हज़रात,
इत्तेफ़ाफ़ है कि इससे पहले पोस्ट की गई ग़ज़ल गांव के सिलसिले से रही, और इसमें भी काफ़ी हद तक वही सब कुछ है...
मुलाहिज़ा फ़रमाएं
ग़ज़ल
बूंदें देखीं और खिल उठा जोबन कच्ची मिट्टी का
कितना गहरा रिश्ता है ये सावन-कच्ची मिट्टी का
शहर में कितनों को मिलता है बचपन कच्ची मिट्टी का
बस गमलों तक सिमट गया है उपवन कच्ची मिट्टी का
पत्थर के महलों में भी गुल खिल तो सकते हैं लेकिन
शर्त है बस इतनी हो घर में आंगन कच्ची मिट्टी का
ठेस लगी, दिल टूट गया, अब छोड़ो भी, जाने भी दो
बच भी आखिर कब तक पाता बरतन कच्ची मिट्टी का
पत्थर तो पत्थर हैं इनकी फ़ितरत में अहसास कहां
मेरे अल्लाह मुझको देना जीवन कच्ची मिट्टी का
शहर में आकर रस्म-तकल्लुफ़ सीख गया शाहिद लेकिन
मुझसे अब तक छूट न पाया दामन कच्ची मिट्टी का
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
42 comments:
ठेस लगी, दिल टूट गया, अब छोड़ो भी, जाने भी दो
बच भी आखिर कब तक पाता बरतन कच्ची मिट्टी का
सच कहा ..पर जिनके मन में कच्ची मिटटी की सोंधी खुशबू बसी हो...कैसे स्वीकार कर पायेंगे पत्थरों का पथरीलापन
बेहतरीन ग़ज़ल
♥
आदरणीय भाईजान शाहिद मिर्ज़ा शाहिद साहब !
सस्नेहाभिवादन ! आदाब !
ग़ज़ल पढ़ कर किसी और ही दुनिया में पहुंच गया जैसे -
ठेस लगी, दिल टूट गया, अब छोड़ो भी, जाने भी दो
बच भी आखिर कब तक पाता बरतन कच्ची मिट्टी का
पांव छूने को मन कर रहा है …
पूरी ग़ज़ल के लिए सलाम !
अभी दो-तीन दफ़ा पढ़ कर भरपूर आनंद देना चाहूंगा अपनी आत्मा को …
आभार , बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
क्या बात है मिर्ज साहब ! बगैर कच्ची मिटटी ,हम सुपुर्दे -खाक भी नहीं हो सकते , जीवन का आरम्भ भी कच्ची मिटटी सा ही है ./बे-लाग खुबसूरतसंजीदा गजल हम दिल से सम्मान करते हैं जी .शुक्रिया ../
मुझसे अब तक छूट न पाया दामन कच्ची मिट्टी का...
बहुत खुबसूरत सर... आनंद आ गया
बेहतरीन गजल पढ़कर
सादर...
शहर में कितनों को मिलता है बचपन कच्ची मिट्टी का
बस गमलों तक सिमट गया है उपवन कच्ची मिट्टी का
waah, kya baat kahi hai... kya pata kab gamle bhi gum ho jayen
बच भी आखिर कब तक पाता बरतन कच्ची मिट्टी का
जीवन के यथार्थ और दार्शनिकता से जुडी हुई
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है जनाब शाहिद साहब .. वाह !
हर शेर में जिंदगी और मुआशरे की हर
छोटी-बड़ी बात को लिया गया है
एक कामयाब और यादगार ग़ज़ल पर
दिली मुबारकबाद कुबूल करें ...
शहर में कितनों को मिलता है बचपन कच्ची मिट्टी का
बस गमलों तक सिमट गया है उपवन कच्ची मिट्टी का
गाँव और शहर की जिंदगियों का बहुत खूबसूरती से मोवाज़्ना किया गया है इस शेर में
ठेस लगी, दिल टूट गया, अब छोड़ो भी, जाने भी दो
बच भी आखिर कब तक पाता बरतन कच्ची मिट्टी का
बहुत ख़ूब !!
