हज़रात, आदाब
एक शेर देखिएचलो तकदीर दोनों आज़माकर देख लेते हैं
मिलाता है हमें किसका मुक़द्दर देख लेते हैं
लीजिए एक ग़ज़ल हाज़िर है-
सारी दुनिया की निगाहों से छुपा लेता हूं
अपनी नज़रों में तुझे आ मैं बसा लेता हूं
जानता हूं कि न आएंगे वो फिर भी घर कोअपनी नज़रों में तुझे आ मैं बसा लेता हूं
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं
ख़ार तो गुल के निगेहबान हुआ करते हैं
जब निभाना है यही कहके निभा लेता हूं
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
आज़माइश न मेरे ज़र्फ़ की लेना शाहिद
ज़ब्त करता हूं बता किसका मैं क्या लेता हूं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
39 comments:
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
क्या बात कही है..
आज़माइश न मेरे ज़र्फ़ की लेना शाहिद
ज़ब्त करता हूं बता किसका मैं क्या लेता हूं
सुव्हानअल्लाह...
बेहतरीन शेर भी और गज़ल भी.
आज़माइश न मेरे ज़र्फ़ की लेना शाहिद
ज़ब्त करता हूं बता किसका मैं क्या लेता हूं
सुभानअल्लाह
अति सुन्दर
प्यार की खूबसूरत अभिव्यक्ती
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
ख़ूबसूरत मतले से शुरू हुई ये ग़ज़ल जब अपने इस मक़ाम पर आती है तो अपनी तकमील और शायर के फ़न का एहसास दिलाने में कामयाब हो जाती है
जानता हूं कि न आएंगे वो ,फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं
यही भरोसा तो रिश्तों की बुनियाद को ताक़त बख़्शता है
बहुत ख़ूब !!
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
Bahut khoob Shahid Sahab
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
बहुत खुबसूरत शेर मुबारक हो
बहुत खूब कहा है आपने।
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जीवन का सूत्र...
NO French Kissing Please!
ख़ार तो गुल के निगेहबान हुआ करते हैं
जब निभाना है यही कहके निभा लेता हूं
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
बेहद शानदार लाजवाब गज़ल .....एक-एक शे’र लाजवाब...
वाह वाह शाहिद साहब वाह
बेहतरीन गज़ल
आज़माइश न मेरे ज़र्फ़ की लेना शाहिद
ज़ब्त करता हूं बता किसका मैं क्या लेता हूं
Bahut acchha mirza saahib.. bahut dinon ke baad aap aaye.. Shukriya..
बेहतरीन ग़ज़ल... हर शेर लाज़वाब !
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
बहुत बढ़िया ग़ज़ल
bahut sundar gazal...
shahid ji itne din kahn the...bahut dino baad aapki gazal padhne ko mili...
जानता हूं कि न आएंगे वो ,फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
क्या बात है शाहिद जी! बहुत खूब शेर कहा है आपने, हमेशा की तरह. बधाई.
बहुत ही उम्दा शाहिद भाई।
एक शेर अपनी तरफ से जोड़ने की गुस्ताखी कर रहा हूं -
उम्मीद है खुशफहमी हैं या तमन्ना-ए-सहर
सरे बाजार मैं ख्वाबों की सदा देता हूं
जानता हूं कि न आएंगे वो फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं
ख़ार तो गुल के निगेहबान हुआ करते हैं
जब निभाना है यही कहके निभा लेता हूं...
बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ! इस लाजवाब और उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई!
जानता हूं कि न आएंगे वो फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं
ख़ार तो गुल के निगेहबान हुआ करते हैं
जब निभाना है यही कहके निभा लेता हूं
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
बहुत सुन्दर एक बेहतरीन गजल ...शुभ कामनाएं !!
आज़माइश न मेरे ज़र्फ़ की लेना शाहिद
ज़ब्त करता हूं बता किसका मैं क्या लेता हूं
खूबसूरत ग़ज़ल , उम्दा खयालात ,
और बहुत ही असरदार इज़हार ...
हर शेर
बार बार पढने को जी चाहता है
मुबारकबाद .
सारी दुनिया की निगाहों से छुपा लेता हूं
अपनी नज़रों में तुझे आ मैं बसा लेता हूं
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
उम्दा और लाजवाब...
हर शेर पर बस वाह... वाह...!!
