा


ज़रा ये सोच कभी तू ऐ बुत खुदा के लिए
कोई उम्मीद से तुझको तराशता होगा

मिलेगा दर्द तो निखरेगी शायरी ’शाहिद’
ये मुझको तोड़ने वाला भी जानता होगा


शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

47 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सबसे पहले दैनिक जनवाणी में आपकी गज़ल छपने के लिए बधाई ..

ऐ वक़्त, माज़ी के कुछ तो निशान रहने दे
कि खुद में मुझको अभी तक वो देखता होगा

ये किरचें रोज़ यही इक सवाल करती हैं
कि मेरे दिल को अभी कितना टूटना होगा

गज़ल हमेशा की तरह बहुत खूबसूरत

kshama said...

नमी से आंखों की वो रोज़ भीगता होगा
मुझे यक़ीन है पत्थर नहीं हुआ होगा

सिमट के रहने का फ़न सीखने से पहले तक
मेरी तरह कोई कुछ कुछ बिखर गया होगा

ऐ वक़्त, माज़ी के कुछ तो निशान रहने दे
कि खुद में मुझको अभी तक वो देखता होगा
Kin kin panktiyon ko dohraya jaye.....sabhee ekse badhke ek!
Dainik Jagran me aayee rachana ke liye badhayi ho!

Dr (Miss) Sharad Singh said...

दैनिक जनवाणी में आपकी गज़ल छपने के लिए बधाई ..

वन्दना अवस्थी दुबे said...

मिलेगा दर्द तो निखरेगी शायरी ’शाहिद’
ये मुझको तोड़ने वाला भी जानता होगा
बहुत सुन्दर ग़ज़ल.

Sunil Kumar said...

ये किरचें रोज़ यही इक सवाल करती हैं
कि मेरे दिल को अभी कितना टूटना होगा
खुबसूरत शेर , मुबारक हो......

इस्मत ज़ैदी said...

सिमट के रहने का फ़न सीखने से पहले तक
मेरी तरह कोई कुछ कुछ बिखर गया होगा
बहुत ख़ूबसूरत !


फ़रेब ही सही फिर भी सुकून देता है
कि दूर जाके मुझे वो पुकारता होगा
कभी कभी ये फ़रेब ही शायद ज़िन्दगी दे जाते हैं ,इस एहसास को बहुत ख़ूबसूरती से अल्फ़ाज़ बख़्श दिये आप ने

यूं बेसबब कोई कब रास्ता बदलता है
यूंही तो तर्के-तआल्लुक़ नहीं किया होगा
वाह !क्या बात है !

कुछ अश’आर का चुनाव इस बात का सुबूत नहीं कि ग़ज़ल में कोई कमी है ,,,हमेशा की तरह बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है ,,,मुबारक हो !

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

badhaai..........

rashmi ravija said...

ये किरचें रोज़ यही इक सवाल करती हैं
कि मेरे दिल को अभी कितना टूटना होगा

क्या बात है.....बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल

मीनाक्षी said...

आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ लेकिन बेहद खूबसूरत सफ़र रहा ..शुक्रिया

ज्योति सिंह said...

मिलेगा दर्द तो निखरेगी शायरी ’शाहिद’
ये मुझको तोड़ने वाला भी जानता होगा
bahut hi laazwaab ,padhkar sochti rahi kise kahoon khas sab to hai aas-paas ,aapki rachna ka besabri se intjaar hota hai ,jahan nai post dekhi turant daud lagate hai ki aaj shahid ji ne kya kamaal kiya hai ,aap bloger nahi hote to apni pasand me aapki rachna bhi darz rahti .
pahle badhai le ,mera manna hai ki janvani ka saubhagya hai ki use aapki rachna chhpvaane ka avsar mila .

Udan Tashtari said...

ज़रा ये सोच कभी तू ऐ बुत खुदा के लिए
कोई उम्मीद से तुझको तराशता होगा


-वाह! बहुत उम्दा...बेहतरीन.

http://anusamvedna.blogspot.com said...

ये किरचें रोज़ यही इक सवाल करती हैं
कि मेरे दिल को अभी कितना टूटना होगा

अद्भुद... एक एक शे'र मोती ... आभार

अरुण चन्द्र रॉय said...

