WELCOME

Friday, July 15, 2011

निभा लेता हूं

हज़रात, आदाब
एक शेर देखिए
 चलो तकदीर दोनों आज़माकर देख लेते हैं
मिलाता है हमें किसका मुक़द्दर देख लेते हैं

लीजिए एक ग़ज़ल हाज़िर है-
सारी दुनिया की निगाहों से छुपा लेता हूं
अपनी नज़रों में तुझे आ मैं बसा लेता हूं
 
जानता हूं कि न आएंगे वो फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं

ख़ार तो गुल के निगेहबान हुआ करते हैं
जब निभाना है यही कहके निभा लेता हूं

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं

आज़माइश न मेरे ज़र्फ़ की लेना शाहिद
ज़ब्त करता हूं बता किसका मैं क्या लेता हूं

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

39 comments:

shikha varshney said...

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
क्या बात कही है..

आज़माइश न मेरे ज़र्फ़ की लेना शाहिद
ज़ब्त करता हूं बता किसका मैं क्या लेता हूं

सुव्हानअल्लाह...
बेहतरीन शेर भी और गज़ल भी.

Arun sathi said...

आज़माइश न मेरे ज़र्फ़ की लेना शाहिद
ज़ब्त करता हूं बता किसका मैं क्या लेता हूं
सुभानअल्लाह
अति सुन्दर
प्यार की खूबसूरत अभिव्यक्ती

इस्मत ज़ैदी said...

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं

ख़ूबसूरत मतले से शुरू हुई ये ग़ज़ल जब अपने इस मक़ाम पर आती है तो अपनी तकमील और शायर के फ़न का एहसास दिलाने में कामयाब हो जाती है

जानता हूं कि न आएंगे वो ,फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं

यही भरोसा तो रिश्तों की बुनियाद को ताक़त बख़्शता है
बहुत ख़ूब !!

S.N SHUKLA said...

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
Bahut khoob Shahid Sahab

Sunil Kumar said...

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
बहुत खुबसूरत शेर मुबारक हो

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत खूब कहा है आपने।

------
जीवन का सूत्र...
NO French Kissing Please!

Dr (Miss) Sharad Singh said...

ख़ार तो गुल के निगेहबान हुआ करते हैं
जब निभाना है यही कहके निभा लेता हूं
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं

बेहद शानदार लाजवाब गज़ल .....एक-एक शे’र लाजवाब...

Deepak Saini said...

वाह वाह शाहिद साहब वाह
बेहतरीन गज़ल

Unknown said...

आज़माइश न मेरे ज़र्फ़ की लेना शाहिद
ज़ब्त करता हूं बता किसका मैं क्या लेता हूं


Bahut acchha mirza saahib.. bahut dinon ke baad aap aaye.. Shukriya..

अरुण चन्द्र रॉय said...

बेहतरीन ग़ज़ल... हर शेर लाज़वाब !

रजनीश तिवारी said...

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
बहुत बढ़िया ग़ज़ल

सु-मन (Suman Kapoor) said...

bahut sundar gazal...
shahid ji itne din kahn the...bahut dino baad aapki gazal padhne ko mili...

'साहिल' said...

जानता हूं कि न आएंगे वो ,फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं


बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !

वन्दना अवस्थी दुबे said...

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं

क्या बात है शाहिद जी! बहुत खूब शेर कहा है आपने, हमेशा की तरह. बधाई.

रजनीश 'साहिल said...

बहुत ही उम्दा शाहिद भाई।
एक शेर अपनी तरफ से जोड़ने की गुस्ताखी कर रहा हूं -

उम्मीद है खुशफहमी हैं या तमन्ना-ए-सहर
सरे बाजार मैं ख्वाबों की सदा देता हूं

Urmi said...

जानता हूं कि न आएंगे वो फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं
ख़ार तो गुल के निगेहबान हुआ करते हैं
जब निभाना है यही कहके निभा लेता हूं...
बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ! इस लाजवाब और उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जानता हूं कि न आएंगे वो फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं

ख़ार तो गुल के निगेहबान हुआ करते हैं
जब निभाना है यही कहके निभा लेता हूं


बहुत खूबसूरत गज़ल ...

Unknown said...

बहुत सुन्दर एक बेहतरीन गजल ...शुभ कामनाएं !!

daanish said...

आज़माइश न मेरे ज़र्फ़ की लेना शाहिद
ज़ब्त करता हूं बता किसका मैं क्या लेता हूं

खूबसूरत ग़ज़ल , उम्दा खयालात ,
और बहुत ही असरदार इज़हार ...
हर शेर
बार बार पढने को जी चाहता है
मुबारकबाद .

***Punam*** said...

सारी दुनिया की निगाहों से छुपा लेता हूं
अपनी नज़रों में तुझे आ मैं बसा लेता हूं

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं

उम्दा और लाजवाब...
हर शेर पर बस वाह... वाह...!!

