साहेबान,
एक नई कोशिश के साथ, आपकी खिदमत में हाज़िर हुआ हूं.
पहली बार एक गीत लिखने का हौसला किया है,
गीत हाज़िर है...
कहां तक कामयाब रहा, फैसला आपके हाथ में है.....
जो ग़ज़लें मंसूब हैं तुमसे उनको फिर दोहराना है
रूठे हुए गीतों की खातिर तुमको लौट के आना है
माज़ी के वरकों में यादें सपनों जैसी लगती हैं
नज्में अपनी तुम बिन भीगी पलकों जैसी लगती हैं
डूबे हुए हैं गम में तराने घायल हर दोगाना है
रूठे हुए गीतों की खातिर तुमको लौट के आना है
हंसते हुए चेहरों के पीछे दर्द की एक कहानी है
ऐसा लगता है शबनम भी गुल की आंख का पानी है
चेहरों का इक शहर है लेकिन तुम बिन सब वीराना है
रूठे हुए गीतों की खातिर तुमको लौट के आना है
प्यार का आंगन छूट रहा है कैसी किस्मत पाई है
अपना मिल पाना मुश्किल है, तल्ख है, पर सच्चाई है
मैं तो 'शाहिद' मान गया हूं, दिल को भी समझाना है
रूठे हुए गीतों की खातिर तुमको लौट के आना है
शाहिद मिर्जा 'शाहिद'
19 comments:
Assalamu Alaykum
kaise ho janab
jiske liye bhi likhe ho bohot hi umdah geet hai agar ye wo padhle to shayad laut aajaye ..........
आपका गीत अच्छा लगा और आपके गीत को पढ़कर ये शेर कहे बिना रह नहीं सका ।
कहीं ऎसा न हो दामन जला लो
हमारे आंसुऔं पर ख़ाक डालो
बहुत मायूस बैठा हूं मैं तुमसे
कभी आकर मुझे हैरत में डालो ॥
मैं तो 'शाहिद' मान गया हूं, दिल को भी समझाना है ,
बहुत अच्छे ,
' नज्में अपनी तुम बिन मुझको नगमों जैसी लगती हैं '
बस इस लाइन में कुछ ऐसा लिखा होना चाहिए कि तेरे बिना मुझे अपनी नज्में उदास बोलों जैसी लगतीं हैं | बस अब आप होम वर्क करिए , एक सही शब्द खोजिये | मुआफ करियेगा , मुफ्त सलाह के लिए | और धन्यवाद टिप्पणी करके मेरे ब्लॉग पर हौसला अफजाई के लिए |
जो ग़ज़लें मंसूब हैं तुमसे उनको फिर दोहराना है
रूठे हुए गीतों की खातिर तुमको लौट के आना है
माज़ी के वरकों में यादें सपनों जैसी लगती हैं
नज्में अपनी तुम बिन मुझको नगमों जैसी लगती हैं
डूबे हुए हैं गम में तराने घायल हर दोगाना है
रूठे हुए गीतों की खातिर तुमको लौट के आना है
Behad Umda...ek-ek lafz dil ko Chhoo lene wala...
हंसते हुए चेहरों के पीछे दर्द की एक कहानी है
ऐसा लगता है शबनम भी गुल की आंख का पानी है
चेहरों का इक शहर है लेकिन तुम बिन सब वीराना है
रूठे हुए गीतों की खातिर तुमको लौट के आना है
bahut khubsurat abhivyakti hai..shubhkaamnayen
शाहिद जी
प्रेम सदा ही सुंदर होता है .यादों से प्रेम का अटूट रिश्ता है .अच्छा लगा .
