सूखें न भाईचारे के गंगो-जमन कभी
अल्लाह मेरे मुल्क में अम्नो-अमां रहे(ऊपर के लिंक पर भी क्लिक कीजिए)
सभी हज़रात को ईद मुबारक
ईद और हमारी संस्कृति
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
ईद,
ये लफ़्ज़ हर किसी के दिल में अपनेपन का अहसास पैदा कर देता है. हर दिल में खुशी की एक खास उमंग जाग जाती है. हो भी क्यों नहीं, ईद के मायने भी यही हैं न...खुशी.... जी हां, ईद खुशियों से भरी कुदरत की वो सौग़ात है, जिसे हर कोई महसूस करता है. हालांकि ये त्यौहार मुस्लिमों का कहा जाता है, लेकिन इसकी खुशियों में हर धर्म के मानने वाले वाले शरीक होते हैं. ईद से जुड़ा एक पहलू ये भी है कि इस्लामिक नज़रिये से देखा जाए तो एक-दूसरे से गले मिलने की परंपरा नहीं है, बल्कि मुस्लिम तौर-तरीकों के मुताबिक एक दूसरे से हाथ मिलाया जाता है, जिसे मुसाफ़ेहा कहा जाता है. अब सवाल ये है कि ईद पर एक दूसरे के गले लगने की परंपरा कहां से आई है? इसका सीधा सा जवाब है कि ईद की खुशी में ये भारतीय संस्कृति का ऐसा संगम है, जो सहज रूप में ही शामिल हो चुका है. आप सही समझ रहे हैं, अब त्यौहार किसी भी धर्म के मानने वाले मनाते हों, उनमें हमारी भारतीय संस्कृति अपनी अमिट छाप शामिल रखती है. उलेमा हज़रात का भी ऐसा ही मानना है कि जिस तरह हिन्दुस्तान में होली के मौके पर लोग गले मिलते हैं और भाईचारे का पैग़ाम देते हैं, इसी तरह ईद पर भी एक-दूसरे के गले लगकर गिले-शिकवे भुलाने और भाईचारा कायम रखने की रिवायत हिन्दुस्तान की मिट्टी की ही सौग़ात है,
वैसे ये बात मैं बहुत पहले दलील के साथ एक क़ता में कुछ इस तरह कह चुका हूं-
वतन की सरज़मीं पर ही किया करते हैं हम सजदे
हमें अपने फ़लक पे नूरे-हक़ की दीद होती है
हमारे ही वतन की सरहदों में चांद जब आए
हमारा जश्न होता है...हमारी ईद होती है.
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आईए,
कुछ साथियों से जानते हैं कि ईद के बारे में उनका क्या मानना है-
जगमगा उठता है दुबई
दिगम्बर नासवाईद एक अरबी भाषा का शब्द जिसके माएने हैं त्यौहार, और फित्र का मतलब है
रोज़े खोलना (breaking of fast) मतलब की रोज़े माह की समाप्ति पे मनाये
जाने वाला त्यौहार. ३ दिन तक चलने वाला ये त्यौहार आधुनिकता और संस्कृति के संगम अमीरात में परंपरागत और हर्षो-उल्लास तरीके से मनाया जाता है. आज के दिन सभी लोग सुबह उठ के अपने पारंपरिक पहनावे (पुरुष कन्दूरा और महिलायें ओबाया) पहन कर ईद की नमाज़ अता करते हैं, दुआ करते हैं और फिर सभी को ईद की मुबारकबाद देते हैं और गले मिलते हैं. महिलायें हाथों में
हिना लगाती हैं, बड़े बच्चों को ईदी देते हैं और सभी परिवार वाले और
रिश्तेदार एक जगह इक्कठा हो के सामूहिक भोजन और खुशियां मनाते हैं.
ईद के दिन अरब समाज में गले मिलने की परंपरा शायद शुरू से ही रही लगती है.
