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Tuesday, December 7, 2010

मां तेरे बग़ैर

मां....

इस रिश्ते के बारे में कितना भी कहिए, नाकाफ़ी है
बस अल्फ़ाज़ की शक्ल में कुछ अहसास आपकी खिदमत में हाज़िर हैं-

हर रोशनी बुझी सी रही मां तेरे बग़ैर
खुशियों में भी खुशी न मिली मां तेरे बग़ैर

अपनी ये ज़िन्दगी की कली मां तेरे बग़ैर
खिलने की तरह खिल न सकी मां तेरे बग़ैर

बदला तो कुछ नहीं है मगर दिल का क्या करूं
हर शै में लग रही है कमी मां तेरे बग़ैर

अब्बा ने खेलने को खिलौने तो ला दिए
किस काम की ये जादूगरी मां तेरे बग़ैर

गुलशन को जैसे छोड़के माली चला गया
ये ज़िन्दगी कुछ ऐसे कटी मां तेरे बग़ैर

***************************

और ये ग़ज़ल... कुछ साहेबान ने शायद पढ़ी होगी...
मुलाहिज़ा फ़रमाएं-

तोहफा है नायाब खुदा का दुनिया जिसको कहती मां
हर बच्चे की मां है लेकिन अपनी मां है अपनी मां

छांव घनेरे पेड सी देकर धूप दुखों की सहती मां
एक समन्दर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी मां

आमना हो या दाई हलीमा रूप जुदा हो सकते हैं
(ये मिसरा यूं भी कहा गया है)
देवकी हो, या हो वो यशोदा, रूप जुदा हो सकते हैं
मां तो आखिर मां होती है, ये भी मां है वो भी मां

मां की कमी महसूस न हो अब छोटे भाई-बहनो को
चंचल लडकी बंटकर रह गई आधी बाजी आधी मां

मां न रही तो सब्र करो और ये भी तो सोचो शाहिद
मां से खुद महरूम रही है 'हव्वा' जो है सबकी मां

शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद'

50 comments:

इस्मत ज़ैदी said...

गुलशन को जैसे छोड़के माली चला गया
ये ज़िन्दगी कुछ ऐसे कटी मां तेरे बग़ैर

शाहिद साहब मां की अहमियत को तो हर कोई समझ सकता है लेकिन उस की कमी का एह्सास अल्फ़ाज़ को, आवाज़ को मुंजमिद कर देता है ,आप का दोनों कलाम ऐसा है कि मैं नि:शब्द हूं ,सिवाय नम आंखों से बार बार पढ़ने के कुछ कहने को नहीं है मेरे पास

वन्दना अवस्थी दुबे said...

अब इस ग़ज़ल के लिये क्या कहूं शाहिद जी? ये तो बस खुश्बू की तरह है, जिसे महसूस किया जा सकता है.
बदला तो कुछ नहीं है मगर दिल का क्या करूं
हर शै में लग रही है कमी मां तेरे बग़ैर
ईश्वर करे, सबकी मां सलामत और साथ रहे.

फ़िरदौस ख़ान said...

हर रोशनी बुझी सी रही मां तेरे बग़ैर
खुशियों में भी खुशी न मिली मां तेरे बग़ैर

अपनी ये ज़िन्दगी की कली मां तेरे बग़ैर
खिलने की तरह खिल न सकी मां तेरे बग़ैर

बदला तो कुछ नहीं है मगर दिल का क्या करूं
हर शै में लग रही है कमी मां तेरे बग़ैर

अब्बा ने खेलने को खिलौने तो ला दिए
किस काम की ये जादूगरी मां तेरे बग़ैर

गुलशन को जैसे छोड़के माली चला गया
ये ज़िन्दगी कुछ ऐसे कटी मां तेरे बग़ैर


और
छांव घनेरे पेड सी देकर धूप दुखों की सहती मां
एक समन्दर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी मां

एक-एक शेअर बेहतरीन...

रश्मि प्रभा... said...

अब्बा ने खेलने को खिलौने तो ला दिए
किस काम की ये जादूगरी मां तेरे बग़ैर
ye jadu bagair uske ho hi nahi sakta

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय शाहिद मिर्ज़ा जी
नमस्कार !
मां न रही तो सब्र करो और ये भी तो सोचो शाहिद
मां से खुद महरूम रही है 'हव्वा' जो है सबकी मां
बहुत ही मार्मिक कविता...
मन को छू लेने वाली कविता लिखी है आपने। बधाई।

Arvind Jangid said...

सुन्दर अल्फाज दियें हैं,

आपका तहेदिल से शुक्रिया.

Shah Nawaz said...