दिगम्बर नासवा said...

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं ...

शाहिद साहब ... आप इतने इतने दिनों बाद गज़ल ले कर आते है ... पर लंबा इन्तेज़ार लाजवाब गज़ल पढ़ के सुकून देता है .. इस इन्तेज़ार का मज़ा ही कुछ और है ...
बहुत खूबसूरत और हकीकत से जुडी गज़ल है ... हर शेर जैसे नगीना हो ...

नीरज गोस्वामी said...

जानता हूं कि न आएंगे वो फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं

इंशा अल्लाह शाहिद भाई वो एक न एक दिन जरूर आयेंगे...पिछले कुछ दिनों से जयपुर था इसलिए आपके ब्लॉग तक पहुँचने में देरी हुई...माफ़ करियेगा...देर आयद दुरुस्त आयद...इस निहायत खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें...

नीरज

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हू

वाह! बहुत खूब ...

अनामिका की सदायें ...... said...

हर शेर मुकम्मल और अपनी एक कहानी कह्ता हुआ.

Asha Joglekar said...

जानता हूं कि न आएंगे वो फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं

ख़ार तो गुल के निगेहबान हुआ करते हैं
जब निभाना है यही कहके निभा लेता हूं


बेहतरीन गज़ल शाहिद साहब ।

ज्योति सिंह said...

चलो तकदीर दोनों आज़माकर देख लेते हैं
मिलाता है हमें किसका मुक़द्दर देख लेते हैं
man ko chhoo gayi yahi baat aage badhne ka irada hi nahi hua,poori tasalli de rahi thi magar najar achanak neche bhi pad gayi aur use bhi padh dali wahan bhi saare sher laazwab rahe .
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं


जानता हूं कि न आएंगे वो ,फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं
bahut khoob nibhaya aapne ,har baar ki tarah khoobsurat

Alpana Verma said...

बेहतरीन ग़ज़ल .
यह शेर ख़ास लगा..
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं.
........वाह!बहुत खूब ......

Vishal said...

बेहतरीन ग़ज़ल!! यह शेर ख़ास लगे

ख़ार तो गुल के निगेहबान हुआ करते हैं
जब निभाना है यही कहके निभा लेता हूं

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं

निर्मला कपिला said...

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं

आज़माइश न मेरे ज़र्फ़ की लेना शाहिद
ज़ब्त करता हूं बता किसका मैं क्या लेता हूं
वाह कमाल है। पाँव का रिश्ता जमी से जुडा लाजवाब बात कही। सुन्दर गज़ल के लिये बधाई।

rashmi ravija said...

जानता हूं कि न आएंगे वो फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं

और यही वादे का भरोसा...जीने की वजह बन जाता है ....बहुत ख़ूब

Pawan Kumar said...

पूरी ग़ज़ल उम्दा है. किसी एक शेर की तारीफ करना बेईमानी होगी... फिर भी ये शेर तो इस ग़ज़ल का नगीना है...!!!!
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
उम्दा ग़ज़ल पोस्ट करने का शुक्रिया.

S.VIKRAM said...

शानदार ग़ज़ल....एक एक शेर नगीना है...
शुक्रिया
http://www.aarambhan.blogspot.com

रविकर said...

भिक्षाटन करता फिरे, परहित चर्चाकार |
इक रचना पाई इधर, धन्य हुआ आभार ||

http://charchamanch.blogspot.com/

Dorothy said...

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं

बेहद खूबसूरत गजल. आभार.
सादर,
डोरोथी.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत उम्दा ग़ज़ल... हर शेर लाज़वाब...
सादर...

हरकीरत ' हीर' said...

सारी दुनिया की निगाहों से छुपा लेता हूं
अपनी नज़रों में तुझे आ मैं बसा लेता हूं

जहेनसीब ......

जानता हूं कि न आएंगे वो फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं

सुभानाल्लाह ......

ख़ार तो गुल के निगेहबान हुआ करते हैं

क्या बात है .....

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं

बिलकुल ताजा शेर .....

आज़माइश न मेरे ज़र्फ़ की लेना शाहिद
ज़ब्त करता हूं बता किसका मैं क्या लेता हूं

अर्से बाद इतनी उम्दा ग़ज़ल पढ़ी .....

Amrita Tanmay said...

Behad khubsurat gajal ..lajabav

Rajeysha said...

bahut achhay...
इसे चिराग क्यों कहते हो?

सुनील गज्जाणी said...

पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
इंशा अल्लाह हम दुआ करते है कि हम सब का रिश्ता भी यू कायम रहे कि हम भी एक दूजे का वजूद बन सके , वो रिश्ता निभा सके . आमीन
--