वैसे तो रमजान के मुबारक महीने की शुरुआत से ही पूरा दुबई जगमगाने लगता
है, दुकाने और माल सजने लगते हैं, हर जगह सेल लगने लगती है, रात्री बाज़ार
और मेले का माहोल पूरे माह रहता है. दिन के समय सभी पूरा माहोल रमजान की
परंपरा को निभाता लगता है. लगभग हर धर्म और सांकृति के लोग भी इस परंपरा
में सहयोग देते हैं, इफ्तार के समय तक अधिकाँश लोग खुले में खाने पे
परहेज़ करते हैं, सरकारी और व्यक्तिगत परिस्थानों में काम करने वालों का
समय घटा दिया जाता है और पूरे महीने तक माहोल एक सात्विकता लिए रहता है.
सभी को ईद की बधाई और शुभकामनायें.
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खाड़ी देशों में मस्जिद में होती है ईद की नमाज़
परवेज़ आलम त्यागी
काफ़ी दिन से खाड़ी के देश में रह रहा हूं, वहां ईद की नमाज़ अहले-सुबह फ़ज़िर के कुछ देर बाद हो जाती है. जिसमें 8 ज़ायद तकबीरें होती हैं (हिन्दुस्तान में ईद की नमाज़ में 6 ज़ायद तकबीरें पढ़ी जाती हैं) नमाज़ के बाद सभी लोग अपने अपने घरों को लौट जाते हैं, और ईद मनाते हैं. वहां हम सब हिन्दुस्तानी एक साथ मिलकर ईद मनाते हैं....एक-दूसरे को गले भी मिलते हैं...और अपनों को याद कर लेते हैं...उनसे बात कर लेते हैं. वैसे सच्चाई ये है कि ईद तो अपनों के साथ ही होती है.
ईद पर मैं सेवईं बनाती हूँ, फ़ित्र निकालती हूँ
वंदना अवस्थी दूबे
ईद...इस शब्द का अर्थ बहुत बाद में जाना, लेकिन इसके अर्थ को बहुत पहले से ही हम महसूस करने लगे थे. इसके पीछे खास वजह ये थी, कि कुछ मुस्लिम परिवारों से हमारे पारिवारिक, घनिष्ठ सम्बन्ध हैं, इतने कि उनकी हर ख़ुशी और गम में हम शामिल होते हैं, और हमारे में वे. ज़ाहिर है, कि सारे त्यौहार भी हम मिलजुल के ही मनाते रहे हैं. मेरे घर का माहौल वैसे भी बहुत धर्मनिरपेक्ष है. किसी भी धर्म को अलग करके कभी बताया ही नहीं गया. सो जब ईद आती, तो उसके आने का भी हम उसी उत्साह से इंतज़ार करते, जैसे दीवाली या होली का. बचपन में ईद हमारे लिए केवल नए कपडे, चच्ची और मुमानी से ईदी मिलने, और स्वादिष्ट सेवईं खाने का त्यौहार ही थी, जैसे दीवाली होती थी. जैसे-जैसे बड़े होते गए, त्यौहारों के तमाम अर्थ और उनको मनाये जाने की उपयोगिता समझ में आने लगी. कुछ ज्ञान परिवार से मिला, कुछ किताबों ने दिया और अब तो अपनी सोच-समझ विकसित हो चुकी है सो हर त्यौहार को नए सिरे से व्याख्यायित करने लगे.