बहुत ही बेहतरीन... बहुत ज़बरदस्त... दोनों ही ग़ज़लें / हर इक शेर बेहतरीन हैं...


प्रेमरस.कॉम

Deepak Saini said...

शाहिद साहब,
आँखे नम हो गई
माँ की कमी कायनाय की कोई शै पूरा नही कर सकती
गजल़ की तारीफ के अल्फाज आज नही मिल पा रहे

निर्मला कपिला said...

बदला तो कुछ नहीं है मगर दिल का क्या करूं
हर शै में लग रही है कमी मां तेरे बग़ैर
जाने वाले चले जाते हैं जिन्दगी चलती रहती है लेकिन उनकी कमी पल पल सालती है

अब्बा ने खेलने को खिलौने तो ला दिए
किस काम की ये जादूगरी मां तेरे बग़ैर
माँ की जगह कोई नही ले सकता। वो ममता,स्नेह केवल माँ ही दे सकती है
ाउर दूसरे कलाम मे हर पँक्ति लाजवाब है
छांव घनेरे पेड सी देकर धूप दुखों की सहती मां
एक समन्दर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी मां
सच बात है ममता का स्मुन्द्र है कितनी भी ममता बाँटे उतनी ही उसकी प्यास बढती रहती है।

देवकी हो, या हो वो यशोदा, रूप जुदा हो सकते हैं
मां तो आखिर मां होती है, ये भी मां है वो भी मां
दिल को छू गयी ये पाँक्तियाँ। बधाई इस पोस्ट के लिये

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर ....।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

क्या कहूँ, हर शेर दिल को छुं लेने वाला ...
लाजवाब !

Narendra Vyas said...

सिर्फ और सिर्फ पढ़े जा रहा हूँ. बात जब माँ की आई है तो हर शब्द नमन को आतुर है.. !! सिर्फ और सिर्फ भरी आँखों से सज़दा करता हूँ..!! शुक्रिया मिर्ज़ा साहब, दिल से !

shikha varshney said...

माँ की शान में जितना कहा जाये कम है ...आपने माँ की ज्यादा याद दिला दी अभी फोन करना पड़ेगा.
मन को छू लेने वाली रचनाएँ हैं शाहिद साहब.

Ankit said...

वाह-वा शाहिद जी, क्या खूब शेर कहें हैं,
अब्बा ने खेलने को खिलौने तो ला दिए
किस काम की ये जादूगरी मां तेरे बग़ैर

वाकई, माँ के बारे में जितना भी कहा या लिखा जाए उतना कम है.

दिगम्बर नासवा said...

आपने तो आज मुन्नवर राणा जी की याद दिला दी ... माँ के बारे में उसकी हस्ती को ले कर बहुत कुछ लिखा गया है .... पर आपने गज़ब ढा दिया है .... सुभान अल्ला ...
आज किसी एक शेर को कोट करना बहुत मुश्किल है मेरे लिए ...

नीरज गोस्वामी said...

बदला तो कुछ नहीं है मगर दिल का क्या करूं
हर शै में लग रही है कमी मां तेरे बग़ैर
****
मां की कमी महसूस न हो अब छोटे भाई-बहनो को
चंचल लडकी बंटकर रह गई आधी बाजी आधी मां

शाहिद भाई आपको इन निहायत खूबसूरत गज़लों के लिए सलाम करता हूँ...सीधे दिल में उतरते अशआर हैं...सुभान अल्लाह...वाह.

नीरज

Asha Joglekar said...

दोनो ही गज़ले इतनी खूबसूरत बन पडी हैं। दिल से निकले हैं अल्फाज़ जो पढने वाले को झकझोर के रख देते हैं । शाहिद जी माँ एैसा लफ्ज़ है जो हर किसी को माँ की यादों में बरबस खींच ले जाता है । आप तो गज़ल के राजा हैं आप के कलम से निकला हर शेर खूबसूरत है ।
गुलशन को जैसे छोड़के माली चला गया
ये ज़िन्दगी कुछ ऐसे कटी मां तेरे बग़ैर । और

मां की कमी महसूस न हो अब छोटे भाई-बहनो को
चंचल लडकी बंटकर रह गई आधी बाजी आधी मां
ऐसी कितनी हीं दीदीयों को माँ बनते देखा है ।
बहुत अच्छा लगा ।

हरकीरत ' हीर' said...

देवकी हो, या हो वो यशोदा, रूप जुदा हो सकते हैं
मां तो आखिर मां होती है, ये भी मां है वो भी मां

माशाल्लाह ......!!
.
मां की कमी महसूस न हो अब छोटे भाई-बहनो को
चंचल लडकी बंटकर रह गई आधी बाजी आधी मां

बेहतरीन .....

