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Tuesday, February 9, 2010

तकरार किसलिए

 
हज़रात आदाब,
  
              तम्हीद (भूमिका) की ज़रूरत महसूस नहीं हो रही है.
              यक़ीन के साथ ग़ज़ल आपकी समाअतों के हवाले है
                                             मुलाहिज़ा फ़रमाएं-

                        ज़ेहनों में  भेदभाव  की  दीवार किसलिए ?
                        सबका खुदा वही तो है तकरार किसलिए ?
 

सबको तलब है जब यहां अम्नो-अमान की,
खिंचती है बात बात पे तलवार किसलिए ?
 
संदेश इनके प्यार का किसने चुरा लिया,
अंदेशा लेके आते हैं त्यौहार किसलिए ?
 
जब इसका इल्म था कि ये धोया न जायेगा,
मैला किया था आपने किरदार किसलिए ?
 
चलना है सबको साथ, मगर इस सवाल पर
धीमी है सबके पांव की रफ़्तार किसलिए ?
 
शाहिद कभी तो भीड़ से ये भी उठे सवाल
भारी हुए समाज पे दो-चार किसलिए ?
 
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

53 comments:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

शाहीद मिर्ज़ा जी, आदाब.

सामाजिक समरसता कायम करने की दिशा में आपका यह प्रयास बहुत पसंद आया.

संदेश इनके प्यार का किसने चुरा लिया,
अंदेशा लेके आते हैं त्यौहार किसलिए ?
जब इसका इल्म था कि ये धोया न जायेगा,
मैला किया था आपने किरदार किसलिए ?
बहुत ही सार्थक सन्देश है. इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरो दाद.
---
मेरी एक गुजारिश है आपसे, एक कलमकार के रूप में हमसब अपना काम कर ही रहे हैं. पता नहीं आज मैं क्यूँ ऐसा कह रहा हूँ. हमें लगता है की हमें इसके साथ साथ समाज के(मेरे मतलब अपने आस-पास के) लोगों से सीधे सीधे संवाद करने की भी जरुरत है. यदि हम आस पास बच्चो की शिक्षा में साहित्यिक दखल दे तो आने वाले परिणाम सुखद होंगे. नए बच्चे, किशोर, युवा सही गलत के अंतर को समझ नहीं पा रहे हैं. मैं कुछ बात से आज क्षुब्ध हूँ. कहीं कहीं कुछ लोग ब्लॉग पर तकलीफ देते हैं. शुक्र है की ग़ज़ल ठंडक पहुंचाती है. शायद मुझे यहाँ नहीं कहना चाहिए. चूँकि मैं आपकी शायरी का प्रशंशक हूँ, और आपसे निकटता महसूस करता हूँ. इसलिए कह रहा हूँ. कृपया अन्यथा न लेंगे. हम इमेल पर भी चर्चाएँ कर सकते हैं.
मैं ब्लॉग पर बना रहूँगा.

सस्नेह - सुलभ

इस्मत ज़ैदी said...

shahid sahab ,
aik behad pakeeza jazbe ka khoobsoorat kalam padhne ko mila ,shukriya ,aapke ye sawalat zahnon ko bahut kuchh sochne ke liye majboor karte hain

संदेश इनके प्यार का किसने चुरा लिया,
अंदेशा लेके आते हैं त्यौहार किसलिए ?

जब इसका इल्म था कि ये धोया न जायेगा,
मैला किया था आपने किरदार किसलिए ?

apki poori ghazal hi har hindustani ke dimagh men uthte sawalat ko bayan karti hai,in sawalon men chhipe andeshon ,dar aur takleef ko bayan karti hai lekin ye do asha'ar to ghazal ki umdagi ka zamin hain .

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही उम्दा ग़ज़ल ..... सामाजिक रिश्तों को जोड़ने की ख्वाहिश रखती है आपकी लेखनी ...... तमाम शेर कहीं न कहीं छूते हैं .......

सबको तलब है जब यहां अम्नो-अमान की,
खिंचती है बात बात पे तलवार किसलिए ?

दरअसल हमारे समाज के कुछ ठेकेदारों ने इस समाज को बंत दिया है धर्म, जाती, प्रदेश्वाद के बीच और ऐसे ही लोग उकसाते हैं तलवार चलाने के लिए .....

संदेश इनके प्यार का किसने चुरा लिया,
अंदेशा लेके आते हैं त्यौहार किसलिए ?
चलना है सबको साथ, मगर इस सवाल पर
धीमी है सबके पांव की रफ़्तार किसलिए ?

इन शेरों का मतलब लब हर हिन्दुस्तानी को समझ आ जाएगा ..... तब ये ज़मीन सबसे खूबसूरत ज़मीन हो जाएगी विश्व में ....

बहुत ही कमाल का लिखा है .....

Urmi said...

चलना है सबको साथ, मगर इस सवाल पर
धीमी है सबके पांव की रफ़्तार किसलिए ?
बिल्कुल सही बात का ज़िक्र किया है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!

DR. ANWER JAMAL said...

ज़ेहनों में भेदभाव की दीवार किसलिए ?
सबका खुदा वही तो है तकरार किसलिए ?


My first vote to you.

shikha varshney said...

संदेश इनके प्यार का किसने चुरा लिया,
अंदेशा लेके आते हैं त्यौहार किसलिए ?

जब इसका इल्म था कि ये धोया न जायेगा,
मैला किया था आपने किरदार किसलिए ?

अमन ओ प्रेम का सन्देश देती बेहद खुबसूरत ग़ज़ल कही है शाहिद साहेब!

शारदा अरोरा said...

शाहिद जी , जब आपका नाम लिखने लगी तो रोमन में बदलते ही पहले शहीद लिखा हुआ आ गया , अगर बेध्यानी में ऐसे ही लिखा रह जाता तो आप तो बेवजह ही शहीद हो जाते | आप ने बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ' तकरार किसलिए ' बोलचाल के शब्दों को जैसे नफासत से पिरो दिया हो , शुक्रिया | जब जब ऐसे झगड़े सुने हैं , दिल रोया भी और कोई न कोई नज़्म पैदा जरुर हुई , तो आज मैं भी कुछ इसी कड़ी में एक नज़्म अपने ' सफ़र के सजदे में ' वाले ब्लॉग पर पोस्ट कर रही हूँ | www.shardaarora.blogspot.com

Pushpendra Singh "Pushp" said...

सुन्दर रचना
आभार

नीरज गोस्वामी said...

सबको तलब है जब यहां अम्नो-अमान की,
खिंचती है बात बात पे तलवार किसलिए ?

शाहिद कभी तो भीड़ में ये भी उठे सवाल
भारी हुए समाज पे दो-चार किसलिए ?

शाहिद भाई इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल फरमाएं...इस ग़ज़ल का कोई एक शेर भी अगर हम ज़िन्दगी में उतार लें तो तो ये ज़िन्दगी खुशगवार बन जाये...बेहतरीन ग़ज़ल.
नीरज

ज्योति सिंह said...
This comment has been removed by a blog administrator.
वन्दना अवस्थी दुबे said...

संदेश इनके प्यार का किसने चुरा लिया,
अंदेशा लेके आते हैं त्यौहार किसलिए ?
कितनी खूबसूरती और शिद्दत के साथ आपनी अपनी तकलीफ़ बयान की है. सच है, ये आज पूरे मुल्क की तकलीफ़ है. बहुत खूबसूरत गज़ल. बधाई.

अमिताभ श्रीवास्तव said...

Janab,
gazal bemisaal he, isliye bhi ki yah aaj ki jaroorat he.inshaallah..apki baato par gour kiya jaayega..savalo ke saath jis fiqr ko aam kiya he usake javaab ki baari is samaz ki he.

निर्मला कपिला said...

सबको तलब है जब यहां अम्नो-अमान की,
खिंचती है बात बात पे तलवार किसलिए ?
संदेश इनके प्यार का किसने चुरा लिया,
अंदेशा लेके आते हैं त्यौहार किसलिए ?
ज़ेहनों में भेदभाव की दीवार किसलिए ?
सबका खुदा वही तो है तकरार किसलिए ?
sशाहिद जी क्या खूब शेर कहे हैं हर एक शेर समाज को आईना दिखाता हुया और आपस मे भाईचारे का सुन्दर सन्देश देते हुये आपकी गज़ल से बहुत कुछ सीखती हूँ धन्यवाद और शुभकामनायें

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ज़ेहनों में भेदभाव की दीवार किसलिए ?
सबका खुदा वही तो है तकरार किसलिए ?

यही तो नहीं समझते और ना समझाने देते हैं...धर्म के नाम पर ही जंग करते हैं


सबको तलब है जब यहां अम्नो-अमान की,
खिंचती है बात बात पे तलवार किसलिए ?

