जज़्बात का तूफान उठे जब कभी 'शाहिद'........ नग़मात. कोई गीत. कोई शेर बने हैं.
अलग-अलग रंग में एक मतला-एक शेर
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सियासी लोग लेते ही नहीं हैं काम पानी से।
बुझाना चाहते हैं आग भी शोला बयानी से।।
वो कुछ किरदार रुसवाई के भी लिक्खे गए वरना
जहां को काम ही क्या था तेरी-मेरी कहानी से।।
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
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