WELCOME

Friday, February 14, 2025

काग़ज़ का गुल

 काग़ज़ का भी गुल महकाना पड़ता है।

बिल्कुल जादूगर बन जाना पड़ता है।


यार सियासत अपने बस का रोग नहीं 

आंखें छीन के ख़्वाब दिखाना पड़ता है।।


शाहिद मिर्ज़ा शाहिद 





(शाहिद मिर्ज़ा शाहिद)

No comments: