गांधी जयंती
यानी 2 अक्टूबर 2009 से शुरू हुआ ब्लॉगिंग का ये सिलसिला आज दो साल पूरे कर रहा है...
एक इतल्ला भी इस मौके पर देना चाहता हूं...मेरे मित्र जनाब केपी सिंह ने नाचीज़ को
संवाद मीडिया
की एडिटिंग की ज़िम्मेदारी सौंपी है...ये एक सामाजिक-साहित्यिक मासिक मैग्जीन है...
जिसमें आप अपनी रचनाएं भेज सकते हैं...
मेल भेजकर अपने ब्लॉग से रचनाएं लिए जाने की अनुमति भी प्रदान करने की मेहरबानी ज़रूर कीजिएगा...
और हां...मैग्जीन भेजने के लिए पोस्टल एड्रेस की ज़रूरत भी होगी.
अभी दीपावली विशेषांक की तैयारी चल रही है...
सभी से रचनाओं का सहयोग अपेक्षित है.
अब बात जज़्बात के दो साल पूरे होने की, इस मौके पर सफ़र की शुरूआत से लेकर आज तक के बहुत से वाक्यात याद आ रहे हैं...कई उतार चढ़ाव भी आए, यहां आकर एक परिवार...गांव जैसा माहौल मिला...इतना अपनापन मिला...कि यही ग़ज़ल सबसे मुनासिब लग रही है...
मुलाहिज़ा फ़रमाएं-
ये ज़मी, ये आसमां, ये चांद-तारे गांव में
देखिये आकर कभी दिलकश नज़ारे गांव में
चोट इक दिल पर लगे और दर्द सारे गांव में
भाईचारे का ये आलम है हमारे गांव में
शहर की रंगीनियों से सादगी अच्छी लगी
हमने ओहदों के लबादे जब उतारे गांव में
साजिश-ऐ-तकदीर ने दोनों को तन्हा कर दिया
बे-सहारा... मैं यहां... मेरे सहारे... गांव में
लौटने की कोशिशें करता रहा 'शाहिद' मगर
रह गए अपने सभी बांहें पसारे गांव में
शाहिद मिर्जा शाहिद
36 comments:
सब से पहले तो जज़्बात की सालगिरह पर मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं
शहर की रंगीनियों से सादगी अच्छी लगी
हमने ओहदों के लबादे जब उतारे गांव में
बेहद उम्दा शेर !!
गाँव की शादाबी और सर सब्ज़ माहौल का लुत्फ़ भी तभी उठाया जा सकता है जब हम ओहदों या तथाकथित बड़प्पन के लबादे उतार फेंकें ,,बहुत ख़ूब !!
साजिश-ऐ-तकदीर ने दोनों को तन्हा कर दिया
बे-सहारा... मैं यहां... मेरे सहारे... गांव में
क्या बात है !!
बड़ी ही सादगी से आप ने इस अलमिये को क़लमबंद किया है ,,सच है कि ये रोज़ी रोटी की फ़िक्रें हमें अपनों से अलग कर देती हैं
इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये आप मुबारकबाद के हक़दार हैं
शहर की रंगीनियों से सादगी अच्छी लगी
हमने ओहदों के लबादे जब उतारे गांव में
वाह! क्या खूब लिखा है ...लाजवाब!
--बहुत -बहुत बधाई पत्रिका संपादक बनने पर ...और शुभकामनाएँ भी.
साजिश-ऐ-तकदीर ने दोनों को तन्हा कर दिया
बे-सहारा... मैं यहां... मेरे सहारे... गांव में
blog kee saalgirah per aap aaye to .... her baar ki tarah behtareen gazal
क्या बात है ,मिर्जा साहब , उम्दा पोस्ट ,, शुक्रिया जी
क्या बात है ,मिर्जा साहब , उम्दा पोस्ट ,, शुक्रिया जी
सालगिरह पर मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं...
ब्लॉग के दो साल पूरा होने की बधाई ...
मन के भावों को बखूबी लिखा है ..
