जज़्बात का तूफान उठे जब कभी 'शाहिद'........ नग़मात. कोई गीत. कोई शेर बने हैं.
ये आन बान शान अभी है अभी नहीं
तक़दीर मेहरबान अभी है अभी नहीं
सारा वजूद संग के रहमो-करम पे है
शीशे के ये मकान अभी है अभी नहीं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
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