खूबसूरती का बयान करने के लिये कभी कभी अल्फाज़ नहीं मिलते. तो कभी लफ्ज़ खुद-ब-खुद शायरी की शक्ल में कुछ यूं उभर आते हैं-
कता ___
तेरे जलवों की ज़िया है या मेरा ज़ौक़े-सुखन
बेपनाह हुस्न मुकम्मल सी ग़ज़ल दिखता है.
मेरी नज़रों से कोई देखे तुझे तो जाने,
तेरे हर अक्स में इक ताजमहल दिखता है...
एक शेर____
मरहबा तेरा तसव्वुर, आफरीं तेरा शऊर,
ऐसा जादू भर दिया, रंगों का, इक तस्वीर में..
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
14 comments:
तेरी नज़रों की ज़िया है या मेरा ज़ोके-सुखन
बेपनाह हुस्न मुकम्मल सी गज़ल दिखता है.
मेरी नज़रों से कोई देखे तुझे तो जाने,
तेरे हर अक्स में इक ताजमहल दिखता है.nice
तेरी नज़रों की ज़िया है या मेरा ज़ोके-सुखन
बेपनाह हुस्न मुकम्मल सी गज़ल दिखता है.
मेरी नज़रों से कोई देखे तुझे तो जाने,
तेरे हर अक्स में इक ताजमहल दिखता है...
वाह.....लाजवाब.....!!
बहोत खूब ।
huzoor !
bahut hi umdaa aur dilfareb
alfaaz se sajaa ye nazraana
waah-wa !
"एक इक लफ्ज़ बस इस बात का खुद है 'शाहिद'
ये सुखन तेरा, त्गज़्ज़ुल का बदल लगता है"
mubarakbaad qubool farmaaeiN
क्या बात है. चंद पंक्तियां लेकिन दिल को छूने वालीं.
bohot khoob janab
ham bhi apse kuch sikhne ki koshish karenge insha Allah
एक इक लफ्ज़ बस इस बात का खुद है 'शाहिद'
ये सुखन तेरा, त्गज़्ज़ुल का बदल लगता है"
bahut khoob
मोहतरम 'मुफलिस' साहब, और मोहतरमा ज्योति सिंह साहिबा
नाचीज़ की टूटी-फूटी लाइनों की तारीफ के लिये शुक्रिया...
आप दोनों की इजाजत हो, तो तारीफ में कहे शेर...
एक इक लफ्ज़ बस इस बात का खुद है 'शाहिद'
ये सुखन तेरा, त्गज़्ज़ुल का बदल लगता है"
को यूं कर लें_______________________
लफ्ज़ हर एक है इस बात का खुद ही 'शाहिद'
ये सुखन तेरा, त्गज़्ज़ुल का बदल लगता है"
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
तेरी नज़रों की ज़िया है या मेरा ज़ोके-सुखन
बेपनाह हुस्न मुकम्मल सी गज़ल दिखता है.
मेरी नज़रों से कोई देखे तुझे तो जाने,
तेरे हर अक्स में इक ताजमहल दिखता है
वाह वाह वाह....!!
बहुत खूबसूरत....
---आपने खूबसूरती का बयान इस खूबसूरत अंदाज में किया है मिर्जा भाई कि गालिब का यह शेर याद आ गया।
कहते हैं दुनियाँ में सुखनवर बहुत अच्छे
कहते है गालिब का अंदाज-ए-बयां और
--कुछ छूटा हो तो कृपया आप सुधार लें
ref :- aajkeeghazal
ह्म्म्म्म .....
"भारद्वाज" को
"भारदवाज" की तरह इस्तेमाल
किया गया है
खालिक़ ने ये छूट शायद
जान बूझ कर ली है .......
खैर ......
शेर अछा है ...असर छोड़ता है
और
सम्पादक का निर्णय अंतिम
और .....सर्वमान्य ......(:
शाहिद जी ,
आपकी शायरी से ' सरिता ' मैगज़ीन की याद आ जाती है . उसमें बड़ी खूबसूरती से ऐसी चीज़ें छपा करती हैं .
मरहबा तेरा तसव्वुर, आफरीं तेरा शऊर,
ऐसा जादू भर दिया, रंगों का, इक तस्वीर में..
bahut bahut khoob kahte hain shahid sahab aap
aapke blog par aakar bahut achcha laga
बहुत ख़ूबसूरत ! वाक़ई !
तेरी नज़रों की ज़िया है या मेरा ज़ोके-सुखन
बेपनाह हुस्न मुकम्मल सी गज़ल दिखता है.
मेरी नज़रों से कोई देखे तुझे तो जाने,
तेरे हर अक्स में इक ताजमहल दिखता है
मेरे ब्लॉग पर पधारने का बहुत शुक्रिया, जो मुझे इतनी बढ़िया शायरी पढने का मौका मिला !
God bless
RC
Post a Comment