सबको शांति चाहिए पर इस पर ही राजनीति कि रोटी भी सेंकते हैं

संदेश इनके प्यार का किसने चुरा लिया,
अंदेशा लेके आते हैं त्यौहार किसलिए ?

बहुत सही कहा है....त्यौहार आते हैं और अंदेशा छाने लगता है कि ना जाने कहाँ बम ब्लास्ट हो जाये .

जब इसका इल्म था कि ये धोया न जायेगा,
मैला किया था आपने किरदार किसलिए ?

चलना है सबको साथ, मगर इस सवाल पर
धीमी है सबके पांव की रफ़्तार किसलिए ?

शाहिद कभी तो भीड़ में ये भी उठे सवाल
भारी हुए समाज पे दो-चार किसलिए ?

बहुत उम्दा सन्देश दिया है इस ग़ज़ल के माध्यम से बेहतरीन ग़ज़ल....

सर्वत एम० said...

....त्यौहार किस लिए. मुझे सबसे प्यारा लगा यह शेर. मुझे अंदाज़ा है इस शेर ने कितनी मेहनत कराई होगी. रफ्तार वाला शेर और भी अच्छा हो सकता था लेकिन हम लोग हर शेर पर क्यों मेहनत करें? जब मतलब निकल रहा हो, साफ़ एहसास हो रहा हो कि लोग तारीफें ही करेंगे, फिर दिमाग थकाने से क्या फायदा!
मेरा कमेन्ट और लहजा उम्मीद के खिलाफ लगा ना! दरअसल आप से जो उम्मीदें हैं, उन्हें भरपूर देखने की ख्वाहिश है.
मुझे अंदेशा है कि आप इसे फील करेंगे. मैं कमेन्ट सिर्फ मैटर पर देता हूँ, मेरा इरादा किसी रचनाकार को आहत करने का कभी नहीं रहा. फिर भी, बुरा लगा हो तो मैं यहीं माज़रत करने में भी हिचकिचाऊँगा नहीं.

तिलक राज कपूर said...

साहित्‍य में कहन का महत्‍व अविवादित है। प्रश्‍न यह है कि शायर के कलाम में कहन का दायरा कहॉं तक पहुँचा है। स्‍वयं से परिवार-समाज-देश-मानवता होते हुए कहन कब ऐसी हो जाये कि परवरदिगार से ही बात होने लगे। सोच का दायरा बढ़ना एक क्रमिक विकास है। कभी-कभी ऐसा यकायक हो जाता है कि शायर को वो सब दिखना बंद हो जाता है जो आस-पास है और वो दिखने लगता है जिसे सिर्फ रूह देख और पहचान सकती है।
आपकी ग़ज़ल कहॉं तक पहुँची है, यह ग़ज़ल ही कह रही है।
दिली मुबारकबाद कुबूल करें एक बेहतरीन ग़ज़ल और इस दायरे तक प‍हुँचने के लिये।
हॉं एक बात जरूर कहूँगा कि सर्वत साहब की पैनी नज़र और राय से मैं भी सहमत हूँ कि आपके ये शेर जहॉं पहुँच सकते थे उसके बहुत करीब पहुँच कर रुक गये।

संजय भास्‍कर said...

खुबसूरत ग़ज़ल कही है शाहिद साहेब!

संजय भास्‍कर said...

shahid ji plz visit my blog...

श्रद्धा जैन said...

संदेश इनके प्यार का किसने चुरा लिया,
अंदेशा लेके आते हैं त्यौहार किसलिए ?

waah kitni sateek baat ki hai

शाहिद कभी तो भीड़ में ये भी उठे सवाल
भारी हुए समाज पे दो-चार किसलिए ?

waqayi gahra sawal hai
do chaar log hi sab bigaad rahe hain

bahut arthpurn gazal

हास्यफुहार said...

ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।

manu said...

सारी ग़ज़ल ही कातिल है जनाब..
लेकिन ये ...

संदेश इनके प्यार का किसने चुरा लिया,
अंदेशा लेके आते हैं त्यौहार किसलिए ?

बड़ी ही हैरानी से पढ़ रहा हूँ..इस नायाब शे'र को...

रानीविशाल said...

Bahut hi khubsurat gazal bade hi khubsurat uddeshya ke sath....Aabhar!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

महावीर said...