पत्थर तो पत्थर हैं इनकी फ़ितरत में अहसास कहां
मेरे अल्लाह मुझको देना जीवन कच्ची मिट्टी का
बहुत ख़ूबसूरत शेर !!
वाक़ई पत्थर तो पत्थर ही होता है एहसास और जज़्बात से आरी
ख़ूबसूरत ग़ज़ल की takhleeq के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
शहर में कितनों को मिलता है बचपन कच्ची मिट्टी का
बस गमलों तक सिमट गया है उपवन कच्ची मिट्टी का
पत्थर के महलों में भी गुल खिल तो सकते हैं लेकिन
शर्त है बस इतनी हो घर में आंगन कच्ची मिट्टी का
बहुत सुन्दर गज़ल ...पत्थरों के शहर में रह कर मन भी पत्थर के से हो गए हैं ..अब वो कच्ची मिट्टी की सी नमी कहाँ ?
हर शे'र लाज़वाब...बहुत सुन्दर वाह! वाह! वाह!
शहर में कितनों को मिलता है बचपन कच्ची मिट्टी का
बस गमलों तक सिमट गया है उपवन कच्ची मिट्टी का
पत्थर के महलों में भी गुल खिल तो सकते हैं लेकिन
शर्त है बस इतनी हो घर में आंगन कच्ची मिट्टी का
सुभान अल्लाह शाहिद भाई...क्या शेर कहें हैं और आपके रदीफ़ पर तो जानो दिल फ़िदा हो गया है...भाई इस लाजवाब ग़ज़ल के हर अशआर के लिए दिली दाद कबूल करें...ईद की ढेरों मुबारकबाद .
नीरज
शाहिद जी,..आदाब
पत्थर तो पत्थर है इनकी फितरत का एह्शास कहाँ
मेरे अल्लाह मुझको देना जीवन कच्ची मिट्टी का,
बहुत सुंदर गजल बेहतरीन पोस्ट ...
शहर वाले क्या जाने जिनके घर है कंक्रीटों के
जीवन तो गाँव में,और घर कच्ची मिट्टी का,
मेरे नए पोस्ट में स्वागत है समर्थक भी बन गया हूँ ......
जब से, इस जग को जाना है, पता है सब आना जाना है
मंजर कोई हो, नहीं पछताता, दरपन कच्ची मिटटी का
"पत्थर तो पत्थर हैं इनकी फ़ितरत में अहसास कहां
मेरे अल्लाह मुझको देना जीवन कच्ची मिट्टी का !"
वल्लाह.....
क्या खूबसूरत ज़ज्बात हैं ..
हर शेर पर दाद कबूल हो....!!
लाज़वाब...
बेहतरीन...!
खड़े हो कर हर शेर पर खूब तालियाँ पीट रहा हूँ..ऐसा मान लीजिए आप। इसे गाता हूँ..टेप करता हूँ..दोस्तों को सुनाता हूँ और आपसे अनुरोध करता हूँ कि कुछ दिन रहने दीजिए इसे यूँ ही ताजा..।
..बहुत बधाई। बहुत अच्छी लगी यह गज़ल।
आपकी उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
भाव-प्रवण गजल अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
शहर में कितनों को मिलता है बचपन कच्ची मिट्टी का
बस गमलों तक सिमट गया है उपवन कच्ची मिट्टी का
कुछ ऐसा ही जीवन हो गया है हम सब का भी.गमले तक सिमट गया है.
बहुत गहरी अभिव्यक्ति.
शहर में कितनों को मिलता है बचपन कच्ची मिट्टी का
बस गमलों तक सिमट गया है उपवन कच्ची मिट्टी का
क्या बात है शाहिद जी!! दिनोंदिन पक्की होती जा रही मिट्टी की कितनी सार्थक चिन्ता!!
शहर में आकर रस्म-तकल्लुफ़ सीख गया शाहिद लेकिन
मुझसे अब तक छूट न पाया दामन कच्ची मिट्टी का
मिट्टी से जुड़े लोग कहीं भी जायें, कहीं भी रहें, उनकी बातों में , उनकी यादों में मिट्टी ज़िन्दा रहती है, और शायद यही जज़्बा और लोग मिट्टी के सौंधेपन को, उसकी खुश्बू को जीवित रखे हुए हैं. शानदार ग़ज़ल.