सबसे पहले दैनिक जनवाणी में आपकी गज़ल छपने के लिए बधाई ..

ये किरचें रोज़ यही इक सवाल करती हैं
कि मेरे दिल को अभी कितना टूटना होगा

...गज़ल हमेशा की तरह बहुत खूबसूरत

सुनील गज्जाणी said...

aadab !
जन वाणी और बुलंदियों तक पहुंचे ये हमारी दुआ है , और आप कि ग़ज़ल के बारे में क्या कहे .... खूब सूरत है , उम्दा शेरो से भरी ग़ज़ल के लिए शुक्रिया !
आदाब !

shikha varshney said...

ये किरचें रोज़ यही इक सवाल करती हैं
कि मेरे दिल को अभी कितना टूटना होगा

waah ...
और आखिरी शेर लाजबाब ...
बहुत ही उम्दा गज़ल .

सु-मन (Suman Kapoor) said...

sabse pahle gazal prakish hone ke liye bahut bahut badhai....

aap bahut sundar likhte hain..aaj bhi bahut khoob likha hai..

नमी से आंखों की वो रोज़ भीगता होगा
मुझे यक़ीन है पत्थर नहीं हुआ होगा

ऐ वक़्त, माज़ी के कुछ तो निशान रहने दे
कि खुद में मुझको अभी तक वो देखता होगा

bahut sundar

***Punam*** said...

शाहिद साहब..
दैनिक जनवाणी के लिए बधाई...
ईश्वर दिन दूनी रात चौगुनी शोहरत दे...!!

ग़ज़लों में महारत हासिल है आपको..
आपकी ग़ज़लें समाज एवं इन्सान के भावों का आइना हैं !

"सिमट के रहने का फ़न सीखने से पहले तक
मेरी तरह कोई कुछ कुछ बिखर गया होगा"

"यूं बेसबब कोई कब रास्ता बदलता है
यूंही तो तर्के-तआल्लुक नहीं किया होगा"

"मिलेगा दर्द तो निखरेगी शायरी ’शाहिद’
ये मुझको तोड़ने वाला भी जानता होगा"

खूबसूरत अंदाज़,उतने ही खूबसूरत अलफ़ाज़..

"हर टुकड़ा मेरे दिल का देता है दुहाई
दिल टूट गया आपको आवाज़ न आई..."

शुक्रिया.....

रश्मि प्रभा... said...

नमी से आंखों की वो रोज़ भीगता होगा
मुझे यक़ीन है पत्थर नहीं हुआ होगा
waah shahid ji, pure ehsaas os se hain

Asha Joglekar said...

यूं तो पूरी गज़ल ही खूबसूरत है पर

सिमट के रहने का फ़न सीखने से पहले तक
मेरी तरह कोई कुछ कुछ बिखर गया होगा

ऐ वक़्त, माज़ी के कुछ तो निशान रहने दे
कि खुद में मुझको अभी तक वो देखता होगा

ये किरचें रोज़ यही इक सवाल करती हैं
कि मेरे दिल को अभी कितना टूटना होगा

फ़रेब ही सही फिर भी सुकून देता है
कि दूर जाके मुझे वो पुकारता होगा
ये सारे अशआर बहुत भाये ।
छपने पर बधाई ।

udaya veer singh said...

priy mirja ji,
aapko pahali bar padha . behatarin rachana ,moti ke manake jaise gajal men piroye gaye lagate hain . sars mamshparshi shilp . sadhuvad .

Kunwar Kusumesh said...

लाजवाब लाजवाब लाजवाब.

अनामिका की सदायें ...... said...

ek ek shabd dil ke haal sunata hua sa laga..
bata tune dusro ka dard kaise likhna seekh liya...

sach me dono gazel bahut bahut jabardast hain.

kisi ko kam ya jyada keh kar nahi tola ja sakta.

वाणी गीत said...

ग़ज़ल प्रकाशित होने की बहुत बधाई ...

फरेब ही सही मगर दिल को सुकून देता है ,
दूर जाकर वो मुझको पुकारता होगा ...
मिलेगा दर्द तो निखरेगी शायरी ...सितम का अच्छा बहाना है ...:)

बेहतरीन रचना ..!