ज़ेहनों में भेदभाव की दीवार किसलिए ?
सबका खुदा वही तो है तकरार किसलिए ?
संदेश इनके प्यार का किसने चुरा लिया,
अंदेशा लेके आते हैं त्यौहार किसलिए ?
"किस लिए?" एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब हर इंसान जानता है लेकिन खुदगर्ज़ी की गोद में पलने वाले लोग सही जवाब के मायने ही बदल डालते हैं. यही विडम्बना है.
आपकी पूरी ग़ज़ल दिल को छू गई.
महावीर शर्मा

mukti said...

वाह, वैसे तो पूरी ग़ज़ल अच्छी है, पर, मुझे सबसे अच्छा लगा यह शेर...
"शाहिद कभी तो भीड़ से ये भी उठे सवाल
भारी हुए समाज पे दो-चार किसलिए ?"

विनोद कुमार पांडेय said...

देश की विडंबना है की लोगों की समझ में नही आ रहा है की तकरार किसलिए...बढ़िया ग़ज़ल...सुंदर संदेश देती हुई...बधाई वर्मा जी...बहुत बढ़िया

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

सभी टिप्पणीकारों का आभार
सुलभ सतरंगी जी, आपने सही कहा, मैं पूर्णतया सहमत हूं.
इस्मत साहिबा, चिन्तन शुरू करने के लिये शुक्रिया, वैसे इस ग़ज़ल का ख़्याल आपकी पोस्ट देखकर ही आया है.
नासवा जी, सवाल तो यही है कि ’उनके’ बांटने से ’हम’ बंटते क्यों हैं?
बबली जी, डा. जमाल अनवर साहब, शिखा जी, पीसिंह साहब, नीरज जी, ज्योति जी, वंदना जी, अमिताभ जी, निर्मला जी, संगीता जी, संजय जी, श्रद्धा जी, सविता जी, मनु जी, रानी विशाल जी, मुक्ति जी, विनोद जी आप सबके बेशक़ीमती कमेंट्स के लिये तहे-दिल से शुक्रिया..
शारदा जी, ये नाम लिखने में अकसर ऐसा हो जाता है. इसके लिये sh के बाद aa लिखा जाये, तो सही नाम आ जाता है (वैसे अपने वतन के लिये शहादत का जज़्बा हमारे संस्कारों में है) ग़ज़ल पसंद करने के लिये आपका आभारी हूं.
सर्वत साहब, राही साहब, आपकी टिप्पणियां मेरे लिये हमेशा प्रेरणा का स्रोत रही हैं.
बस, ये गुज़ारिश है आपसे,
कि मुझ जैसे ’नौसीखिये’ को अपने इल्म के ’पैमाने’ से न नापें,
एक विचारक का कथन याद आ रहा है-
’इंसान को उस रूप में स्वीकार करो, जैसा कि वो है,
............न कि उस रूप में, जैसा कि आप चाहते हैं.
श्रद्धेय महावीर जी, सादर प्रणाम
आपका आशीर्वाद शामिल होने के उपरांत अपने सभी शेर सार्थक नज़र आने लगे हैं..

Apanatva said...

bahut asardaar gazal............
zahan me kai savaal uthatee hai ye gazal......

चलना है सबको साथ, मगर इस सवाल पर
धीमी है सबके पांव की रफ़्तार किसलिए ?

शाहिद कभी तो भीड़ से ये भी उठे सवाल
भारी हुए समाज पे दो-चार किसलिए ?

kaash insaan swayam se savaal kare aur jawab bhee dhoonde............... bahut acchee lagee ye gazal......

Randhir Singh Suman said...

शाहिद कभी तो भीड़ से ये भी उठे सवाल
भारी हुए समाज पे दो-चार किसलिए ?nice

अनामिका की सदायें ...... said...

sab ka khoon lal hai
sab ko jana khali hath hai
char hath sabko chahiye
fir ye vyapar kis liye..

chalo maine b apki lines me 4 line milane ki jurrat ki hai...

aapki rachna ne itna utsahit kar diya.bahut acchhi rachna.

Narendra Vyas said...

....वाह शाहिद मिजार् शाहिद साहब बहुत उम्दा पंक्तियाँ। आभार!!

है नाख्ाुदा सभी का ’वो ही’ इल्म है हमें,
फिर बीच में ये धर्म की पतवार किसलिये ?

क्या ले के आये और क्या ले जाना हमें साथ,
फिर धर्म और समाज का बवाल किसलिये ?

चाहते हैं जीना साथ में डाले गले में हाथ,
तो फिर धर्म और समाज का बवाज किसलिये ?

chandrabhan bhardwaj said...