जब चंद लोग त्यौहारों को वर्गीकृत करने लगते हैं, तब मेरी समझ में ही नहीं आता कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? आखिर सभी त्यौहार एक ही सन्देश तो देते हैं, भाईचारे का, सद्भावना का, त्याग का , सौहार्द्र और शान्ति का. कौन सा धर्म है, जो अशांति और अलगाव की शिक्षा देता है? कौन सा धर्म अधर्म के रास्ते पर चलने को कहता है? कोई नहीं. सभी सद्भावना का सन्देश देते हैं. ये तो हमारा दिमागी फितूर है जो हम तमाम अवांछित काम करने लगते हैं. फिर ईद?? रमजान के इतने पवित्र और कठिन दिनचर्या का पालन करने वाले माह के बाद आने वाली ईद तो सचमुच केवल खुशियों का पैगाम ही ला सकती है. तो ईद मेरे लिए पहले भी खुशियों का त्यौहार थी, आज भी है. हर ईद पर मैं सेवईं बनाती हूँ और फ़ित्र भी निकालती हूँ.
आप सबको ईद की असीम-अनंत शुभकामनाएं.
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मनाएं ईद मगर दिल में ये ख़याल रहे.....
इस्मत ज़ैदी
किसी भी त्योहार का नाम आते ही हमारे चेहरे ख़ुशी से चमकने लगते हैं,विशेषतया बच्चों के I
ज़ह्न में नए कपड़े , पकवान, सेवईं जैसी चीज़ें अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगती हैं ,
परंतु आज इन चीज़ों से अलग हट कर आइये देखते हैं कि ईद है क्या? क्यों और कैसे मनाई जाती है और इसकी सार्थकता क्या है ??
’ईद’ एक अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है ’ख़ुशी’ ,लेकिन दर अस्ल ये त्योहार ख़ुशी को भी व्यापकता प्रदान करता है यदि इसे सही तरीक़े से मनाया जाए I
रमज़ान के पवित्र महीने के २९ या ३० रोज़ों के बाद आने वाली ’ईद’ को ईद उल फ़ित्र कहते हैं ,,इस ईद में चाँद रात को ’फ़ितरा’ निकाला जाता है ’फ़ितरा’ शब्द फ़ित्र से बना है जिस का अर्थ है ’इफ़्तार’
इसलिये चाँद रात को हम अपना मुख्य खाद्य पदार्थ जैसे गेहूं ,आटा, ज्वार या चावल फ़ितरे के तौर पर निकालते हैं जो प्रति व्यक्ति ३ १/२ किलोग्राम के हिसाब से होता है ,जैसे यदि घर में ४ सदस्य हों तो १४ किलो आटा या उतने ही आटे की राशि फ़ितरे के तौर पर निकाली जाती है ,फिर ये आटा या राशि रात को ही या ईद की नमाज़ के पहले ही हक़दार बंदों तक पहुँचा दी जाती है ,ताकि वो भी शरीक हो सकें I इस प्रक्रिया में इस बात का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है कि दिखावा बिल्कुल न हो और जिस व्यक्ति तक फ़ितरा पहुँचाया गया है उसे शर्मिंदगी न हो I
ईद एक पैग़ाम है भाईचारे, सौहार्द्र और समानता का.
ये बात अलग है कि कुछ अराजक तत्व सभी पर्व-त्योहारों की पवित्रता को नष्ट करने पर तुले हैं तो ईद कैसे अछूती रह सकती है ,
ईद के संदेश को सार्थक करती ये पंक्तियाँ---
मनाएं ईद मगर दिल में ये ख़याल रहे
किसी नफ़स के न दिल में कोई मलाल रहे
हमारा ध्यान इस ओर आकर्षित करती हैं कि इन ताक़तों से निपटने के लिये हमें एकजुट हो कर यह सिद्ध करना है कि देश का अंतिम व्यक्ति भी समान रूप से महत्वपूर्ण है, सक्षम है और उसे भी किसी पर्व त्योहार में सम्मिलित होने का समान अधिकार है
आप सभी को ईद उल फ़ित्र बहुत बहुत मुबारक हो
19 comments:
सबको हो ईद मुबारक ।
ईद मुबारक आपको,बधाई करे कबूल
जीवन सुखमय रहे,कभी न होवे शूल,,,,,
RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,
वतन की सरज़मीं पर ही किया करते हैं हम सजदे
हमें अपने फ़लक पे नूरे-हक़ की दीद होती है
हमारे ही वतन की सरहदों में चांद जब आए
हमारा जश्न होता है...हमारी ईद होती है.
इस बेहद ख़ूबसूरत कता के साथ बहुत अच्छी बात कही आप ने
अपने देश ,उसकी परम्पराओं और त्योहारों का बहुत उम्दा संगम पेश किया है
आपकी इस एकता की और देशप्रेम की भावना को मेरा सलाम
दिगंबर जी के द्वारा हमें दुबई की ईद के बारे में पता चला ,इस ज्ञानवर्धन के लिए नासवा जी का शुक्रिया
वन्दना जी ने जिस धर्म निरपेक्षता का नमूना पेश किया है वो क़ाबिल ए तारीफ़ है
बहुत अच्छी और संतुलित पोस्ट के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं
ये त्यौहार ही हमारे जिंदादिली को जिलाये रखते है,
गर ये त्यौहार ना होते तो बोलो हम कहां होते ।
ईद के इस मुबारक मौके पर आपकी सुंदर पोस्ट पढ कर मन खुश हो गया ।
ईद मुबारक आपको और सब पढने वालों को भी ।
वतन की सरज़मीं पर ही किया करते हैं हम सजदे
हमें अपने फ़लक पे नूरे-हक़ की दीद होती है
हमारे ही वतन की सरहदों में चांद जब आए
हमारा जश्न होता है...हमारी ईद होती है...
यह ख्याल तमाम उम्र रहे
खुशियाँ लेकर आता रहे चाँद - ईद मुबारक शाहिद जी
यूँ सबको पढ़ना अच्छा लगा और जाना जो नहीं जानती थी
ईद मुबारक ....
आपको...
आपके परिवार के सभी सदस्यों को...!
Sabhee ko eid bahut,bahut mubarak ho!
ईद और उम्मीद कायम रहें!
आमीन!
आशीष
--
द टूरिस्ट!!!
ईद मुबारक ....
बहुत सुन्दर आयोजन किया है आपने. ईद की अनेकानेक शुभकामनाएं.
सबको पढ़ा , बहुत सारी नई बाते जानी मुकद्दस ईद के बारे में . प्रेमचंद की कहानी ईदगाह भी याद आई . ईद की हार्दिक शुभकामनायें .
Bahut,bahut mubarak ho! Ab aapkee tabiyat kaisee hai?
अच्छे लगे सबके विचार...
सभी लोगों को ईद की मुबारकबाद...
ईद मुबारक हो शाहिद जी ...
ईद के मौके पे हमने भी कुछ लिखा (यहाँ के हालातों को देखते हुए लिखना जरुरी था ) यहाँ के समाचार पत्रों में छपा भी ...पर मैं ब्लॉग में न डाल सकी ....
कारण उसी दिन सदभावना दिवस पर दूरदर्शन वालों ने बुला लिया ....
आप कहें तो अब डाल दूँ ...?
ईद के इस मुबारक मौके पे सभी देशवासियों को बधाई ... सभी पढ़ने वालों को बधाई ... इस पोस्ट और मुझे भी कुछ कहने का मौका देने के लिए शुक्रिया शाहिद भाई ...
@ हरकीरत जी, नेकी और पूछ पूछ...पोस्ट कर दीजिए.
ईद की ढेरों मुबारकबाद.
एक नए अंदाज़ में इस बार पोस्ट लिखी आप ने.
सभी के विचार पढ़े.
अच्छा लगा.
बड़ी सुन्दर पोस्ट.....
सेंवई की तरह मीठी....
हमारी भी बचपन की एक सखि है मुस्लिम...बहन ही है बल्कि...सो इस त्यौहार का हमें भी उत्साह रहता है....ईदी भी पाते हैं बढ़िया :-)
सादर
अनु
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