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Friday, September 17, 2021

रक्षाबंधन पर तीन मुक्तक

 


रंग राखी का

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कितना मज़बूत है विश्वास का धागा शाहिद

सूत्र ये कितनी दुआओं से भरा होता है

क़िस्सा मेवाड़ की रानी का बताता है यही

रंग राखी का न भगवा न हरा होता है

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बहन के जज़्बात

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लड़कपन के कई प्यारे से क़िस्से छोड़ आई हूं

लड़ाते थे जो भाई से, खिलोने छोड़ आई हूं

नसीहत- सस्कारों के सिवा बाबुल के आंगन में

कई अनमोल यादों के ख़ज़ाने छोड़ आई हूं

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भाई की भावना 

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मुझे घर की ज़रूरत ने भी कुछ उलझा के रखा है।

भुलक्कड़ सा है वैसे भी ये भाई, भूल मत जाना।।

तेरी अपनी नए घर में हैं जिम्मेदारियां लेकिन,

तकेगी राह राखी की, कलाई भूल मत जाना।।

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शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

इक ग़ज़ल

 

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बदलती रुत से तुम्हें कुछ गिला नहीं है क्या।

तुम्हारी अपनी कोई भी अना नहीं है क्या।।


बुलंदियों के नशे में कोई न होश न खौफ़

अमीरे-शहर का कोई ख़ुदा नहीं है क्या।।


छिपा के करता है हर शख़्स ये सफ़र सबसे

सफ़ीरे-इश्क़ को रहबर मिला नहीं है क्या।।


मैं कर रहा हूं ठिकाने की जुस्तजू कब से

तुम्हारे दिल का कोई रास्ता नहीं है क्या।


जहां दिमाग़ नहीं दिल की ही चले 'शाहिद'

तुम्हें वो इश्क़ अभी तक हुआ नहीं है क्या।।


शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

धागों में धागे

 क़ता

अम्न-अम्न कहकर जो सिर्फ़ लड़ाते हैं।

आज खिलाड़ी सफल वही कहलाते हैं।।

मज़हब और सियासत का है खेल यही

धागों में...धागे...उलझाए जाते हैं।।

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

जुदाई का यही लम्हा

 जुदाई का यही लम्हा ज़माने और भी देगा।

ख़ुदा मिलने मिलाने के बहाने और भी देगा।।


बिछड़ते वक़्त होटों पर अगर हैं दर्द के नग़मे

बदलता वक़्त ख़ुशियों के तराने और भी देगा।।

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

तस्वीर पुरानी क्या देखी

 एक क़ता

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आधी अधूरी एक कहानी क्या देखी

तन्हा तन्हा गुज़री जवानी क्या देखी

मुझको घेर के बैठ गईं तेरी यादें

अपनी इक तस्वीर पुरानी क्या देखी


शाहिद मिर्ज़ा शाहिद