जज़्बात का तूफान उठे जब कभी 'शाहिद'........ नग़मात. कोई गीत. कोई शेर बने हैं.
रिश्ते श्रृंखला से एक ताज़ा मुक्तक
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रखा महरूम हक़ से और बताए फ़र्ज़ ही सबने,
अमानत है यही कहकर हर इक घर में पली बेटी।
विदा करके ये कहते हैं पराई हो गई लेकिन
वो पहले से ज़ियादा और अपनी हो गई बेटी।।
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
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