जज़्बात का तूफान उठे जब कभी 'शाहिद'........ नग़मात. कोई गीत. कोई शेर बने हैं.
अनजान अजनबी कई अपनों में हैं शामिल
ख़ामोश बेज़ुबान से बुत देख रहा हूं।।
सूरज ये इम्तिहान का चढ़ आया है जबसे
रिश्तों की बदलती हुई रुत देख रहा हूं।।
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
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