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बदलती रुत से तुम्हें कुछ गिला नहीं है क्या।
तुम्हारी अपनी कोई भी अना नहीं है क्या।।
बुलंदियों के नशे में कोई न होश न खौफ़
अमीरे-शहर का कोई ख़ुदा नहीं है क्या।।
छिपा के करता है हर शख़्स ये सफ़र सबसे
सफ़ीरे-इश्क़ को रहबर मिला नहीं है क्या।।
मैं कर रहा हूं ठिकाने की जुस्तजू कब से
तुम्हारे दिल का कोई रास्ता नहीं है क्या।
जहां दिमाग़ नहीं दिल की ही चले 'शाहिद'
तुम्हें वो इश्क़ अभी तक हुआ नहीं है क्या।।
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
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