♥
* बधाइयां जी बधाइयां ! *
आदरणीय शाहिद मिर्जा शाहिद जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
जज़्बात की सालगिरह पर मुबारकबाद !
संवाद मीडिया के संपादक बनने पर भी बधाई !
और ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए भी साधुवाद !
हर शे'र भावनाओं से भरा है …
मर्मस्पर्शी ग़ज़ल है… पुनः आभार !
एक ख़ूबसूरत बंदिश याद आ गई -
… चार पैसे कमाने मैं आया शहर
गांव मेरा मुझे याद आता रहा
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
… रचनाएं भी पोस्टल एड्रेस सहित भेजता हूं ।
एक साथ दो-दो कामयाबियां बहुत-बहुत मुबारक हो!
सबसे पहले बधाई ब्लॉग के २ साल पूरे होने के लिए...
और आपकी ग़ज़ल भी बहुत खूबसूरत है..
शहर की रंगीनियों से सादगी अच्छी लगी
हमने ओहदों के लबादे जब उतारे गांव में
उम्दा शेर वाह !!
ये ज़मी, ये आसमां, ये चांद-तारे गांव में
देखिये आकर कभी दिलकश नज़ारे गांव में
चोट इक दिल पर लगे और दर्द सारे गांव में
भाईचारे का ये आलम है हमारे गांव में
शहर की रंगीनियों से सादगी अच्छी लगी
हमने ओहदों के लबादे जब उतारे गांव में
साजिश-ऐ-तकदीर ने दोनों को तन्हा कर दिया
बे-सहारा... मैं यहां... मेरे सहारे... गांव में
लौटने की कोशिशें करता रहा 'शाहिद' मगर
रह गए अपने सभी बांहें पसारे गांव में
पूरी ग़ज़ल कमाल है भाई! एक भी शेर छोड़ा नहीं जा सकता था, सो पूरी ही पेस्ट कर दी :) ग़ज़ब शेर!!
जज़्बात की सालगिरह मुबारक हो. ये सफ़र इसी तरह बलन्दियों को छूता रहे. और हां सम्वाद मीडिया के सम्पादकत्व के लिये बधाई.
चोट इक दिल पर लगे और दर्द सारे गांव में
भाईचारे का ये आलम है हमारे गांव में
Behad umda sher! Waise to sabhee ashaar ekse badhke ek hain!
ब्लॉग के दो वर्ष पूरे करने की बहुत बहुत बधाई
संपादन की जिमेवारी की भी बधाई और अनेको शुभकामनाएं
इस मौके पर बहुत ही उम्दा ग़ज़ल पोस्ट की है...
ये शेर खासकर दिल छू गया..
लौटने की कोशिशें करता रहा 'शाहिद' मगर
रह गए अपने सभी बांहें पसारे गांव में
सचमुच दिलकश वर्णन है...
क्या कहें इस गज़ल को हम खूबसूरत वाह वा
ये दुआ है मुल्क सारा सिमट आये गाँव में
सादर...
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और यशस्वी प्रधानमंत्री रहे स्व. लालबहादुर शास्त्री के जन्मदिवस पर उन्हें स्मरण करते हुए मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि!
इन महामना महापुरुषों के जन्मदिन दो अक्टूबर की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
"जज़्बात" की सालगिरह के मौक़े पर
और "संवाद-मीडिया" में शामिल हो जाने पर
मेरी जानिब से बहुत बहुत मुबारकबाद ...
ग़ज़ल के तमाम अश`आर बहुत अच्छे लगे
ख़ास तौर पर ..
चोट इक दिल पर लगे, और दर्द सारे गाँव में...
मन में कहीं गहरे उतर गया है ,,, वाह !
जज्बात की वर्षगांठ पर हार्दिक बधाई
बहुत बढ़िया गज़ल
घर का नेट खराब था कुछ दिनों से इसलिए इतनी देरी से बधाई देने पहुंची.माफी चाहती हूँ.