बेहतरीन ग़ज़ल. बधाई और शुभकामनायें.
पत्थर के महलों में भी गुल खिल तो सकते हैं लेकिन
शर्त है बस इतनी हो घर में आंगन कच्ची मिट्टी का !
बहुत खूब ,शानदार और जानदार गज़ल के जरिये कच्ची मिटी की सोंधी महक से जोड़ा आपने !बहुत बहुत बधाई आपको !
बूंदें देखीं और खिल उठा जोबन कच्ची मिट्टी का
कितना गहरा रिश्ता है ये सावन-कच्ची मिट्टी का.
बहुत खूब.
पत्थर के महलों में भी गुल खिल तो सकते हैं लेकिन
शर्त है बस इतनी हो घर में आंगन कच्ची मिट्टी का
बहुत खूब .....
पत्थर तो पत्थर हैं इनकी फ़ितरत में अहसास कहां
मेरे अल्लाह मुझको देना जीवन कच्ची मिट्टी का
अल्लाह से ऐसी दुआ कोई फ़कीर ही मांग सकता है
शाहिद जी आपकी गजलें सीधे दिल में उतरती हैं ....
पत्थर के महलों में भी गुल खिल तो सकते हैं लेकिन
शर्त है बस इतनी हो घर में आंगन कच्ची मिट्टी का
बहुत खूब .....
पत्थर तो पत्थर हैं इनकी फ़ितरत में अहसास कहां
मेरे अल्लाह मुझको देना जीवन कच्ची मिट्टी का
अल्लाह से ऐसी दुआ कोई फ़कीर ही मांग सकता है
शाहिद जी आपकी गजलें सीधे दिल में उतरती हैं ....
shahid ji ..bahut sundar..itne saral shabdon me aapke kitni gahri baat kahi hai....bahut sundar..
पत्थर तो पत्थर हैं इनकी फ़ितरत में अहसास कहां
मेरे अल्लाह मुझको देना जीवन कच्ची मिट्टी का
ek dam sach kaha.
bahut umda gazal.
शहर में कितनों को मिलता है बचपन कच्ची मिट्टी का
बस गमलों तक सिमट गया है उपवन कच्ची मिट्टी का
पत्थर के महलों में भी गुल खिल तो सकते हैं लेकिन
शर्त है बस इतनी हो घर में आंगन कच्ची मिट्टी का...
बहुत सुन्दर और सटीक शेर ! लाजवाब ग़ज़ल ! बधाई!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen।..com/
वाह शाहिद भाई ... कमाल की गज़ल ... क्या गज़ब का रदीफ निभाया है पूरी गज़ल में ...
शहर में कितनों को मिलता है बचपन कच्ची मिट्टी का
बस गमलों तक सिमट गया है उपवन कच्ची मिट्टी का
जीवन की सच्चाई को बस इस एक शेर में सिमेट दिया है आपने ...
ठेस लगी, दिल टूट गया, अब छोड़ो भी, जाने भी दो
बच भी आखिर कब तक पाता बरतन कच्ची मिट्टी का
दिल तो वाकई मिट्टी का ढेला ही होता है ... एक ठोकर से ही टूट जाता है ...
क्या कमाल किया है सभी शेरों में जनाब ... ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद ...
शहर में कितनों को मिलता है बचपन कच्ची मिट्टी का
बस गमलों तक सिमट गया है उपवन कच्ची मिट्टी का
सबसे ज्यादा यथार्थ झलकता शेर .
वाह वाह
बहुत खूब
मुकम्मिल गज़ल ही बेहतरीन है
शहर में आकर रस्म-तकल्लुफ़ सीख गया शाहिद लेकिन
मुझसे अब तक छूट न पाया दामन कच्ची मिट्टी का
ye sher mujhe sabse jyada pasand aaya wese choice rakhne jaisa mouka aapne diyan nahi,sare sher ek se badhkar ek hain
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .
शहर में आकर रस्म-तकल्लुफ़ सीख गया शाहिद लेकिन
मुझसे अब तक छूट न पाया दामन कच्ची मिट्टी का
बेहतरीन ग़ज़ल । धन्यवाद ।
शहर में कितनों को मिलता है बचपन कच्ची मिट्टी का
बस गमलों तक सिमट गया है उपवन कच्ची मिट्टी का
पत्थर तो पत्थर हैं इनकी फ़ितरत में अहसास कहां
मेरे अल्लाह मुझको देना जीवन कच्ची मिट्टी का
बहुत खूब
बेहतरीन!!
शाहिद जी
अच्छी ग़ज़ल......
शहर में आकर रस्म-तकल्लुफ़ सीख गया शाहिद लेकिन
मुझसे अब तक छूट न पाया दामन कच्ची मिट्टी का.
इस शेर के क्या कहने.... दाद क़ुबूल फरमाएं
शाहिद जी
अच्छी ग़ज़ल......
शहर में आकर रस्म-तकल्लुफ़ सीख गया शाहिद लेकिन
मुझसे अब तक छूट न पाया दामन कच्ची मिट्टी का.
इस शेर के क्या कहने.... दाद क़ुबूल फरमाएं
पत्थर तो पत्थर हैं इनकी फ़ितरत में अहसास कहां
मेरे अल्लाह मुझको देना जीवन कच्ची मिट्टी का
शहर में आकर रस्म-तकल्लुफ़ सीख गया शाहिद लेकिन
मुझसे अब तक छूट न पाया दामन कच्ची मिट्टी का
वाह!..क्या खूब शेर कहे हैं आपने. कच्ची मिटटी की खुशबू जेहनो-दिल को तर कर गयी. बहुत ही उम्दा ग़ज़ल...मुबारक हो. मैं आपके ब्लॉग पर कभी-कभार आता रहा हूँ. आप पहली बार मेरे ब्लॉग पर आये. शुक्रिया.
ये कच्ची मिटटी दिल को छु गयी.. हालाँकि आपके लफ्जों में दिल भी है कच्ची मिटटी का... बहुत बुनियादी कविता/ गज़ल है बेहतर बेहतरीन ..
Ise shayri nahi ... Jadugari kaha jana chahiye ...
Bohot achha laga aapki ghazal padhke. Main aapke blog pe lagatar aataa rehta hoon , comment har baar nahi chhodta .. Lekin is ghazal ne majboor kar diya.
Regards
Vishal
बहुत प्यारी और जानदार ग़ज़ल है मिर्जा साहब!
हर शेर तराशा हुआ है।
ये शेर तो बेहद वजनदार हैं-
शहर में कितनों को मिलता है बचपन कच्ची मिट्टी का
बस गमलों तक सिमट गया है उपवन कच्ची मिट्टी का
पत्थर के महलों में भी गुल खिल तो सकते हैं लेकिन
शर्त है बस इतनी हो घर में आंगन कच्ची मिट्टी का
शहर में आकर रस्म-तकल्लुफ़ सीख गया शाहिद लेकिन
मुझसे अब तक छूट न पाया दामन कच्ची मिट्टी का
पत्थर के महलों में भी गुल खिल तो सकते हैं लेकिन
शर्त है बस इतनी हो घर में आंगन कच्ची मिट्टी का
waahhhhh
jeevan mitti ka kabhi chhutega nahi sir...
khubsoorat gazal...
शहर में कितनों को मिलता है बचपन कच्ची मिट्टी का
बस गमलों तक सिमट गया है उपवन कच्ची मिट्टी का
पत्थर के महलों में भी गुल खिल तो सकते हैं लेकिन
शर्त है बस इतनी हो घर में आंगन कच्ची मिट्टी का
ठेस लगी, दिल टूट गया, अब छोड़ो भी, जाने भी दो
बच भी आखिर कब तक पाता बरतन कच्ची मिट्टी का
पत्थर तो पत्थर हैं इनकी फ़ितरत में अहसास कहां
मेरे अल्लाह मुझको देना जीवन कच्ची मिट्टी का
kya baat hai - bas waah waah ki hi gunj nikalti hai dil se ,tan bhi mitti man bhi mitti ,mitti se apna nata to bahut hi gahra aur atoot hai
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