मां न रही तो सब्र करो और ये भी तो सोचो शाहिद
मां से खुद महरूम रही है 'हव्वा' जो है सबकी मां

शाहिद जी माँ पर इतने सुंदर अलफ़ाज़ ....इतने खूबसूरत भाव ...?
सच्च में आज तो नमन है आपको ....!!.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अब्बा ने खेलने को खिलौने तो ला दिए
किस काम की ये जादूगरी मां तेरे बग़ैर


मान के लिए कुछ भी कहना हमेशा कम ही लगता है ....बहुत सुन्दर गज़ल कही है ....

daanish said...

बदला तो कुछ नहीं है मगर दिल का क्या करूं
हर शै में लग रही है कमी मां तेरे बग़ैर

माँ की ममता के बारे में
कहाँ,, क्या कुछ नहीं कहा गया
लेकिन ये परिभाषा फिर भी अधूरी ही रही
क्योंकि माँ जैसा महान ना कोई हुआ है,, न कोई होगा कभी

शाहिद मिर्ज़ा जी की लेखनी से निकला इक-इक लफ्ज़
ग़ज़ल की श़क्ल में इबादत का ही दूसरा रूप है
मेरा अभिवादन स्वीकारें .

सु-मन (Suman Kapoor) said...

माँ की तस्वीर बहुत सुन्दर शब्दों में बयां कर दी.............

Manav Mehta 'मन' said...

shahid ji ...wah kya baat hai....

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

माँ की बात थी ना.....सो अच्छी तो लगनी ही थी.....अच्छी लगी.....माँ के बगैर....क्या कुछ है भला.....कुछ भी नहीं....ये वो शायद ही उमता जानते होंगे....जिनके पास माँ हैं......उनसे पूछिए....जिनके पास माँ नहीं....!!!

सुनील गज्जाणी said...

बदला तो कुछ नहीं है मगर दिल का क्या करूं
हर शै में लग रही है कमी मां तेरे बग़ैर
आदाब ! जायद क्या कहू '' माँ ' तो माँ ही है !
आदाब !

अनुपमा पाठक said...

behtareen!

rashmi ravija said...

अब्बा ने खेलने को खिलौने तो ला दिए
किस काम की ये जादूगरी मां तेरे बग़ैर

पहली वाली ग़ज़ल तो जी उदास कर गयी...माँ के बिना ज़िन्दगी..ज़िन्दगी नहीं रह जाती...कौन जगह ले सकता है माँ की

मां की कमी महसूस न हो अब छोटे भाई-बहनो को
चंचल लडकी बंटकर रह गई आधी बाजी आधी मां

ये लाइन बड़ी प्यारी लगी..

अनामिका की सदायें ...... said...

बहुत मार्मिक गज़ल...और मैं कल्पना भी नहीं कर सकती बिन माँ के...

सच में कैसा होता होगा उनका पूरा का पूरा जीवन, कैसा खालीपन सा लिए हुए जिनको माँ नहीं मिलती..उफ़ ये सोच बहुत ही दर्द देने वाली है.

Alpana Verma said...

माँ की तारीफ में जितना कहा जाये कम है ..फिर भी आपने बहुत कुछ समेटा है दोनों ग़ज़लों में ..
बहुत ही भावपूर्ण..

-'मां की कमी महसूस न हो अब छोटे भाई-बहनो को
चंचल लडकी बंटकर रह गई आधी बाजी आधी मां'
बेहद भावुक कर देने वाली पंक्तियाँ लगीं .

शारदा अरोरा said...

बहुत सुन्दर , पहले वाली ग़ज़ल भी पढी हुई थी और फिर से मन को छू गई..

Satish Saxena said...

बहुत प्यारा लिखा है शाहिद मियां !
माँ खुशकिस्मत है जो तुम्हारे जैसा बेटा मिला ! मेरी तरफ से मुबारकबाद कहियेगा !
!

pran sharma said...

MAA PAR DONO GAZALEN MARMSPARSHEE
HAIN . BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.

अरुण अवध said...

माँ के पाक कदमों में ,अपनी श्रद्धा के फूल चढ़ाएं है अपने !
बहुत अच्छी लगी दोनों गज़लें !

पूनम श्रीवास्तव said...

shahid ji
aapne blikul sahi farmaya
maa hoti hi hai \aisa sarmaya
jiski jagah aaj talak koi nahi bhar-paya.
bahut hi behatreen ,maa to bas maa hi hoti hai.
poonam

Urmi said...

बहुत सुन्दर और लाजवाब ग़ज़ल ! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! उम्दा प्रस्तुती! बधाई!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

शरद कोकास said...