nice
निर्झर सरिता ओ सागर,
का महामिलन अति उत्तम।
मानव मानवता चाहे,
अति कोमल स्पर्श लघुत्तम ॥
समरसता अविरल धारा,
चेतनता स्वयं विलसती।
अति पाप, ताप, हर लेती ,
जीवन्त राग में ढलती ॥
मैं-मेरा औ तू-तेरा,
होवे हम और हमारा ।
आनंद स्वस्तिमय सुंदर,
समरस लघु जीवन सारा ॥
aapk lia
प्यार का आंगन छूट रहा है कैसी किस्मत पाई है
अपना मिल पाना मुश्किल है, तल्ख है, पर सच्चाई है
मैं तो 'शाहिद' मान गया हूं, दिल को भी समझाना है
huzoor !!
aapki ye koshish bilkul kaamyaab rahee...khayalaat ke izhaar ke hisaab se to kaheeN koi chook nahi hai....bs yooN hi likhte rahiye !!
aur haaN....Sahrda Arora ji ki baat pr zaroor gaur kijiye . . .
खूबसूरत...उसे लौटना ही होगा...
कोशिश कामयाब रही।
shahid sahab ,geet ki khoobsoorti ko qayam rakhna bahut mushkil hai aur aap ismen kamyaab hain,bahut umda,mubarak ho.
one word GREAT
masha alaha...aap kafi badia likhte hai....
मोहतरमा शारदा साहिबा,
मोहतरम मुफलिस साहब,
आपके इस अपनेपन का कर्जमंद हूं
मेरे लिये बेशकीमती मश्वरा है..
वाकई, कुछ तब्दीली कर लेनी चाहिये..
लीजिये, कोशिश कर रहा हूं
दरअसल
ब्लाग एक खुला मंच है..
जहां होने वाली ऐसी गुफ्तगू बहुत कुछ सिखाती है..
उम्मीद है कि आइंदा 'अपनेपन' को
' मुकम्मल तौर पर' पेश करने की इनायत फरमायेंगे
ये आपका हक है, बस ये गुजारिश है---
मिल-जुल के हम जलाते रहें इल्म के चराग
अपना तमाम उम्र यूं ही सिलसिला चले
मैं तहे-दिल से सभी का शुक्रगुजार हूं...
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
हंसते हुए चेहरों के पीछे दर्द की एक कहानी है
ऐसा लगता है शबनम भी गुल की आंख का पानी है
चेहरों का इक शहर है लेकिन तुम बिन सब वीराना है
रूठे हुए गीतों की खातिर तुमको लौट के आना है
--यह पहला गीत है तो यकीकन आप गज़ब ढाने वाले हैं
बड़ा ही प्यारा और खूबसूरत गीत है.. बधाई।
हंसते हुए चेहरों के पीछे दर्द की एक कहानी है
ऐसा लगता है शबनम भी गुल की आंख का पानी है
bahut khoob....geet bahut achchha laga....badhai
प्यार का आंगन छूट रहा है कैसी किस्मत पाई है
अपना मिल पाना मुश्किल है, तल्ख है, पर सच्चाई है ....
लाजवाब प्रस्तुति है ......... दिल को छू लेने वेल शब्दों से संजोया है आपने ....... बहुत ही मधुर गीत .......
अपना ये जीवन,मैंने तुमको है उपहार दिया
क्यों जीवन ये उपहार दिया
ऐसा लगता है मुझको,ज्यूँ सांसों का कारोबार किया
अपने घर की इस देहली से,आंसू का व्यापर किया
मेरे इस छोटे से दिल ने,स्पंदन कितनी ही बार किया
मेरे अधरों की लाली ने,ये कैसा आकर लिया
क्यों जीवन ये उपहार दिया,क्यों जीवन ये उपहार दिया
भाई बहुत खूबसूरत गीत है, आप कह रहे हो पहली बार लिख रहा हूँ...
हंसते हुए चेहरों के पीछे दर्द की एक कहानी है
ऐसा लगता है शबनम भी गुल की आंख का पानी है
चेहरों का इक शहर है लेकिन तुम बिन सब वीराना है
रूठे हुए गीतों की खातिर तुमको लौट के आना है
मैं तो 'शाहिद' मान गया हूं, दिल को भी समझाना है
Bahut khub shaahid ji,
aur gazal bahar par aapki snehi sandesh ke liye dhanyawaad!
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