निर्मला कपिला said...

नमी से आंखों की वो रोज़ भीगता होगा
मुझे यक़ीन है पत्थर नहीं हुआ होगा

ये किरचें रोज़ यही इक सवाल करती हैं
कि मेरे दिल को अभी कितना टूटना होगा

ऐ वक़्त, माज़ी के कुछ तो निशान रहने दे
कि खुद में मुझको अभी तक वो देखता होगा

और मक्ता वाह क्या सही कहा।
गीत गज़ल लिख वक्त गुजारें तन्हाइ के मारे रामा
मक्ते पर बस एक लाईन ही याद है । लाजवाब तो आपकी गज़ल होती ही है अब इस पर क्या कहूँ। बधाई इस गज़ल के लिये और जनवाणी वाली गज़ल के लिये भी।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

dono hee ghazal parhkar anand aa gaya sir, saadar...

शारदा अरोरा said...

khoobsoorat sheron se saji gazal
likhne vala ye jaanta hai ki har mod se koi najm paida hoti hai
yahi uska fan hai jo alfaazon men bayan hota hai , badhaee bhi kubool karen ,

daanish said...

सबसे पहले "जनवाणी" के जन-जन तक
पहुँच जाने के लिए मुबारकबाद कुबूल करें
और अब आपकी खूबसूरत ग़ज़ल....
नमी से आंखों की वो रोज़ भीगता होगा
मुझे यक़ीन है पत्थर नहीं हुआ होगा
इस लाजवाब और बे-मिसाल शेर पर तो
कुछ कहते ही नहीं बनता है ...
ढंग से तारीफ़ भी नहीं कर pa रहा हूँ
और
ये किरचें रोज़ यही इक सवाल करती हैं
कि मेरे दिल को अभी कितना टूटना होगा
वाह - वा !!
एक मुकम्मल ग़ज़ल के लिए
dheron mubarakbaad !!!

Vishal said...

ज़रा ये सोच कभी तू ऐ बुत खुदा के लिए
कोई उम्मीद से तुझको तराशता होगा
Wah Wah!!
Zindabad!!

दिगम्बर नासवा said...

Bahut bahut badhaai ...
Itni lajawaab gazal hai ki har sher gungunaya ja sakta hai .... Mazaa aa gaya Shahid Bhai ...

Anonymous said...

milta raha hai dard jo aksar mazaak me,
usko udata raha hoon hanskar mazak me....

bahut khoob....

"अर्श" said...

ज़मानत ज़प्त कर देने वाली ग़ज़ल .. बेहद उम्दा कुछ शे'र !


अर्श

नीरज गोस्वामी said...

ये किरचें रोज़ यही इक सवाल करती हैं
कि मेरे दिल को अभी कितना टूटना होगा

शाहिद भाई देर से दस्तक देने पर शर्मिंदा हूँ...पता नहीं कहाँ मसरूफ रहा के ये बेहतरीन ग़ज़ल निगाहों में नहीं आ पाई...दाद कबूल करें और जनवाणी पर प्रकाशन पर मुबारकबाद भी.
नीरज

Pawan Kumar said...

हमने भुला दिया तुम्हे, तुम भी भुला ही दो
रोया बहुत ये बात वो कहकर मजाक में........
बहुत उम्दा ......वाह वाह शाहिद भाई जिंदाबाद.
दैनिक जनवाणी में छपने की बधाई.....!!!
ये ग़ज़ल भी क्या खूब बन पड़ी है......
खुशी का कोई बहाना वो ढूंढता होगा
गमों से मुझको भी खुद को उबारना होगा

सिमट के रहने का फ़न सीखने से पहले तक
मेरी तरह कोई कुछ कुछ बिखर गया होगा

Rajesh Kumari said...

सिमट के रहने का फ़न सीखने से पहले तक
मेरी तरह कोई कुछ कुछ बिखर गया होगा"

"यूं बेसबब कोई कब रास्ता बदलता है
यूंही तो तर्के-तआल्लुक नहीं किया होगा"

sampoorn gazhal behad khoobsurat hai.

सतीश सक्सेना said...