जज्बात की वर्षगाँठ पर और इतनी सुन्दर गज़ल के लिए ढेरों शुभकामनाएं.
bahut bahut badhayi.
bahut umda gazal.
waqt waqt par mail bhejte rahenge.
behtareen sher...!!
प्रणाम !
ज़ज्बात कि दूसरी वर्ष गाँठ पे हमारी और से बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिएगा ,
चोट इक दिल पर लगे और दर्द सारे गांव में
भाईचारे का ये आलम है हमारे गांव में
अच्छे शेर के लिए मुबारका !
सादर
बधाई शाहिद साहब ... ब्लॉग और संपादन के भार मिलने पर ...
आपकी गज़ल तो हमेशा की तरह से कमाल करती है ... मिट्टी से निकली हुयी ... उसकी खुशबू लिए ...
अंतिम शेर को कई बार पढ़ा और बस सोचता ही रह गया ,,, कितना करीब है ....
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! मन के भाव को बड़े ही खूबसूरती से व्यक्त किया है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
..बेहतरीन गज़ल।
शहर की रंगीनियों से सादगी अच्छी लगी
हमने ओहदों के लबादे जब उतारे गांव में
गुरू छा गए । बहुत सुंदर। मेरे पोस्ट पर भी समय इजाजत दे तो तशरीफ रखें । धन्वाद ।
july ke baad aaj kisi blog par aayee hoon .sehat ki vajah se net se door hoon jaldi regular hoti hoon. gazal ke liye kya kahoon? shabad nahin hain aur shayad sab kuch bhool bhi gayee hoon. hameshaa ki tarah laajvaab gazal. aapako badhaai abhi sampadan ke baad aap apani patrika bhi nikalen yahi dua karati hoon.aap mere blog se koi bhi rachana le sakate hain lekin mujhe ye jaroor batayen ki kahan chhap rahi hai. gazal to shayad hi koi acchhi ho fir bhi jo apako achhi lage. agar copy karane me dikat ho to mujhe kahen mai mail kar doongi. ab shayad roj ek aadh hour ke liye aayaa karoongi .dhanyavaad.
BAHUT KHOOBSOORAT AUR UMDA GAZAL
KE LIYE MIRZA JI KO DHERON BADHAAEEYAN AUR SHUBH KAMNAAYEN .
gazal bahut achchhi lagi ...aap cahen to blog se rachna le sakte hai..bas inform kar de...
दो वर्ष पूरे करने पर शुभकामना. गजल रौशनी दे रही है.
२ साल की बधाई और गाँव की बात ही कुछ और है..
आपने यह खूब कही कि चोट एक को लगती थी और दर्द हर एक को..
पर अब यह सब भी अब धुंधला होता दिखाई दे रहा है..
शहर की रंगीनियों से सादगी अच्छी लगी
हमने ओहदों के लबादे जब उतारे गांव में
वाकई में एक अपनापन का एहसास होता है जब भी हम गाँव जाते हैं....सारा बनावटीपन जो शहर में रहते-रहते हमारे अस्तित्व में रच-बस जाता है....वहां पहुँचते ही एक वास्तविक सहजता में बदल जाता है....!!
सुन्दर रचना....!!
sach hai shahar ki bheed se door jane per lautne ka man kahan hota hai,wahan ki sadgi shahron me kahan?
शहर की रंगीनियों से सादगी अच्छी लगी
हमने ओहदों के लबादे जब उतारे गांव में
WAQT RUK SA GAYA AS SHER KO PADHNE KE BAAD.
चोट इक दिल पर लगे और दर्द सारे गांव में
भाईचारे का ये आलम है हमारे गांव में ।
वाह ।
बहुत बहुत बधाई आपको दो साल पूरे करने की ।
हमेशा की तरह एक और खूबसूरत गज़ल भी मिल गई ।
दिवाली की शुभकामनाए..रोशनी का ये पर्व आपको आपके परिवार के सभी लोगो के जीवन में रोशनी लाए....नई जिम्मेदारी भी आपको मुबारक...रचनाओं की रोशनी आपकी जिम्मेदारी के साथ दुनिया में रोशन हो।
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