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं ...
शाहिद साहब ... आप इतने इतने दिनों बाद गज़ल ले कर आते है ... पर लंबा इन्तेज़ार लाजवाब गज़ल पढ़ के सुकून देता है .. इस इन्तेज़ार का मज़ा ही कुछ और है ...
बहुत खूबसूरत और हकीकत से जुडी गज़ल है ... हर शेर जैसे नगीना हो ...
जानता हूं कि न आएंगे वो फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं
इंशा अल्लाह शाहिद भाई वो एक न एक दिन जरूर आयेंगे...पिछले कुछ दिनों से जयपुर था इसलिए आपके ब्लॉग तक पहुँचने में देरी हुई...माफ़ करियेगा...देर आयद दुरुस्त आयद...इस निहायत खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें...
नीरज
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हू
वाह! बहुत खूब ...
हर शेर मुकम्मल और अपनी एक कहानी कह्ता हुआ.
जानता हूं कि न आएंगे वो फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं
ख़ार तो गुल के निगेहबान हुआ करते हैं
जब निभाना है यही कहके निभा लेता हूं
बेहतरीन गज़ल शाहिद साहब ।
चलो तकदीर दोनों आज़माकर देख लेते हैं
मिलाता है हमें किसका मुक़द्दर देख लेते हैं
man ko chhoo gayi yahi baat aage badhne ka irada hi nahi hua,poori tasalli de rahi thi magar najar achanak neche bhi pad gayi aur use bhi padh dali wahan bhi saare sher laazwab rahe .
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
जानता हूं कि न आएंगे वो ,फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं
bahut khoob nibhaya aapne ,har baar ki tarah khoobsurat
बेहतरीन ग़ज़ल .
यह शेर ख़ास लगा..
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं.
........वाह!बहुत खूब ......
बेहतरीन ग़ज़ल!! यह शेर ख़ास लगे
ख़ार तो गुल के निगेहबान हुआ करते हैं
जब निभाना है यही कहके निभा लेता हूं
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
आज़माइश न मेरे ज़र्फ़ की लेना शाहिद
ज़ब्त करता हूं बता किसका मैं क्या लेता हूं
वाह कमाल है। पाँव का रिश्ता जमी से जुडा लाजवाब बात कही। सुन्दर गज़ल के लिये बधाई।
जानता हूं कि न आएंगे वो फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं
और यही वादे का भरोसा...जीने की वजह बन जाता है ....बहुत ख़ूब
पूरी ग़ज़ल उम्दा है. किसी एक शेर की तारीफ करना बेईमानी होगी... फिर भी ये शेर तो इस ग़ज़ल का नगीना है...!!!!
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
उम्दा ग़ज़ल पोस्ट करने का शुक्रिया.
शानदार ग़ज़ल....एक एक शेर नगीना है...
शुक्रिया
http://www.aarambhan.blogspot.com
भिक्षाटन करता फिरे, परहित चर्चाकार |
इक रचना पाई इधर, धन्य हुआ आभार ||
http://charchamanch.blogspot.com/
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
बेहद खूबसूरत गजल. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहुत उम्दा ग़ज़ल... हर शेर लाज़वाब...
सादर...
सारी दुनिया की निगाहों से छुपा लेता हूं
अपनी नज़रों में तुझे आ मैं बसा लेता हूं
जहेनसीब ......
जानता हूं कि न आएंगे वो फिर भी घर को
एक वादे के भरोसे पे सजा लेता हूं
सुभानाल्लाह ......
ख़ार तो गुल के निगेहबान हुआ करते हैं
क्या बात है .....
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
बिलकुल ताजा शेर .....
आज़माइश न मेरे ज़र्फ़ की लेना शाहिद
ज़ब्त करता हूं बता किसका मैं क्या लेता हूं
अर्से बाद इतनी उम्दा ग़ज़ल पढ़ी .....
Behad khubsurat gajal ..lajabav
bahut achhay...
इसे चिराग क्यों कहते हो?
पांव का रिश्ता ज़मीं से जो जुड़ा है मेरे
अपने सर पे मैं बड़ा बोझ उठा लेता हूं
इंशा अल्लाह हम दुआ करते है कि हम सब का रिश्ता भी यू कायम रहे कि हम भी एक दूजे का वजूद बन सके , वो रिश्ता निभा सके . आमीन
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