बहुत सरल शब्दों में माँ पर यह बेहतरीन कलाम है ।

JAGDISH BALI said...

maa ki ahmiyat ko aap ne kalam se tarasha hai. GooooooooooooooooD.

श्रद्धा जैन said...

छांव घनेरे पेड सी देकर धूप दुखों की सहती मां
एक समन्दर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी मां
bahut khoob

मां की कमी महसूस न हो अब छोटे भाई-बहनो को
चंचल लडकी बंटकर रह गई आधी बाजी आधी मां

waah kya sher kaha hai aapne.. kitni baarik nazar

डॉ० डंडा लखनवी said...

वाह!! वाह!! अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति......। सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

Apanatva said...

bahut sunder bhavo ko alfaaz diye hai aapne.......
bemisaal kalaam........
subhanallah......

Padm Singh said...

दिल का रिश्ता शब्दों की चाशनी में पगा हुआ सीधे आत्मा की गहराइयों तक उतरता है...
बहुत मोहक,सुन्दर !!

kumar zahid said...

अब्बा ने खेलने को खिलौने तो ला दिए
किस काम की ये जादूगरी मां तेरे बग़ैर

jadugari...ek anokha andaz..waah

मां की कमी महसूस न हो अब छोटे भाई-बहनो को
चंचल लडकी बंटकर रह गई आधी बाजी आधी मां

salaam is pakeezgi ko..

#vpsinghrajput said...

बेहतरीन प्रस्तुति ।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद' साहब
आदाब अर्ज़ है !

दो-तीन दफ़ा इस पोस्ट पर आ' कर पढ़ चुका हूं … समझ नहीं आ रहा कि तब कमेंट छपा नहीं था या बिना कहे ही दोनों ग़ज़लों के गहरे भावों में मैं ऐसा खो गया कि बात करने जितनी सामर्थ्य ही नहीं बची थी …

जो भी हो आज संक्षेप में कह कर हाज़िरी दर्ज़ करवा दूं …

दूसरी ग़ज़ल तो पहले पढ़ चुके हैं , दुबारा लुत्फ़ लिया … दुबारा बधाई !

और पहली ग़ज़ल दूसरी से बेहतर …
दूसरी ग़ज़ल पहली से बेहतर …

दोनों ग़ज़लों के तमाम अश्'आर उद्धृत समझें ।

मेरी माताजी अभी अस्वस्थ हैं ,आपकी दुआओं के रूप में दोनों ग़ज़लों के लिए आपकी लेखनी को नमन करते हुए इस शे'र को सर-आंखों से लगा रहा हूं -

छांव घनेरे पेड़ सी देकर धूप दुखों की सहती मां
एक समन्दर ममता का है फिर भी कितनी प्यासी मां



शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सभी अशआर एक से बढ़कर एक हैं। एक गज़ल तो दुबार पढ़ी मगर लगता है अभी कम पढ़ी। बहुत सुंदर, बधाई।

Urmi said...

आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मॉं जैसी प्‍यारी है यह कविता।

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अंधविश्‍वासी तथा मूर्ख में फर्क।
मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।

Akshitaa (Pakhi) said...

माँ से प्यारा कोई नहीं..प्यारी कविता.
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'पाखी की दुनिया' में तन्वी अब दो माह की...

Minakshi Pant said...

ये मेरे मालिक तेरा हमपे ये करम हो गया !
तुने अपनी जगह माँ का जो हमको साथ दिया !
तू भी जनता था की अकेले तो हम न रह पाएँगे !
इसलिए चुपके से माँ बनके हाथ थाम लिया !

यही है माँ का परिचय दोस्त !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति बधाई !

ज्योति सिंह said...

बदला तो कुछ नहीं है मगर दिल का क्या करूं
हर शै में लग रही है कमी मां तेरे बग़ैर
bahut hi sundar rachna hai .

इस्मत ज़ैदी said...

शाहिद साहब ,दोबारा कमेंट करने से ख़ुद को रोक नहीं पाई मैं ,यूं तो कई बार पढ़ चुकी हूं ,हर बार शिद्दत से इस कमी का एहसास होता है ,ख़ास तौर पर

हर रोशनी बुझी सी रही मां तेरे बग़ैर
खुशियों में भी खुशी न मिली मां तेरे बग़ैर

अपनी ये ज़िन्दगी की कली मां तेरे बग़ैर
खिलने की तरह खिल न सकी मां तेरे बग़ैर

खिलने की तरह खिल न सकी मां तेरे बग़ैर
इस मिसरे का तो जवाब नहीं

ये दोनों अश’आर और आख़री शेर ,शायर की भावुकता और संवेदनशीलता के प्रतीक है
दिल से निकली हुई आवाज़ ,अल्फ़ाज़ में ढल गई है
बहुत उम्दा !