Bhai Shahid Mirza ji,
Apki ghazal padhi ghazal ka har sher bade shandar hdang se nibhaya gaya hai . Khas kar makata-
Shahid kabhi to bhid se ye bhi uthe sawal bhari huye samaj par do char kis liye. Wah wah badhai ho Shahid.
Chandrabhan Bhardwaj

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अच्छी गज़ल का बेहतरीन शेर-

जब इसका इल्म था कि ये धोया न जायेगा,
मैला किया था आपने किरदार किसलिए ?
...इस प्रश्न का जवाब कौन दे सकेगा भला !!
जरूरी प्रश्न..शानदार अंदाज! वाह!

रचना दीक्षित said...

बहुत प्रभावशाली रचना सुंदर दिल को छूते शब्द .मनभावन,अद्भुत
जब इसका इल्म था कि ये धोया न जायेगा,
मैला किया था आपने किरदार किसलिए ?

ज्योति सिंह said...

main yahan tippani kar chuki rahi magar aaj aakar dekhti hoon wo nadarat hai ,
चलना है सबको साथ, मगर इस सवाल पर
धीमी है सबके पांव की रफ़्तार किसलिए ?

शाहिद कभी तो भीड़ से ये भी उठे सवाल
भारी हुए समाज पे दो-चार किसलिए
bahut laazwaab

daanish said...

सबको तलब है जब यहां अम्नो-अमान की,
खिंचती है बात बात पे तलवार किसलिए ?

जहां तक मेरा ख़याल है कि ये ला-जवाब शेर
इस बहुत ही शानदार ग़ज़ल की जान माना जाना चाहिए
इंसान की दोहरी सोच को बेहतर तरीक़े से बयान
किया गया है ...बधाई
और जो कुछ तिलक राज जी ने कह दिया है
उसी का अनुमोदन करता हूँ
मुबारकबाद .

गौतम राजऋषि said...

देर से आने के लिये माफी चाहता हूं सर जी। बहुत खूबसूरत ग़ज़ल बुनी है। इस शेर पर हमारी करोड़ों दाद कबूल फरमायें:-
"जब इसका इल्म था कि ये धोया न जायेगा,
मैला किया था आपने किरदार किसलिए"

बहुत खूब!

Asha Joglekar said...

आदावब शाहिद साहब कमाल की गज़ल बुनी है । आपका यह मेल मिलाप बढाने का प्रयास सफल हो ।
शाहिद कभी तो भीड़ में ये भी उठे सवाल
भारी हुए समाज पे दो-चार किसलिए ?
बेहतरीन ।

Unknown said...

Assalamu Alaykum Wrwb
aaj bohot dino baad yahan aana hua aur apki gazal padhke kaafi khushi huyii bohot hi behtareen andaaz me apne aaj k samajh ki halat aur phir unke dilon ko jodhne ki koshish ki hai subhan Allah khaas kar ye do line hamare dil me utar gayii

जब इसका इल्म था कि ये धोया न जायेगा,
मैला किया था आपने किरदार किसलिए ?

Allah se dua hai apka kalam aise hi chalta rahe

हरकीरत ' हीर' said...

आदाब शाहीद जी ,
हर शे'र लाजवाब......ये कुछ ज्यादा करीब लगा .......

जब इसका इल्म था कि ये धोया न जायेगा,
मैला किया था आपने किरदार किसलिए ?

Alpana Verma said...

'सबको तलब है जब यहां अम्नो-अमान की,
खिंचती है बात बात पे तलवार किसलिए ?'
*****शाहिद जी यह शेर बहुत ख़ास लगा..बिलकुल सही कहा है जब हर व्यक्ति यही चाहता है कि चैनो अमन हो तो फिर बात बात पर होते झगड़े फसाद क्यूँ?
हर जीवन अनमोल है फिर क्यूँ क़ुर्बान किया जाता है मज़हब के नाम पर?
कई सवाल एक ही सवाल से पैदा होने लगते हैं.
******लाजवाब ग़ज़ल .

Razi Shahab said...

सबको तलब है जब यहां अम्नो-अमान की,
खिंचती है बात बात पे तलवार किसलिए ?

hum to qayal ho gaye bhai aap ki shayari ke
alfaz nahi hain kuch kahne ke liye...wallah bahut khoob andaze bayaan hai aap ka...miya aur bhi kuch sunate rahiye ...dua karte hai...
allah kare zor-e-qalam aur zyada......
waaah bhaaaaaai bahutttt khoooobbbbb

Dimple said...