हँसते हंसाते कोई मुझे अपना कह गया
शाहिद संवर गया है मुकद्दर मज़ाक में

क्या बात है शाहिद मियां.... शुभकामनायें आपको !

रानीविशाल said...

दैनिक जनवाणी में आपकी गज़ल प्रकाशित होने पर बधाई स्वीकारे ...हमेशा ही की तरह एक और बेहतरीन ग़ज़ल हर एक शेर कमाल का है .

Vivek Jain said...

बहुत सुन्दर , बहुत-बहुत बधाई ....
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

kumar zahid said...

फ़रेब ही सही फिर भी सुकून देता है
कि दूर जाके मुझे वो पुकारता होगा

मिलेगा दर्द तो निखरेगी शायरी ’शाहिद’
ये मुझको तोड़ने वाला भी जानता होगा

बेहतर अशआर
Behtar asha'ar

Urmi said...

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती! बधाई!

virendra sharma said...

बहुत खूब हैं आपके"अश "आर ज़नाब मिर्ज़ा साहिब .आदाब !

mridula pradhan said...

नमी से आंखों की वो रोज़ भीगता होगा
मुझे यक़ीन है पत्थर नहीं हुआ होगा
wah.bahut sunder.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय शाहिद मिर्ज़ा शाहिद जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

माताजी के स्वास्थ्य तथा अन्य कारणों से नेट से चल रही दूरी ने इतनी ख़ूबसूरत ग़ज़ल से अब तक वंचित रखा … लेकिन कुछ ठिकाने ऐसे हैं कि देर सवेर पहुंचना ही पहुंचना है …
जज़्बात भी मेरा ऐसा ही पसंदीदा घर है :)

नहीं करूंगा किसी एक शे'र को कोट …

पूरी ग़ज़ल के लिए , एक-एक शे'र के लिए दिली मुबारकबाद और शुक्रिया !

और … आपकी ग़ज़ल के तोहफ़े के रूप में'दैनिक जनवाणी' के पाठकों के हिस्से में एक बेहतरीन ग़ज़ल आई इसके लिए संपादक और पाठकों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

- राजेन्द्र स्वर्णकार

Asha Joglekar said...

Pehale to janwani men chapane kee mubarakbad kubool karen. Behad sunder gazalen dono hee.
ज़रा ये सोच कभी तू ऐ बुत खुदा के लिए
कोई उम्मीद से तुझको तराशता होगा

मिलेगा दर्द तो निखरेगी शायरी ’शाहिद’
ये मुझको तोड़ने वाला भी जानता होगा
ek ek sher khoobsurat maine bas ye do chune .

Urmi said...

आपकी उत्साह भरी टिप्पणी और हौसला अफजाही के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

रजनीश तिवारी said...

शानदार गज़ल ...
"मिलेगा दर्द तो निखरेगी शायरी ’शाहिद’
ये मुझको तोड़ने वाला भी जानता होगा"

Purshottam Abbi 'Azer' said...

जनाब मिर्ज़ा साहिब
आदाब
ग़ज़ल का मतला , मक्ता व् रदीफ़ के लिए दाद कबूल फरमाएं बेहतरीन ख्यालात !
साथ में इन मिसरों पर गौर फरमाएं!

मिलता रहा है दर्द जो(अक्सर) मज़ाक में

रोया बहुत वो बात को कह कर मज़ाक में


हमने भुला दिया गिला ,तुम भी भुला ही दो
आओ गले लगा भी लो कसकर मज़ाक में

बेहतरीन ख्यालात
"यूं बेसबब कोई कब रास्ता बदलता है
यूंही तो तर्के-तआल्लुक नहीं किया होगा"

"हर टुकड़ा मेरे दिल का देता है दुहाई
दिल टूट गया आपको आवाज़ न आई..."

आज़र

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

@ पुरुषोत्तम जी, जज़्बात पर तशरीफ़ लाने और ग़ज़ल पसंद करने के लिए शुक्रिया...
और हां, आपने कुछ मिसरों पर गौर करने को कहते हुए कुछ मिसरे लिखे हैं...
शुरूआत अच्छी है...
कामयाबी की दुआओं के साथ...
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद