हज़रात,
एक सादा सी ग़ज़ल हाज़िर है-
अजब वफ़ा के उसूलों से ये ”वफ़ाएं” हैं
तेरी जफ़ाएं, ”अदाएं”, मेरी ”ख़ताएं” हैं
महकती जाती ये जज़्बात से फ़िज़ाएं हैं
कोई कहीं मेरे अश’आर गुनगुनाएं हैं
वो दादी-नानी के किस्सों की गुम सदाएं हैं
परी कथाएं भी अब तो ”परी कथाएं” हैं
ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं
बिगडते रिश्तों को तुम भी संभाल सकते थे
मैं मानता हूं ...मेरी भी..... कई ख़ताएं हैं
मेरे ख़्यालों में करती हैं रक़्स ये शाहिद
तुम्हारी याद की जितनी भी अप्सराएं हैं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
एक सादा सी ग़ज़ल हाज़िर है-
अजब वफ़ा के उसूलों से ये ”वफ़ाएं” हैं
तेरी जफ़ाएं, ”अदाएं”, मेरी ”ख़ताएं” हैं
महकती जाती ये जज़्बात से फ़िज़ाएं हैं
कोई कहीं मेरे अश’आर गुनगुनाएं हैं
वो दादी-नानी के किस्सों की गुम सदाएं हैं
परी कथाएं भी अब तो ”परी कथाएं” हैं
ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं
बिगडते रिश्तों को तुम भी संभाल सकते थे
मैं मानता हूं ...मेरी भी..... कई ख़ताएं हैं
मेरे ख़्यालों में करती हैं रक़्स ये शाहिद
तुम्हारी याद की जितनी भी अप्सराएं हैं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
12 comments:
Waise pari kathayen yaad to bahut aatee hain..
वो दादी-नानी के किस्सों की गुम सदाएं हैं
परी कथाएं भी अब तो ”परी कथाएं” हैं,,,,,,
वाह,,,, बहुत खूब,,,,शाहिद जी,,,,,
RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
वाह...
बहुत बढ़िया गज़ल...
हर शेर लाजवाब.........
अनु
ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं
पूरी ग़ज़ल तो नहीं, कुछ शैर उम्दा लगे...
क्षमा जी, धीरेन्द्र जी, अनु जी, हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया
@ रजनीश जी,
जहे-नसीब...कुछ शेर तो अच्छे लगे.
बहुत उम्दा गज़ल ... बहुत दिनों बाद कुछ लिखा है आपने ...
ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं
bahut khoob ,
sachchai se qareeb !!
ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं
bahut sundar.
ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं
शाहिद भाई क्या कहूँ...लाजवाब कर दिया आपकी इस खूबसूरत ग़ज़ल ने...अरसे बाद आपको ज़ज्बात पर देख कर आँखें छलक आयीं...ऊपर वाला आपको हमेशा तंदरुस्त और खुश रखे...ये ही दुआ करता करता हूँ...और आपसे ऐसी उम्दा ग़ज़लें कहलवाता रहे...आमीन
नीरज
ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं
ise bina bhoge nahi likha ja sakta...badhiya gazal...
बिगडते रिश्तों को तुम भी संभाल सकते थे
मैं मानता हूं ...मेरी भी..... कई ख़ताएं हैं...
Vaah ... Kitni sadgi se likh diya ... Gazab ka sher hai ...
Lajawab poori gazal ...
मेरे ख़्यालों में करती हैं रक़्स ये शाहिद
तुम्हारी याद की जितनी भी अप्सराएं हैं
पूरी गज़ल सुंदर ।
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