Itna khoobsurat likha hai aapne... Mann ko chooh gayi yeh ghazal aapki :)

Itni gehraai kahaan se laate hai aap iss likhne ki kalaa mein... yeh jaan ne ki bhawna se main aapke iss blog par baar-2 aaungi :)

Prem Sahit,
Dimple

Udan Tashtari said...

वाह!! क्या बात है. बहुत उम्दा गज़ल!!

Pawan Kumar said...

शाहिद साहब
हम तो पहले से आपके फैन हैं.......इस बार भी आपके शेरोन के कायल हैं.....
ज़ेहनों में भेदभाव की दीवार किसलिए ?
सबका खुदा वही तो है तकरार किसलिए ?
वाह वाह..........क्या खूब कहा....

जब इसका इल्म था कि ये धोया न जायेगा,
मैला किया था आपने किरदार किसलिए ?
सुभान अल्लाह .......

चलना है सबको साथ, मगर इस सवाल पर
धीमी है सबके पांव की रफ़्तार किसलिए ?
जबर्दस्त शेर पर हजारों दाद.......

लता 'हया' said...

शुक्रिया शाहिद साहेब ,
आपके जज़्बात [ मेरे मुताल्लिक और 'वतन' के मुताल्लिक ] दोनों बहुत उम्दा लगे और 'किस लिए' का तो हर शेर ? क्या कहने .....
इंशा अल्लाह कोशिश करुँगी हर माह दो ग़ज़ल पोस्ट कर सकूँ . .

Pushpendra Singh "Pushp" said...

सुन्दर गजल
जब इसका इल्म था कि ये धोया न जायेगा,
मैला किया था आपने किरदार किसलिए ?
बहुत बहुत आभार ............

Harish Joshi said...

shahi ji namaskaaar...

aap tou hamein bhool gaye apr hamne apko dhoondh liya...

Harish Joshi
Hindustan Times
Meerut

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

’अपनत्व’ जी, सुमन जी. अनामिका जी, नरेन्द्र व्यास जी, भारद्वाज जी, देवेन्द्र जी, रचना जी, ज्योति जी, डीके मुफ़लिस जी, गौतम जी, मोहतरमा आशा जी, नासिर जी, हरकीरत ’हीर’ जी, अल्पना जी, रज़ी ’शाहब’, डिम्पल जी, समीरलाल जी, सिंहएसडीएम साहब, पीसिंह साहब, और हां हरीश जोशी जी (मेल से)
शुक्रिया बहुत छोटा शब्द है आपकी इनायत के लिये..
- मोहतरमा लता ’हया’ जी, हौसला अफ़ज़ाई और इल्तजा कबूल करने के लिये तहे-दिल से शुक्रिया.

Renu goel said...

इतनी छोटी सी बात ...काश उन लोगों को समझ आ जाती जिनके लिए ये ग़ज़ल लिखी है आपने ...
कितनी अच्छी बात कही है ....
सबको तलब है जब यहां अम्नो-अमान की,
खिंचती है बात बात पे तलवार किसलिए ?
और ...
जब इसका इल्म था कि ये धोया न जायेगा,
मैला किया था आपने किरदार किसलिए ?
हर इंसान जानता है यहाँ की कीचड में पत्थर मारने से अपना दामन भी मैला होता है पर .... पर .... ये 'पर ' यूँ ही पर करता रह जाता है ...

Narendra Vyas said...

Regarding Shahid sahab
aadab
sir, we will publish ur gazals tomorrow on dated 21/2/10
it will be our gr8 pleasure to publish ur gazals in Aakhar Kalash
thanks a lot
aadab

kumar zahid said...

ज़ेहनों में भेदभाव की दीवार किसलिए ?
सबका खुदा वही तो है तकरार किसलिए ?


सबको तलब है जब यहां अम्नो-अमान की,
खिंचती है बात बात पे तलवार किसलिए ?

संदेश इनके प्यार का किसने चुरा लिया,
अंदेशा लेके आते हैं त्यौहार किसलिए ?
bahut behatar janab..her sher damdar..badhai.

neelam said...

शाहिद कभी तो भीड़ से ये भी उठे सवाल
भारी हुए समाज पे दो-चार किसलिए ?


bahoot khoob likha hai aapne uoon hi
aapka lekhan roshan hota rahe ,hum sab ke dimaagon me bhi isi tarah .

http://baaludyan.hindyugm.com/
bachche hume bahut kuch sikhaate hain

irshad said...

shahid sahb mozuda dur me aaj jis chiz ki sabse ziyada zururt h aapne os ko apni gazal me samil kiya h mubarkbad