जज़्बात का तूफान उठे जब कभी 'शाहिद'........ नग़मात. कोई गीत. कोई शेर बने हैं.
काग़ज़ का भी गुल महकाना पड़ता है।
बिल्कुल जादूगर बन जाना पड़ता है।
यार सियासत अपने बस का रोग नहीं
आंखें छीन के ख़्वाब दिखाना पड़ता है।।
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
(शाहिद मिर्ज़ा शाहिद)
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